नई दिल्ली. डोनाल्ड ट्रंप की अमेरिकी राष्ट्रपति के रूप में दोबारा ताजपोशी के बाद कूटनीति के मायने बदल गये हैं. America First और Make America Great Again की नीति पर चल रहे ट्रंप और उनका प्रशासन यूक्रेन के बाद यूरोपीय देशों को सबक सिखाने के मूड में हैं.
ह्वाइट हाउस में जेलेंस्की से मीडिया के सामने तीखी बहस के बाद इंग्लैंड और फ्रांस सहित तमाम यूरोपीय देशों ने यूक्रेन के राष्ट्रपति व्लाडिमिर जेलेंस्की को जिस तरह से हाथों हाथ लिया उससे ट्रंप चिढ़ गये हैं.
ट्रंप को लग रहा है कि यूरोपीय देश अमेरिका का इस्तेमाल करते हैं और NATO एक ऐसा संगठन बन गया है जिससे फायदा यूरोपीय देशों को होता है और पैसा व अन्य संसाधन खर्च होता है अमेरिका का. खबर है कि ट्रंप प्रशासन इस बात पर गंभीरता से विचार कर रहा है कि क्यों न नाटो, वर्ल्ड बैंक और संयुक्ट राष्ट्र को छोड़ दिया जाए. उधर यूरोपीय देश भी नये नेता की तलाश में जुट गये हैं और ट्रंप को उन्हीं की भाषा में जवाब देने की तैयारी कर रहे हैं.
ट्रंप इस बार काफी आक्रामक होकर सत्ता में लौटे हैं और उनका ट्रेड व टैरिफ पर जोर है. किसी भी सूरत में वह किसी देश को रियायत देने के लिए तैयार नहीं हैं. शपथ लेने से पहले ही उन्होंने कनाडा को अमेरिका का 51वां राज्य बनाने का दम भरा. उसके बाद गल्फ ऑफ मेक्सिको का नाम बदलकर गल्फ ऑफ अमेरिका से टेंशन बढ़ाया.
दोनों देश खफा होकर ट्रंप की अन्य नीतियों का इंतजार कर रहे थे. इसी बीच ह्वाइट हाउस में ट्रंप की यूक्रेनी राष्ट्रपति जेलेंस्की से झड़प हो गई. यूरोपीय देश जेलेंस्की के साथ खड़े दिखे जिससे ट्रंप का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच गया. कनाडा व मैक्सिको यूरोप के पाले में सरकते दिखे और ट्रंप नया वर्ल्ड ऑर्डर बनाते हुए.
इस बार ट्रंप का मुख्य एजेंडा ट्रेड और टैरिफ है. ट्रंप को लग रहा है कि यूरोपीय देश अमेरिका के पैसे पर मौज कर रहे हैं. उनका मानना है कि यूरोप को अमेरिका से फायदा हो रहा है लेकिन अमेरिका को यूरोप से कोई खास लाभ नहीं मिल रहा है. वह किसी भी देश को ट्रेड और टैरिफ में कोई वरीयता देने को तैयार नहीं है. उनके लिए सब कुछ पैसा है. खुद वह बहुत बड़े व्यवसायी हैं और दुनिया से उसी भाषा में बात कर रहे हैं.
ट्रंप अपने को शांति दूत कहते हैं लेकिन उन्होंने तरफदारी आक्रमण करने वाले रूस की की. चीन को भी साथ लेने में उन्हें कोई दिक्कत नहीं. ताइवान के मसले पर उनके गोलमोल जवाब से साफ है कि वह रूस, बेलारूस, चीन व उत्तर कोरिया जैसे देशों के साथ मिलकर नया वर्ल्ड ऑर्डर बना रहे हैं.
ट्रंप कई बार कह चुके हैं कि युद्ध के नाम पर यूक्रेनी राष्ट्रपति जेलेंस्की ने अमेरिका से 350 अरब डॉलर हड़प लिए लेकिन पूरे यूरोप ने अब तक 100 अरब डॉलर ही यूक्रेन को दिये हैं. ट्रंप यह भी मानते हैं कि यूरोप कारोबार लिहाज से डिजास्टर है. वह अमेरिका के कृषि उत्पादों को सही दाम पर नहीं खरीद रहा है.
हालांकि 2023 की एक रिपोर्ट बताती है कि यूरोपीय संघ (ईयू) ने अमेरिका से 12.3 अरब डॉलर के कृषि उत्पाद खरीदे हैं. इसके बावजूद ट्रंप ने ईयू पर 25 फीसदी टैरिफ लगाने का मन बना लिया है. दूसरी तरफ यूक्रेन के साथ कमोबेश पूरा यूरोप है.
कनाडा और मैक्सिकों भी साथ आते दिख रहे हैं. स्थितियां कुछ ऐसी बन रही है कि ताकतवर मुल्क और उनके हिसाब से बनाई गई रणनीति ही सही है. खास बात यह है कि डोनाल्ड ट्रंप की तरह ही व्लादिमीर पुतिन और शी जिनपिंग भी यही सोचते हैं.
यूक्रेनी राष्ट्रपति जेलेंस्की अमेरिका से जैसे ही ब्रिटेन पहुंचे वहां के प्रधानमंत्री स्टार्मर खुद आगे बढ़कर उनसे गले मिले. कैमरों की तरफ इशारा करते हुए उन्होंने जेलेंस्की से कहा कि हम आपके साथ हैं, देखिए कितने लोग आपको देखकर खुश हैं.
आगे जोड़ा हमला करने वाले की पीठ थपथापकर शांति की बात करना बेमानी है. यही नहीं ब्रिटिश पीएम ने यूरोपीय संघ की आपातकालीन बैठक बुलाई जिसमें यूरोपीय देशों के नेता से लेकर ईयू के नेता तक पहुंचे और सभी ने यूक्रेन को शाबाशी दी.
पोलैंड के प्रधानमंत्री डोनाल्ड टस्क काफी आक्रामक है. वह कह चुके हैं कि 50 करोड़ यूरोपीय 30 करोड़ अमेरिकी नागरिकों से गुहार लगा रहे हैं कि 14 करोड़ रूसियों से हमारी रक्षा करो. ऐसा इसलिए हो रहा है क्योंकि हमें अपने ऊपर भरोसा नहीं है. उन्होंने संकेत दे दिया है कि अपने में से नेता चुनो, किसी और के भरोसे रहने की जरूरत नहीं है.
ये भी पढ़ें-
पुतिन-वुतिन छोड़ो… ट्रंप का ऐलान हमने अपनी पहली जंग जीत ली!
भारत नहीं आएगा शहजादी का शव, कब और कहां होगा अंतिम संस्कार, जानें पूरी बात