CPEC Expansion: 21 मई, 2025 को बीजिंग में हुई त्रिपक्षीय बैठक में चीन, पाकिस्तान और अफगानिस्तान ने चीन-पाकिस्तान आर्थिक कॉरिडोर (CPEC) को अफगानिस्तान तक विस्तार करने पर सहमति जताई. यह निर्णय चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) का हिस्सा है जो पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (PoK) से होकर गुजरता है और ग्वादर पोर्ट तक जाता है. इस कदम को भारत के लिए एक सामरिक चुनौती के रूप में देखा जा रहा है क्योंकि यह न केवल भारत की क्षेत्रीय प्रभाव को कम करता है बल्कि चाबहार पोर्ट के जरिए अफगानिस्तान और मध्य एशिया तक भारत की पहुंच को भी प्रभावित कर सकता है.
CPEC, 62 अरब डॉलर की परियोजना 2015 में शुरू हुई थी और इसका उद्देश्य चीन के शिनजियांग प्रांत को पाकिस्तान के ग्वादर पोर्ट से जोड़ना है. अब अफगानिस्तान को शामिल करने का निर्णय कई रणनीतिक उद्देश्यों को पूरा करता है.
क्षेत्रीय कनेक्टिविटी: अफगानिस्तान के जरिए मध्य एशिया तक पहुंच, जिससे चीन को व्यापारिक और ऊर्जा मार्गों में लाभ होगा.
पाक-अफगान तनाव में कमी: पाकिस्तान और तालिबान सरकार के बीच तनाव को कम करने में चीन की मध्यस्थता, खासकर ऑपरेशन सिंदूर के बाद, जहां अफगानिस्तान ने परोक्ष रूप से भारत का समर्थन किया था.उइगर मुद्दे पर नियंत्रण: तालिबान ने उइगर आतंकवादी समूह तुर्केस्तान इस्लामिक पार्टी (TIP) को नियंत्रित करने का आश्वासन दिया. जो चीन के लिए शिनजियांग में सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण है.
भारत की घेराबंदी: CPEC का विस्तार भारत के चाबहार पोर्ट प्रोजेक्ट को कमजोर करने की रणनीति का हिस्सा माना जा रहा है. जिसे भारत अफगानिस्तान और मध्य एशिया तक पहुंच के लिए विकसित कर रहा है.
भारत ने CPEC का विरोध इस आधार पर किया है कि यह PoK से होकर गुजरता है जिसे भारत अपना क्षेत्र मानता है. भारत ने चाबहार पोर्ट (ईरान) को विकसित करने में 2 अरब डॉलर से अधिक का निवेश किया है ताकि पाकिस्तान को बायपास कर अफगानिस्तान और मध्य एशिया तक पहुंच बनाई जा सके. 2016 में भारत, ईरान और अफगानिस्तान के बीच चाबहार समझौता हुआ. जिसके तहत चाबहार को अफगानिस्तान के जरांज शहर से जोड़ा गया.
CPEC का प्रभाव: CPEC का अफगानिस्तान तक विस्तार भारत के चाबहार प्रोजेक्ट को कमजोर कर सकता है क्योंकि यह अफगानिस्तान को वैकल्पिक व्यापार मार्ग प्रदान करता है.
सामरिक नुकसान: CPEC के विस्तार से चीन और पाकिस्तान का मध्य एशिया में प्रभाव बढ़ेगा. जिससे भारत की क्षेत्रीय प्रभुत्व की आकांक्षाओं को चुनौती मिलेगी.
आर्थिक प्रतिस्पर्धा: चाबहार की तुलना में CPEC की 62 अरब डॉलर की परियोजना कहीं अधिक वित्तीय संसाधनों से लैस है जिससे भारत की स्थिति कमजोर हो सकती है.
पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय ने त्रिपक्षीय सहयोग को क्षेत्रीय स्थिरता और आर्थिक कनेक्टिविटी के लिए महत्वपूर्ण बताया. तालिबान ने CPEC में शामिल होने की इच्छा जताई है क्योंकि यह अफगानिस्तान को व्यापारिक केंद्र बनाने और विदेशी निवेश आकर्षित करने में मदद करेगा. तालिबान के उप विदेश मंत्री हाफिज जिया अहमद ने कहा कि यह परियोजना अफगानिस्तान की युद्ध-क्षतिग्रस्त अर्थव्यवस्था के लिए महत्वपूर्ण है.
कई विशेषज्ञ इसे भारत के खिलाफ सामरिक चाल मानते हैं.
कश्मीर मुद्दा: CPEC का PoK से गुजरना भारत की संप्रभुता को चुनौती देता है. यदि अफगानिस्तान इस परियोजना में शामिल होता है तो यह PoK को अंतरराष्ट्रीय मान्यता दिलाने का प्रयास हो सकता है.
चाबहार पर प्रभाव: CPEC का विस्तार चाबहार के व्यापारिक और सामरिक महत्व को कम कर सकता है क्योंकि अफगानिस्तान को ग्वादर पोर्ट के जरिए वैकल्पिक मार्ग मिल जाएगा.
क्षेत्रीय प्रभुत्व: चीन का मध्य एशिया और दक्षिण एशिया में बढ़ता प्रभाव भारत की क्षेत्रीय नीतियों और UNSC स्थायी सीट की महत्वाकांक्षा को कमजोर कर सकता है.
हालांकि कुछ विश्लेषकों का मानना है कि चाबहार और ग्वादर एक-दूसरे के पूरक हो सकते हैं क्योंकि ईरान ने पहले पाकिस्तान और चीन को चाबहार में शामिल होने का न्योता दिया था.
भारत ने CPEC के विस्तार को लेकर कड़ा रुख अपनाया है. विदेश मंत्रालय ने कहा CPEC भारत के क्षेत्र में अवैध रूप से कब्जा किए गए हिस्से से गुजरता है जो भारत की संप्रभुता का उल्लंघन है. भारत की रणनीति में शामिल हैं.
चाबहार का विकास: भारत चाबहार को अफगानिस्तान और मध्य एशिया के लिए एक वैकल्पिक गेटवे के रूप में तेजी से विकसित कर रहा है. 2017 में पहला माल (7 लाख टन गेहूं) और 2019 में अफगानी सूखे मेवों की खेप चाबहार के जरिए भेजी गई.
कूटनीतिक विरोध: भारत ने CPEC को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर चुनौती दी है, इसे संप्रभुता के खिलाफ बताया है.
अफगानिस्तान के साथ सहयोग: भारत ने अफगानिस्तान में 2 अरब डॉलर से अधिक का निवेश किया है. जिसमें सड़क, बांध, और संसद भवन का निर्माण शामिल है. हाल की जयशंकर-मुत्तकी वार्ता में चाबहार को अफगानिस्तान से जोड़ने की संभावनाओं पर चर्चा हुई थी.
CPEC की चुनौतियां: CPEC को बलूचिस्तान में विद्रोह, सुरक्षा खतरों और पाकिस्तान की आर्थिक अस्थिरता से जूझना पड़ रहा है. ग्वादर में स्थानीय लोग CPEC से लाभ न मिलने की शिकायत करते हैं.
भारत के लिए अवसर: यदि भारत चाबहार को तेजी से विकसित करे और तालिबान के साथ कूटनीतिक संबंध मजबूत करे तो वह CPEC के प्रभाव को कम कर सकता है.
सुरक्षा चिंताएं: CPEC के विस्तार से अफगानिस्तान में उइगर आतंकवादियों और इस्लामिक स्टेट खुरासान (ISK) जैसे समूहों का प्रभाव बढ़ सकता है जो भारत के लिए भी चिंता का विषय है.
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