Inkhabar
  • होम
  • देश-प्रदेश
  • उपराष्ट्रपति धनखड़ का कांग्रेस को मुंहतोड़ जवाब, इंदिरा गांधी ने दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र को अंधेरे में डुबोया

उपराष्ट्रपति धनखड़ का कांग्रेस को मुंहतोड़ जवाब, इंदिरा गांधी ने दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र को अंधेरे में डुबोया

उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने शनिवार को न्यायपालिका की स्वतंत्रता और न्याय के प्रति प्रतिबद्धता की सराहना की। उन्होंने जून 1975 में तत्कालीन

Dhankhar befitting reply to Congress shameless rule indra gandhi
inkhbar News
  • Last Updated: August 10, 2024 20:16:05 IST

जोधपुर: उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने शनिवार को न्यायपालिका की स्वतंत्रता और न्याय के प्रति प्रतिबद्धता की सराहना की। उन्होंने जून 1975 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी द्वारा लागू किए गए आपातकाल को “स्वतंत्रता के बाद का सबसे काला दौर” बताया। धनखड़ ने इस दौरान न्यायपालिका की भूमिका और इसके प्रभाव पर भी विचार किया।

न्यायपालिका की हार और लोकतंत्र पर असर

धनखड़ ने कहा कि आपातकाल के दौरान सर्वोच्च न्यायालय ने लोगों के मौलिक अधिकारों की रक्षा में असफलता का प्रदर्शन किया और “तानाशाही शासन” के आगे झुक गए। उन्होंने आरोप लगाया कि न्यायपालिका ने यह फैसला सुनाया कि आपातकाल के दौरान किसी भी व्यक्ति को न्यायालय में अधिकारों के प्रवर्तन की अनुमति नहीं थी। इसके परिणामस्वरूप हजारों लोगों को बिना दोष के गिरफ्तार किया गया।

राजस्थान उच्च न्यायालय की सराहना

धनखड़ ने विशेष रूप से राजस्थान उच्च न्यायालय की सराहना की, जो आपातकाल के बावजूद नागरिकों की हिरासत और गिरफ्तारी की वैधता को चुनौती देने में सफल रहा। उन्होंने कहा कि अगर न्यायपालिका ने तानाशाही के सामने नहीं झुका होता, तो देश को अधिक समय तक इंतजार नहीं करना पड़ता और विकास की राह पर बहुत पहले आगे बढ़ जाता।

संविधान हत्या दिवस की महत्वता

उपराष्ट्रपति ने 25 जून को “संविधान हत्या दिवस” के रूप में मनाने के लिए सरकार की सराहना की। उन्होंने चेतावनी दी कि कुछ ताकतें जो लोकतंत्र को कमजोर करने का प्रयास कर रही हैं, वे हमारे मौलिक संवैधानिक संस्थानों का दुरुपयोग कर सकती हैं। धनखड़ ने नागरिकों से सतर्क रहने की अपील की और राष्ट्रीय हितों को हर चीज से ऊपर रखने का आग्रह किया।

 

ये भी पढ़ें: CM योगी ने विपक्ष से पूछा बांग्लादेशी हिंदुओं के मारे जाने पर चुप्पी क्यों,…इसलिए कि वोट नहीं देते!