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धर्म के लिए भिखारी बन गया था ये हिन्दू राजा, चांडाल बनकर पत्नी से ही मांगे बेटे के अंतिम संस्कार के पैसे

ऋषि विश्वामित्र ने सत्यवादी राजा हरिश्चंद्र से पूरे राज्य का खजाना दान करने को कहा। सत्य धर्म पर अडिग रहते हुए राजा ने अपनी सारी संपत्ति के अधिकार त्याग दिए। राज्य छोड़ने के बाद, राजा हरिश्चंद्र ने आजीविका के लिए खुद को बेच दिया लेकिन उनकी परीक्षा यहीं खत्म नहीं हुई, आगे जो हुआ...

Raja Harishchandra Story
inkhbar News
  • Last Updated: December 27, 2024 13:45:46 IST

नई दिल्लीः भारत का इतिहास दानवीर राजाओं की कहानियों से भरा पड़ा है। ऐसे कई राजा हैं जिन्होंने अपना धन इस तरह दान में दे दिया कि अंत समय में उन्हें भिखारियों जैसा जीवन जीना पड़ा। आज हम आपको ऐसे ही एक राजा के बारे में बता रहे हैं, जिन्हें सत्य का पर्याय माना जाता है। राजा हरिश्चंद्र एक ऐसे राजा थे, जो वचन के पक्के थे। सत्य के मार्ग पर चलते हुए उन्होंने अपना सारा धन, राज्य और यहां तक कि अपनी पत्नी और पुत्र को भी दान कर दिया।

राजा हरिश्चंद्र ने हर परिस्थिति में सत्य धर्म का पालन करने का वचन दिया था। उनकी परीक्षा लेने के लिए ऋषि विश्वामित्र ने उनसे राज्य का धन दान करने को कहा। सत्य की रक्षा के लिए उन्होंने अपना पूरा साम्राज्य और खजाना दान कर दिया। उनका त्याग केवल भौतिक धन तक सीमित नहीं था, उन्होंने खुद को अपनी पत्नी और पुत्र सहित बेच दिया।

कैसे भिखारी बने हरिश्चंद्र

ऋषि विश्वामित्र ने राजा से पूरे राज्य का खजाना दान करने को कहा। सत्य धर्म पर अडिग रहते हुए राजा ने अपनी सारी संपत्ति के अधिकार त्याग दिए। राज्य छोड़ने के बाद, राजा हरिश्चंद्र ने आजीविका के लिए खुद को बेच दिया। उनकी पत्नी और बेटा भी अलग अलग जगहों पर दास बन गए। राजा हरिश्चंद्र ने खुद को जहां बेचा था वह श्मशान का चांडाल था, जो शवदाह के लिए आए मृतक के परिजन से कर लेकर उन्हें अंतिम संस्कार करने देता था। उस चांडाल ने राजा हरिश्चंद्र को अपना काम सौंप दिया।

पत्नी से मांगा कर

सत्य धर्म के नाम पर अपना सब कुछ दान करने वाले राजा हरिश्चंद्र के परिवार को कई कष्टों का सामना करना पड़ा। उनके बेटे रोहिताश्व की सांप के काटने से मृत्यु हो गई। अपने बेटे का अंतिम संस्कार करने उनकी पत्नी श्मशान आई , लेकिन हरिश्चंद्र ने अपने नियमों से नहीं डिगे और सत्य के साथ अटल रहे। राजा ने अपनी ही पत्नी से बेटे के अंतिम संस्कार के लिए कर मांगा। पत्नी ने उन्हें कर के रूप में अपनी साड़ी का टुकड़ा फाड़कर पकड़ा दिया।

बेटा जीवित हो उठा

उसी समय आकाशवाणी हुई और भगवान प्रकट हुए, उन्होंने राजा से कहा कि उनकी कर्तव्यनिष्ठा महान है। राजा हरिश्चंद्र ने कहा कि अगर वाकई में उनकी कर्तव्यनिष्ठा सही है तो कृपया उनके बेटे को जीवनदान दें। इसके बाद रोहित जीवित हो उठा। दरअसल ईश्वर सत्यवादी हरिश्चंद की परीक्षा ले रहे थे जिसमें वह खरे उतरे.

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