Waqf case: सुप्रीम कोर्ट में वक्फ (संशोधन) अधिनियम 2025 की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली 73 याचिकाओं पर सुनवाई हुई. चीफ जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस संजय कुमार और जस्टिस के. वी. विश्वनाथन की तीन सदस्यीय पीठ इस मामले की सुनवाई कर रही थी. सुनवाई के दौरान कोर्ट ने केंद्र सरकार से एक अहम सवाल पूछा क्या सरकार हिंदू धार्मिक ट्रस्टों में मुसलमानों को शामिल करने की अनुमति देने को तैयार है? यह सवाल वक्फ बोर्ड और केंद्रीय वक्फ परिषद में गैर-मुस्लिम सदस्यों को शामिल करने के प्रावधान के संदर्भ में उठा.
याचिकाकर्ता जिनमें AIMIM प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी, कांग्रेस सांसद मोहम्मद जावेद, और जमीअत उलेमा-ए-हिंद जैसे संगठन शामिल हैं. दावा है कि यह कानून संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार), 15 (भेदभाव निषेध), 25 (धार्मिक स्वतंत्रता), 26 (धार्मिक मामलों के प्रबंधन का अधिकार), 29 (अल्पसंख्यक अधिकार) और 300A (संपत्ति का अधिकार) का उल्लंघन करता है.
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सरकार का पक्ष रखते हुए कहा-
अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने निम्नलिखित धाराओं को असंवैधानिक बताया-
वक्फ संशोधन अधिनियम 2025 पर अंतिम फैसला आने तक अंतरिम रोक.
कानून को असंवैधानिक घोषित करना क्योंकि यह मुस्लिम समुदाय की धार्मिक स्वायत्तता और संपत्ति अधिकारों का हनन करता है.
#WATCH दिल्ली: वक्फ (संशोधन) अधिनियम पर सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई पर अधिवक्ता बरुण कुमार सिन्हा ने कहा, “वक्फ संशोधन अधिनियम को चुनौती देने वाली सभी याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा सुनवाई की गई है… दोनों पक्षों को सुना गया है। वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 को चुनौती देने वाली… pic.twitter.com/H09McuAojj
— ANI_HindiNews (@AHindinews) April 16, 2025
केंद्र का कहना है कि संशोधन भ्रष्टाचार रोकने, पारदर्शिता बढ़ाने और बेहतर प्रशासन के लिए हैं. गैर-मुस्लिमों की नियुक्ति विशेषज्ञता और विविधता के लिए है न कि धार्मिक स्वायत्तता को कम करने के लिए. सात राज्य (राजस्थान, गुजरात, हरियाणा, महाराष्ट्र, असम, उत्तराखंड, छत्तीसगढ़) ने कानून का समर्थन किया है.
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में आदेश सुरक्षित रखा है और केंद्र से दो सप्ताह में जवाब मांगा है. कोर्ट का हिंदू ट्रस्टों में मुस्लिमों को शामिल करने का सवाल यह दर्शाता है कि वह कानून की धर्मनिरपेक्षता और समानता के पहलुओं पर गहराई से विचार कर रहा है. मामला धार्मिक स्वायत्तता, संपत्ति अधिकार और राज्य के हस्तक्षेप के बीच संतुलन का सवाल उठाता है.
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