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ऑपरेशन पोलो से समझा जा सकता है सरदार पटेल का कद जिन्होंने हैदराबाद को भारत में किया शामिल

operation polo: 13 सितम्बर के दिन ठीक 70 साल पहले 1948 में ‘ऑपरेशन पोलो’शुरू हुआ था इस आपरेशन को भारतीय सेना ने अंजाम दिया था. इस ऑपरेशन की वजह से ही हैदराबाद भारत का हिस्सा बना था. हैदराबाद को भारत का हिस्सा बनाने में सरदार पटेल जी का बहुत बड़ा हाथ रहा था.

operation polo 13 September 1948 make hyderabad part of india
inkhbar News
  • Last Updated: September 13, 2018 17:39:14 IST

नई दिल्ली. नई पीढी ने शायद ‘ऑपरेशन पोलो’ का नाम नहीं सुना होगा, ऐसे में इस पीढ़ी के नौजवान सुनते हैं सरदार पटेल की जिस प्रतिमा का उदघाटन पीएम मोदी 31 अक्टूबर को करने जा रहे हैं, वो दुनियां की सबसे ऊंची प्रतिमा होगी, तो उन्हें हैरत होती है. लेकिन जिन लोगों ने इतिहास को ढंग से पढ़ा है, उनको हैरत नहीं होती. आज मॉर्डन इंडिया यानी आज के भारत को आप लोग जैसा देखते हैं, उसको ये रूप देने में सरदार पटेल का रोल सबसे बड़ा आंका जाता है, खासतौर पर भूगोल के मामले में. आज यानी 13 सितम्बर के दिन ठीक 70 साल पहले 1948 में शुरू हुआ था ‘ऑपरेशन पोलो’.

अगर वो ऑपरेशन सरदार पटेल शुरू ना करते, तो भारत के बीचोंबीच एक दूसरा देश होता, जिसका क्षेत्रफल होता 2 लाख 39 हजार 314 वर्ग किलोमीटर. यानी दिल्ली समेत आखिरी के 10 राज्य जोड़ दिए जाएं तो भी उनका क्षेत्रफल उस वक्त की हैदराबाद स्टेट के बराबर नहीं था, जिसके लिए ऑपरेशन पोलो शुरू किया गया था, ये सभी राज्य हैं दिल्ली, गोवा, सिक्किम, त्रिपुरा, नागालैंड, मिजोरम, मणिपुर, मेघालय, केरल और हरियाणा. यानी यूपी के लगभग बराबर होता इसका क्षेत्रफल.

हैदराबाद राज्य कभी निजाम ने बसाया था, तुर्की मुसलमान था, जो मुगल शासकों के अधीन दक्षिण की जिम्मेदारी संभालता था. लेकिन बाद के मुगल कमजोर पड़ते गए और आखिरकार निजाम को सेनापति के रोल में आना पड़ा, लेकिन वो अंदरखाने मुगलों के बजाय खुद को मजबूत करने में लगा रहा. 1720 में कमरुद्दीन खान ने अलग हैदराबाद राज्य का ऐलान कर दिया, अविभाजित आंध्र प्रदेश समेत इसमें कर्नाटक और महाराष्ट के कुछ हिस्से भी आते थे. एक दिन वो आया जब हैदराबाद राज्य भारत की सबसे अमीर स्टेट था, और उसका निजाम दुनियां का सबसे अमीर आदमी, टाइम मैगजीन तक ने उसके बारे में लिखा। गोलकुंडा में हीरे की खानों ने भी इसमें काफी योगदान दिया। हैदराबद राज्य ने अपनी रेलवे लाइन, एयरलाइंस, रेडियो स्टेशन आदि सब कुछ तैयार कर लिया था.

दशकों तक मराठों ने भी निजाम से चौथ वसूली, लेकिन बाजीराव के जाने के बाद मराठे भी कमजोर हो गए, इधर 1798 में उसे ब्रिटिश आधिपत्य स्वीकार करना पड़ा. निजाम आसफ अली जाह सेकंड ने अंग्रेजों के साथ संधि पर हस्ताक्षर कर दिए. तब से लगातार हैदराबाद एक अंग्रेजी आधिपत्य वाली रियासत के रूप में जानी जाने लगी. लेकिन जब भारत की आजादी की योजना पर विचार हो रहा था, तो कश्मीर और जूनागढ़ की तरह हैदराबाद भी आजाद मुल्क बनने के मूड में था. भारत ने हैदराबाद से भी उस वक्त स्टेंड् स्टिल एग्रीमेंट कर लिया. हालांकि वहां 85 फीसदी हिंदू थे, लेकिन प्रशासन में 90 फीसदी मुसलमान थे. ये हैदराबाद ही था, जो सावरकर और गांधीजी के रिश्तों में फांस बन गया था. एक बार हिंदुओं की प्रशासन में संख्या बढ़ाने के लिए सावरकर ने आंदोलन किया, तो गांधीजी से सहयोग मांगा, गांधीजी ने मना कर दिया, जवाब में सावरकर ने भी भारत छोड़ो आंदोलन में सहयोग करने से मना कर दिया.

