Akal Badi Ya Bhains: ‘अक्ल बड़ी या भैंस?’ इस कहावत को आपने कई बार सुना होगा, लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि इसमें ‘भैंस’ का क्या काम? आम बोलचाल में इस्तेमाल की जाने वाली इस कहावत का असली अर्थ बहुतों को नहीं पता, और यही इसकी सबसे दिलचस्प बात है। दरअसल, यह कहावत जिस रूप में आज बोली जाती है, वह शुद्ध नहीं है। असल में, इसका सही वाक्य है ‘अक्ल बड़ी या वयस’। यहां ‘वयस’ संस्कृत का शब्द है, जिसका अर्थ होता है ‘उम्र’। इसका मतलब है कि व्यक्ति की समझदारी उसकी उम्र से बड़ी होती है या नहीं।
समय के साथ यह शुद्ध शब्द ‘वयस’ आम लोगों की जुबान पर आते-आते ‘भैंस’ बन गया। यही भाषा में अपभ्रंश कहलाता है, जहां मूल शब्द का उच्चारण या रूप बदलकर कुछ और बन जाता है। इसी वजह से आज लोग मजाकिया अंदाज़ में कहते हैं, ‘अक्ल बड़ी या भैंस’। हालांकि, सोशल मीडिया पर भी इस कहावत को लेकर अक्सर बहस होती रहती है। कुछ लोग इसे मज़ाक समझते हैं, तो कुछ इसे गलत जानकारी फैलाने वाला वाक्य मानते हैं।
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लेकिन जब हम भाषा और संस्कृति के इतिहास को खंगालते हैं, तो यह स्पष्ट होता है कि इस कहावत की जड़ें संस्कृत में हैं और इसका सीधा-सीधा संबंध बुद्धि और उम्र के तुलनात्मक मूल्य से है। कुल मिलाकर, यह कहना गलत नहीं होगा कि कहावतें न केवल भाषा को समृद्ध बनाती हैं, बल्कि उनमें छिपे अर्थ और इतिहास को जानना भी उतना ही रोचक होता है। अगली बार जब कोई कहे, ‘अक्ल बड़ी या भैंस’, तो आप मुस्कुरा कर सही जवाब दे सकते हैं, ‘भाई, असल में तो अक्ल बड़ी या वयस!’