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इमरजेंसी के इंदिरा गांधी के फैसले के खिलाफ पार्टी और सरकार से उठी सिर्फ एक आवाज

जब 25 जून 1975 को रामलीला मैदान की रैली में जयप्रकाश नारायण ने सेना और पुलिस से आव्हान किया कि जो हुकुम आत्मा और जमीर के खिलाफ हो उसे हरगिज मत मानो. तो इंदिरा ने इसे बगावत बताया और उन्हें इमरजेंसी लगाने का बहाना मिल गया.

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  • Last Updated: November 11, 2017 23:33:07 IST

नई दिल्ली: जब 25 जून 1975 को रामलीला मैदान की रैली में जयप्रकाश नारायण ने सेना और पुलिस से आव्हान किया कि जो हुकुम आत्मा और जमीर के खिलाफ हो उसे हरगिज मत मानो. तो इंदिरा ने इसे बगावत बताया और उन्हें इमरजेंसी लगाने का बहाना मिल गया. ना इंदिरा के सलाहकारों में और ना उनकी कैबिनेट में किसी ने इंदिरा के फैसले पर इतनी हिम्मत दिखाई कि उनके फैसले पर उगली उठाई, सिवाय एक व्यक्ति के. इंदिरा ने पश्चिम बंगाल कांग्रेस नेता और अपने करीबी सहयोगी सिद्धार्थ शंकर रे से लीगल एडवाइज मांगी, इंदिरा ने सिद्धार्थ से कहा – कुछ करो, हम ऐसा नहीं होने दे सकते, मुझे लगता है इंडिया एक बेबी की तरह है, जैसे कि कोई एक बेबी को हिलाता है, हमें भी इंडिया को उसी तरह हिलाना चाहिए, मुझे ऐसा लगता है.

सिद्धार्थ ने घर जाकर लॉ के कागज, पुराने ऑर्डर देखना शुरू कर दिया, उसे लॉ जरनल्स में यूएस सुप्रीम कोर्ट के कुछ आदेश मिले, उनको दिखाकर इंदिरा को उसने सलाह दी कि विद्रोह होने तक रुकने का इंतजार ना करो, गुजरात में कांगेस विधायकों के घर जलाए गए, अब बिहार में वो सब होने जा रहा है, अब इमरजेंसी ही रास्ता है. रात 8 बजे इंदिरा, रे और देवकांत बरुआ आदि के साथ राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद से मिलीं और उन्हें बताया.

रात को 11 बजकर 20 मिनट पर इंदिरा के निजी सचिव आर के धवन को लैटर लेकर राष्ट्रपति के पास भेजा गया और फखरुद्दीन अली अहमद ने उस पर फौरन साइन कर दिए. रात के ढाई बजे रामलीला मैदान रैली से लौटे जयप्रकाश नारायण को गांधी शांति प्रतिष्ठान से गिरफ्तार कर लिया गया. सुबह 6 बजे इंदिरा ने कैबिनेट बुलाई और बताया कि देश में इमरजेंसी लगा दी गई है, हर कोई खामोश रहा सिवाय रक्षा मंत्री स्वर्ण सिंह के, स्वर्ण सिंह ने क्या ऐतराज किया, जानने के लिए देखिए हमारा ये वीडियो शो विष्णु शर्मा के साथ.

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