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‘तीन तलाक और यूनिफॉर्म सिविल कोड के पीछे मोदी सरकार का कोई गुप्त एजेंडा नहीं’

केंद्रीय कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने गुरुवार को कहा है कि मुस्लिमों में ट्रिपल तलाक के विरोध के पीछे या फिर यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू करने का मोदी सरकार का कोई गुप्त एजेंडा नहीं है. इसके साथ ही उन्होंने विपक्षी दलों के आरोपों को और धार्मिक संगठनों को निराधार बताते हुए खारिज कर दिया.

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  • Last Updated: October 20, 2016 18:22:40 IST
नई दिल्ली. केंद्रीय कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने गुरुवार को कहा है कि मुस्लिमों में ट्रिपल तलाक के विरोध के पीछे या फिर यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू करने का मोदी सरकार का कोई गुप्त एजेंडा नहीं है. इसके साथ ही उन्होंने विपक्षी दलों के आरोपों को और धार्मिक संगठनों को निराधार बताते हुए खारिज कर दिया. केंद्रीय मंत्री ने जोर दिया कि भारत धर्म और पंथ की स्वतंत्रता का हमेशा से सम्मान करता है लेकिन इससे जुड़े भेदभावपूर्ण या अनुचित प्रथाएं इससे जुड़ी नहीं रह सकतीं और न ही उनकी रक्षा की जानी चाहिए.
 
 
प्रसाद ने कहा है कि यह आशंका कि हम यूनिफॉर्म सिविल कोड ला रहे हैं या कोई एजेंडा है, ये पूरी तरह से निराधार है. दोनों मामलों को आपस में जोड़ने की कोई जरूरत नहीं है. विधि आयोग इस मुद्दे पर गौर कर रहा है और सभी पक्षों द्वारा हर मुद्दो को व्यापक विचार विमर्श संभव होने दें. यूनिफॉर्म सिविल कोड का विरोध करने वाले लोगों को विधि आयोग को बताए जिसने इस मुद्दे पर आम लोगों से राय मांगी है.
 
 
प्रसाद ने कहा कि अपना विरोध भी बताइए, लेकिन अभी केंद्र सरकार को कुछ नहीं कहना है. इन मुद्दों पर विधि आयोग को आरम से गौर करने दें. इन मुद्दों के पीछे सरकार का कोई गुप्त एजेंडा जिसका मैं अपने पूरे अधिकार से इनकार करता हूं.  उन्होंने जोर दिया कि ‘लैंगिक समानता, लैंगिक न्याय और लैंगिक गरिमा’ नरेंद्र मोदी सरकार की पहली प्राथमिकता के मूल में हैं. 
 
 
केंद्रीय मंत्री ने कहा कि अब वक्त बदल रहा है और सभी मुस्लिम महिलाओं समेत भारत के लोगों का विकास के समान सहभागी बनना चाहते हैं. उन्होंने आगे कहा कि मुझे पूरा भरोसा है कि भारतीय मुसलमान देश के संवैधानिक मूल्यों पर चलकर पूरी दुनिया के लिए रोल मॉडल बन सकते हैं. कानून मंत्री ने कहा कि जब विश्व में 12 से भी ज्यादा मुस्लिम देश तीन तलाक जैसी प्रथा को नियंत्रित कर सकते हैं, तो केंद्र सरकार का रुख शरीयत के खिलाफ है जैसी दलील कैसे स्वीकार की जा सकती है.

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