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बीमार लोगों के लिए मसीहा है मेडिसीन बाबा, दिव्यांग होने के बावजूद लोगों की करते हैं हरसंभव मदद

आज के जमाने में कोई आपके लिए बिना किसी स्वार्थ भाव से कुछ करें तो वह अपने आप में मिसाल बन जाती है. ऐसा ही कुछ किया है 80 साल के ओमकार नाथ शर्मा. ओमकार नाथ शर्मा को लोग उनके असली नाम से ज्यादा उन्हें 'मेडीसीन बाबा' के नाम से जानते हैं.

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  • Last Updated: January 24, 2017 12:53:27 IST
नई दिल्ली: आज के जमाने में कोई आपके लिए बिना किसी स्वार्थ भाव से कुछ करें तो वह अपने आप में मिसाल बन जाती है. ऐसा ही कुछ किया है 80 साल के ओमकार नाथ शर्मा. ओमकार नाथ शर्मा को लोग उनके असली नाम से ज्यादा उन्हें ‘मेडीसीन बाबा’ के नाम से जानते हैं.
 
 
इन सबमें सबसे दिलचस्प बात यह है कि ओमकार नाथ खुद 80 साल के व्यक्ति है इस उम्र में लोग अक्सर दूसरों के सहारे के मोहताज होते हैं. और लेकिन ओमकार नाथ पैरों से 40 फीसदी दिव्यांग होने के बावजूद वह दूसरे का सहारा बने हुए हैं. इतना ही नहीं पैरों के ऐसी स्थिती होते हुए रोजाना बसों में कई किलोमीटर का सफर करते हैं और पांच किलोमीटर पैदल चलकर दवा खरीद कर लाते हैं.
 
आपको बता दें कि जब शुरू-शुरू में वो किसी को अपनी ये प्लान बताते थे लोग उनका मजाक उड़ाते थे. लेकिन आज समय ऐसा है देश-विदेश से लोग उनके पास दवा के पार्सल भेजते हैं. आज उन्हें मेडिसिन बाबा के नाम से लोग जानते है. मेडिसिन बाबा बताते हैं कि 2008 में लक्ष्मी नगर में मेट्रो हादसे के बाद कई लोगों को दवा की कमी में तड़पते देखा.
 
इस घटना ने उनकी जिंदगी बदल दी क्योंकि इस घटना के बाद से ही दवा इकट्ठी करने का सिलसिला आज तक बदस्तूर जारी है. शुरू में जो दवा मिलती उसे राम मनोहर लोहिया व अन्य अस्पतालों में गरीबों को बांट आते थे. एक साल ही हुआ कि एक दिन एक व्यक्ति ने टोक दिया कि आप न फार्मासिस्ट हो और न ही डॉक्टर, फिर ऐसे दवा कैसे बांट सकते हो. उसके बाद दवाइयां चैरिटेबल ट्रस्ट और अस्पतालों में देनी शुरू कर दी.
 
 
आइए जानते हैं मेडिसिन बाबा की पूरी कहानी
लोगों ने आर्थिक मदद भी की तो दवाएं भी बढ़ीं. किराये का एक बड़ा घर लेकर एक हिस्से में आशियाना और दूसरे हिस्से में दवाखाना बनाकर एक फार्मासिस्ट रख लिया. जरूरतमंदों को इस दवाखाने से दवाएं तो मिलती ही हैं, साथ ही अगर कोई चिकित्सक या अस्पताल गरीबों के लिए दवा या जीवन रक्षक उपकरण मांगते हैं तो उन्हें उपलब्ध कराया जाता है. पहले दवाओं का टोटा होता था, अब लाखों रुपये की दवाएं उलब्ध हैं. बहुत से लोग खुद दवा पहुंचाने आते हैं.
 
देश-विदेश से लोग दवाइयों के पार्सल भी भेजते हैं, लेकिन मेडिसन बाबा अभी भी लोगों को जागरूक करने के लिए दवा मांगते हैं कि घर में बची हुई दवा फेंकें नहीं इसे किसी जरूरतमंद तक पहुंचाया जाए. वह रोजाना सुबह 10 बजे घर से निकलते हैं. वे वही दवाएं लेते हैं जिनकी एक्सपायरी डेट कई महीने बची हो.
 
बता दें कि शुरुआत में उनके परिवार ने भी उनका विरोध किया, लेकिन गरीबों की मुस्कराहट को देख अब परिवार भी सहयोग कर रहा है. उनका बेटा इस कार्य से जुड़ गया है. खरीदकर भी देते हैं दवाएं किसी गरीब मरीज की किडनी फेल है या कैंसर पीड़ित है तो बाबा अपने पास से दवाएं खरीदकर भी देते हैं.
 
हर महीने 40 हजार से ज्यादा की दवा खरीदते हैं. बाबा कहते हैं कि दवाइयों की कीमत बाजार में बहुत ज्यादा है. कई परिवार दवा खरीदने में ही तबाह हो जाते हैं. ऐसे में जेनेरिक दवाओं के प्रचलन को बढ़ाना जरूरी है. मेडिसिन बाबा को दर्जनों पुरस्कार व उपहार भी मिल चुके हैं.बजाज कंपनी ने मोटर साइकिल उपहार में दी.
 
मेडिसिन बाबा को मिलते हैं तरह-तरह के गिफ्ट
कोलकाता की कंपनी आइसीएमआर ने नैनो कार दी. हांगकांग के एक व्यक्ति ने दिव्यांगों वाली स्कूटी गिफ्ट की. हर कोई कर सकता सहयोग मेडिसिन बाबा के पास दवा पहुंचाने और लेने के लिए मेडिसिन बाबा का पता है.
 

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