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आतंकवाद पर मानवता भारी! मुस्लिम कश्मीरी गाइड नजाकत अहमद ने छत्तीसगढ़ के पर्यटकों के बच्चों की बचाई जान… हमले के वक्त कहां थे ये लोग?

जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में 22 अप्रैल 2025 को हुए भीषण आतंकी हमले के बीच एक मुस्लिम कश्मीरी गाइड की बहादुरी और मानवता की कहानी ने सबका दिल जीत लिया. 28 वर्षीय नजाकत अहमद शाह ने अपनी जान जोखिम में डालकर छत्तीसगढ़ के 11 पर्यटकों, जिनमें तीन बच्चे शामिल थे. उनको बैसरन घाटी में आतंकियों की गोलियों से सुरक्षित निकाला.

Pahalgam Terror Attack
inkhbar News
  • Last Updated: April 26, 2025 19:13:30 IST

Pahalgam Terror Attack: जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में 22 अप्रैल 2025 को हुए भीषण आतंकी हमले के बीच एक मुस्लिम कश्मीरी गाइड की बहादुरी और मानवता की कहानी ने सबका दिल जीत लिया. 28 वर्षीय नजाकत अहमद शाह ने अपनी जान जोखिम में डालकर छत्तीसगढ़ के 11 पर्यटकों, जिनमें तीन बच्चे शामिल थे. उनको बैसरन घाटी में आतंकियों की गोलियों से सुरक्षित निकाला. इस हमले में 26 लोगों की जान चली गई लेकिन नजाकत की सूझबूझ ने एक परिवार को नया जीवन दिया.

बैसरन घाटी में आतंकी हमला

पहलगाम की बैसरन घाटी जिसे ‘मिनी स्विट्जरलैंड’ के नाम से जाना जाता है. मंगलवार दोपहर उस समय खून से लथपथ हो गई जब आतंकियों ने पर्यटकों पर अंधाधुंध गोलीबारी शुरू कर दी. नजाकत उस समय छत्तीसगढ़ के मनेन्द्रगढ़-चिरमिरी-भरतपुर जिले के 11 पर्यटकों के ग्रुप के साथ गाइड के रूप में मौजूद थे. इस ग्रुप में चार दंपति और तीन बच्चे शामिल थे. जो कश्मीर में छुट्टियां मनाने आए थे. नजाकत ने बताया ‘हम दोपहर करीब 12 बजे बैसरन घाटी पहुंचे. पर्यटक टट्टू की सवारी और फोटोग्राफी में व्यस्त थे. करीब 2 बजे मैंने अपने साथी कुलदीप (लकी) से कहा कि हमें वापस चलना चाहिए लेकिन तभी गोलियों की आवाज गूंजी.’

नजाकत की बहादुरी

जैसे ही गोलियों की आवाज सुनाई दी, हजारों पर्यटक घबराकर इधर-उधर भागने लगे. नजाकत ने बताया ‘मेरी पहली चिंता पर्यटक परिवारों की सुरक्षा थी. मैंने लकी के बच्चे और एक अन्य बच्चे को अपनी गोद में लिया और जमीन पर लेट गया.’ इलाके में बाड़ होने के कारण भागना मुश्किल था लेकिन नजाकत ने बाड़ में एक छोटा सा कट देखा और उसी रास्ते से बच्चों को सुरक्षित निकाला. उन्होंने कहा ‘परिवार ने मुझसे पहले बच्चों को बचाने को कहा. मैं बच्चों को लेकर पहलगाम भागा और फिर वापस लौटकर बाकी सदस्यों को सुरक्षित निकाला.’

नजाकत जो सर्दियों में छत्तीसगढ़ में कश्मीरी शॉल बेचते हैं. उनकी मुलाकात अरविंद अग्रवाल और उनके साथियों से चिरमिरी में हुई थी. उन्होंने पर्यटकों को कश्मीर घूमने का न्योता दिया था. नजाकत ने कहा ‘पहलगाम को आखिरी पड़ाव इसलिए चुना क्योंकि मेरा गांव नजदीक है और मैं उनकी मेहमाननवाजी करना चाहता था. कश्मीरियों में मेहमाननवाजी का जुनून होता है.’ ग्रुप 17 अप्रैल को जम्मू पहुंचा और श्रीनगर, गुलमर्ग, सोनमर्ग घूमने के बाद पहलगाम आया था.

इस हमले में नजाकत के चचेरे भाई आदिल हुसैन शाह की भी जान चली गई. जो पर्यटकों को बचाने की कोशिश में आतंकियों की गोली का शिकार हो गए. नजाकत ने बताया ‘मैं आदिल के जनाजे में शामिल नहीं हो सका क्योंकि मैंने अपने पर्यटकों को पहले श्रीनगर हवाई अड्डे तक सुरक्षित पहुंचाने का फैसला किया.’ उनकी इस निस्वार्थ भावना ने छत्तीसगढ़ के पर्यटकों को भावुक कर दिया. अरविंद अग्रवाल ने सोशल मीडिया पर लिखा ‘नजाकत ने अपनी जान दांव पर लगाकर हमारी जान बचाई. हम उनका अहसान कभी नहीं चुका पाएंगे.’

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