इधर एक साल के लिए स्टेंडस्टिल एग्रीमेंट के बावजूद सरदार पटेल को निजाम उस्मान अली पर भरोसा नहीं था. उन्होंने एक सीक्रेट इन्वेस्टीगेशन टीम को निजाम के मन की थाह लेने के काम पर लगाया. तो पता चला कि निजाम पाकिस्तान से दोस्ती बढ़ा रहा है, उनके कराची पोर्ट को इस्तेमाल करने का एग्रीमेंट करने जा रहा और पाकिस्तान को बिना ब्याज के बीस करोड़ का कर्ज देने वाला है और पाकिस्तान उस पैसे को भारत के साथ कश्मीर की जंग में इस्तेमाल करने वाला था ताकि उससे हथियार खरीद सके.

पटेल ने फौरन एक्शन लिया और निजाम को एग्रीमेट की याद दिलाई, जो नवम्बर तक लागू था। निजाम ने पैसे की मदद तो पाकिस्तान को रोक दी, लेकिन एक नए तरीके से जंग छेड़ दी. आज जिसे आप ओबेसी के संगठन एआईएमआईएम के तौर पर जानते हैं, वो संगठन कभी मजलिस एक इत्तिहादुल मसलिमीन यानी एमआईएम के नाम से शुरू हुआ था। रजाकारों का ये संगठन उन मुस्लिमों का था, जो हैदराबाद को खलीफा के राज्य के तौर पर देखना चाहते थे. इसके सिपाहियों को रजाकार कहा जाता था. उस वक्त इस संगठन का मुखिया था कासिम रिजवी. रिजवी ने दो लाख ऐसे रजाकारों को सैन्य ट्रेनिंग देनी शुरू की, जो हैदराबाद रियासत के लिए अपनी जान दे सकें. इघर राज्य के हिंदू ये सोचकर परेशान होने लगे कि भारत में नहीं मिला हैदराबाद तो उनका क्या भविष्य होगा.

सरदार पटेल ने एक बार रिजवी से भी मुलाकात की, तो रिजवी ने उनसे काफी रूखा व्यवहार किया. अब तो वो जिन्ना की तरह अपने भाषणों में दूसरे डायरेक्ट एक्शन की बातें करने लगा था. जिसका सीधा असर ये हुआ कि हिदुओं के खिलाफ हिंसा होने लगी, पूरे हैदराबाद राज्य में हिंदू आतंक के साए में जीने लगे, जुलाई अगस्त के महीने में ही 909 रेप और 347 मर्डर के साथ अनगिनत लूट और दंगे की वारदातें हुईं तो पटेल रुक नहीं पाए. सितम्बर के पहले हफ्ते में इंडियन आर्मी के आला अफसरों के साथ सरदार पटेल ने मीटिंग रखी. जबकि नेहरू पुलिस एक्शन के खिलाफ थे, पटेल की बेटी मनिबेन ने अपनी किताब में लिखा है कि पटेल ने नेहरू की राय को दरकिनार करते हुए एक्शन लेने का मूड बना लिया और आर्मी को हरी झंडी दिखा दी.

मेजर जनरल चौधरी की अगुवाई में 36000 भारतीय सैनिक 13 सितम्बर की सुबह से ही हैदराबाद की सड़कों पर थे, रजाकारों को तिनके की तरह बिखेर दिया गया। 100 घंटे के अंदर निजाम की सेना और रजाकार हार मान चुके थे। 17 सितम्बर को तो निजाम ने रेडियो पर अपनी हार का ऐलान कर दिया। एमआईएम के चीफ रिजवी को गिरफ्तार कर लिया गया और निजाम ने सरेंडर कर दिया। रिजवी को उम्रकैद की सजा दी गई, लेकिन एक राहत भी दी गई कि अगर वो पाकिस्तान चला जाए तो उसकी सजा कम भी हो सकती है. 9 साल बाद 1857 में वो पाकिस्तान चला गया, लेकिन जाने से पहले एक बार हैदराबाद आया और अब्दुल वाहिद ओबेसी को एमआईएम की जिम्मेदारी सौंप गया. ओबैसी ने उसमें ऑल इंडिया शब्द जोडकर AIMIM बना दिया. आज भी पार्टी वही ओबैसी परिवार चला रहा है.

ऐसे में केवल हैदराबाद ही नहीं जूनागढ़ समेत बाकी सभी 500 से भी ज्यादा रियासतों को शामिल करने वाले सरदार पटेल को इतिहास में सही जगह नहीं मिली. लोग मानते हैं कि आज पूरा कश्मीर भी भारत में होता अगर पीएम नेहरू ने अपने गृह राज्य का हवाला देकर कश्मीर की जिम्मेदारी पटेल से अपने सर ना ले ली होती.

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