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सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश पर पाबंदी दलितों के साथ छूआछूत की तरह है- एमिकस राजू रामचंद्रन

Sabarimala Ayyappa Temple Women Ban hearing Supreme Court: केरल के सबरीमाला अयप्पा मंदिर में महिलाओं के प्रवेश को लेकर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई चल रही है. सुनवाई के दौरान एमिकस राजू रामचंद्रन ने दलील दी कि मंदिर में महिलाओं के प्रवेश पर रोक उसी तरह है जैसे कि दलितों के साथ छूआछूत.

Sabarimala Ayyappa Temple Women Ban hearing Supreme Court
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  • Last Updated: July 19, 2018 13:44:50 IST

नई दिल्ली. केरल के सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश के मामले पर सुप्रीम कोर्ट में गुरूवार को भी सुनवाई जारी है. सबरीमाला मंदिर में 10 से 50 साल तक की महिलाओं के प्रवेश पर रोक है. सुप्रीम कोर्ट इस मामले पर सुनवाई कर रहा है कि यह रोक संवैधानिक रुप से सही है या गलत. इस मामले पर सुनवाई के दौरान न्यायमित्र एमिकस राजू रामचंद्रन ने कहा कि अगर किसी महिला को मासिक धर्म की वजह से रोका जाता है तो यह दलितों के साथ भेदभाव जैसा है.

केरल हाईकोर्ट ने इस पाबन्दी को सही ठहराते हुए कहा था कि मंदिर जाने से पहले 41 दिन का ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करना होता है. महिलाएं मासिक धर्म की वजह से इसे पूर्ण नहीं कर पातीं. लिहाज़ा उनके प्रवेश पर पाबंदी जायज है. केरल हाइकोर्ट के इसी फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है. इसी चुनौती पर सुनवाई के दौरान एमिकस राजू रामचंद्रन ने महिलाओं के प्रवेश पर रोक को दलितों के साथ किए जाने वाले भेदभाव की तरह बताया.

बता दें कि भगवान अयप्पा के सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश पर प्रतिबंध के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पांच जजों की संविधान पीठ सुनवाई कर रही है. बुधवार को इस मसले पर सुनवाई के दौरान केरल सरकार ने महिलाओं को प्रवेश दिए जाने के पक्ष में दलील दी थी. इस पर सीजेआई ने कहा था कि केरल सरकार चौथी बार अपना स्टैंड बदल रही है. केरल सरकार इससे पहले महिलाओं के प्रवेश पर आपत्ति जता चुकी है इसी कारण संविधान पीठ ने यह टिप्पणी की थी.

बुधवार को सीजेआई दीपक मिश्रा ने टिप्पणी की थी कि मंदिर प्राइवेट संपत्ति नहीं, बल्कि सावर्जनिक संपत्ति है और देश में प्राइवेट मंदिर का कोई सिद्धांत नहीं है. ऐसे में अगर पुरुष मंदिर में प्रवेश करता है तो महिलाओं को भी इजाजत मिलनी चाहिए. संविधान पीठ में शामिल जस्टिस डीवाई चंद्रचूड ने कहा था कि संविधान के अनुच्छेद 25 के तहत सभी नागरिक किसी धर्म को मानने के लिए स्वतंत्र हैं. एक महिला का प्रार्थना करने का अधिकार किसी विधान के अधीन नहीं है बल्कि ये संवैधानिक अधिकार है.

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