China Role In Iran : ईरानी परमाणु ठिकानों पर बमबारी से तेहारन हिल गया है। इस जंग में जहां एक तरफ इजरायल-अमेरिका और उसके सहयोगी देश एक तरफ खड़े हुए हैं तो वहीं ये शिया मुल्क एकदम अकेला खड़ा हुआ है। रूस-चीन जैसे देश भी, जो ईरान का कंधा से कंधा मिलाकर साथ देने की बात करते हैं उन्होंने भी उससे कन्नी काट ली है।
चीन की बात करें तो ईरान पर अमेरिकी हमलों को लेकर बीजिंग की तरफ से सिर्फ आलोचना की गई है। लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि उसका रुख साफ तौर पर स्वार्थी और सतर्क दिखाई दे रहा है। विशेषज्ञों का मानना है कि चीन का यह कदम सिर्फ दिखावटी है और वह ठोस कार्रवाई से बच रहा है. वह अमेरिका और इजरायल के खिलाफ ईरान को सीधे तौर पर कोई सैन्य सहयोग देने की बात नहीं कर रहा है।
चीन और ईरान के बीच गहरे आर्थिक और कूटनीतिक संबंध हैं। चीन ईरान से बड़ी मात्रा में तेल आयात करता है, जो उसकी ऊर्जा ज़रूरतों का अहम हिस्सा है। दोनों देश संयुक्त सैन्य अभ्यास भी करते हैं और शंघाई सहयोग संगठन जैसे मंचों पर एक-दूसरे का समर्थन करते हैं। इसके बावजूद चीन ने अमेरिका के खिलाफ़ कोई सख्त कार्रवाई नहीं की।
उसने सिर्फ़ मौखिक निंदा की और मध्यस्थता की पेशकश करके अपनी छवि चमकाने की कोशिश की। यह रवैया चीन की उस रणनीति को दर्शाता है जिसमें वह न तो ईरान के साथ अपने संबंधों को पूरी तरह से जोखिम में डालना चाहता है और न ही अमेरिका के साथ टकराव मोल लेना चाहता है।
विशेषज्ञों का कहना है कि चीन की दोहरी नीति उसके भू-राजनीतिक और आर्थिक हितों से प्रेरित है। ईरान के साथ तनाव बढ़ने से चीन की तेल आपूर्ति प्रभावित हो सकती है, जो उसकी अर्थव्यवस्था के लिए नुकसानदेह होगी। साथ ही अमेरिका के साथ व्यापार और कूटनीतिक संबंध भी चीन के लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं।
ऐसे में चीन ने सिर्फ बयानबाजी करके अपनी जिम्मेदारी पूरी करने की कोशिश की है। संयुक्त राष्ट्र में चीन के प्रतिनिधि ने कहा कि अमेरिका के हमलों से मध्य पूर्व में अस्थिरता बढ़ सकती है, लेकिन ठोस कार्रवाई का कोई प्रस्ताव पेश नहीं किया गया।
आपको बता दें कि चीन का यह रवैया नया नहीं है। पहले भी वह क्षेत्रीय और वैश्विक मुद्दों पर तटस्थ रहकर अपने हितों को साधता रहा है। उदाहरण के लिए रूस-यूक्रेन विवाद में भी चीन ने दोनों पक्षों के साथ संतुलन बनाए रखा और किसी का खुलकर समर्थन नहीं किया। ईरान के मामले में भी उसका यही रवैया दिख रहा है। वह न तो पूरी तरह से ईरान के साथ खड़ा है और न ही अमेरिका के खिलाफ खुलकर सामने आ रहा है। इसके बजाय वह मध्यस्थता की बात करके अपनी छवि एक जिम्मेदार वैश्विक शक्ति के रूप में पेश करना चाहता है।