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JNUSU Elections 2017: JNU छात्रसंघ चुनाव की काउंटिंग शुरू, ‘लाल किला’ बचेगा या नहीं?

वामपंथी राजनीति के गढ़ कहे जाने वाले 'लाल किला' यानी कि जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी में हुए छात्र संघ चुनाव की काउंटिंग शुरू हो चुकी है. अब सबकी नजरें इस बात पर टिकी है कि लाल किला बचेगा या नहीं. कारण कि इस बार लेफ्ट को एबीवीपी ने जोरदार टक्कर दी है. लेफ्ट में बिखराव का फायदा उठाकर एबीवीपी सेंट्रल पैनल की चार में से कुछ सीटें जीतने की आस में है.

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  • Last Updated: September 8, 2017 18:10:28 IST
नई दिल्ली. वामपंथी राजनीति के गढ़ कहे जाने वाले ‘लाल किला’ यानी कि जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी में हुए छात्र संघ चुनाव की काउंटिंग शुरू हो चुकी है. अब सबकी नजरें इस बात पर टिकी हैं कि लाल किला बचेगा या नहीं. कारण कि इस बार लेफ्ट को एबीवीपी ने जोरदार टक्कर दी है. लेफ्ट में बिखराव का फायदा उठाकर एबीवीपी सेंट्रल पैनल की चार में से कुछ सीटें जीतने की आस में है.
 
जेएनयू छात्रसंघ चुनाव में अध्यक्ष पद के लिए कुल 6 कैंडिडेट मैदान में हैं जिनमें 5 लड़कियां हैं जबकि 1 लड़का. 5 लड़कियां अलग-अलग संगठनों की तरफ से चुनाव लड़ रही हैं जबकि एकमात्र लड़का निर्दलीय है. बता दें कि जेएनयू छात्र संघ चुनाव के लिए शुक्रवार को कुल तीन सेंटरों पर वोट डाले गये. 
 
जेएनयू छात्रसंघ पर इस समय आइसा और एसएफआई का कब्जा है जो क्रमशः सीपीआई-एमएल और सीपीएम की छात्र यूनिट हैं. मगर इस बार लेफ्ट में बिखराव का फायदा उठाने के मूड में एबीवीपी है. इस समय आइसा के मोहित पांडे अध्यक्ष, एसएफआई की शत्रुपा चक्रवर्ती महासचिव, एसएफआई के अमल उपाध्यक्ष और आइसा के तबरेज़ संयुक्त सचिव हैं.
 
 
तत्कालीन छात्रसंघ अध्यक्ष कन्हैया कुमार के नारेबाजी को लेकर विवाद के बाद 2016 में जब चुनाव हुआ था तो इससे पहले एक-दूसरे के खिलाफ चुनाव लड़ने वाले आइसा और एसएफआई ने हाथ मिलाया ताकि एबीवीपी को रोका जा सके. कन्हैया कुमार के संगठन एआईएसएफ ने चुनाव नहीं लड़ा था जो सीपीआई की छात्र विंग है.
 
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लेफ्ट के दोनों बड़े छात्र संगठनों के साथ आने की वजह 2015 के चुनाव में एबीवीपी के सौरभ शर्मा का संयुक्त सचिव पद जीत जाना था जिससे उन्हें महसूस हुआ कि एबीवीपी लेफ्ट के गढ़ में तेजी से पैठ बना रहा है. सेंट्रल पैनल के चार पदों में किसी भी पद पर 14 साल बाद एबीवीपी की वापसी सौरभ शर्मा ने कराई थी.
 
ये बात लेफ्ट वाले भी दबी जुबान से कबूल करते हैं कि एबीवीपी को काडर वोट मिलता है जो 1000 के आस-पास हैं. एबीवीपी को अध्यक्ष पद के लिए 2015 में 956 और 2016 में 1100 वोट मिले थे. मतलब साफ है कि एबीवीपी का वोट बढ़ रहा है लेकिन 2016 में वोट बढ़ने के बाद भी आइसा और एसएफआई ने साथ आकर उसे रोक दिया.
 
 
इस बार आइसा और एसएफआई के साथ डीएसएफ (डेमोक्रेटिक स्टुडेंट्स फेडरेशन) भी आ गया है, जो 2016 में इनके खिलाफ लड़ा था. डीएसएफ भी लेफ्ट छात्र संगठन है जो एसएफआई से अलग हुए लोगों ने बनाया है. डीएसएफ पिछले चुनाव में ज्वाइंट सेक्रेटरी पोस्ट पर दूसरे नंबर पर रही थी.
 
2016 के चुनाव में उतरे आंबेडकरवादी छात्र संगठन बाप्सा (बिरसा आंबेडकर फुले स्टुडेंट्स एसोसिएशन) ने कड़ी टक्कर दी थी. बाप्सा सेंट्रल पैनल के चार पद में कोई पद निकाल तो नहीं सकी लेकिन अध्यक्ष पद का चुनाव वो महज 400 वोट से हार गया. बाप्सा कैंडिडेट उपाध्यक्ष और महासचिव पद पर तीसरे नंबर पर रहे थे.
 
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सेंट्रल पैनल के 4 पदों के लिए किस संगठन से कौन-कौन कैंडिडेट
 
लेफ्ट यूनिटी- एसएफआई, आइसा और डीएसएफ 
अध्यक्ष- गीता कुमारी, आइसा
उपाध्यक्ष- सिमॉन ज़ोया खान, आइसा
महासचिव- डुग्गीराला श्रीकृष्णा, एसएफआई
संयुक्त सचिव- सुभांशु सिंह, डीएसएफ
 
एआईएसएफ
अध्यक्ष- अपराजिता राजा
संयुक्त सचिव- मेंहदी हसन
 
बाप्सा 
अध्यक्ष- शबाना अली 
उपाध्यक्ष- सुबोध कुंवर
महासचिव- करम विद्यानाथ 
संयुक्त सचिव- विनोद कुमार
 
एबीवीपी
अध्यक्ष- निधि त्रिपाठी
उपाध्यक्ष- दुर्गेश
महासचिव- निकुंज मकवाना 
संयुक्त सचिव- पंकज केसरी
 
एनएसयूआई
अध्यक्ष- वृष्णिका सिंह यादव
महासचिव- प्रीति ध्रुवे
उपाध्यक्ष- फ्रैंसिस लालरेमसियामा
अलीमुद्दीन- जेएस
 
निर्दलीय
अध्यक्ष- फारूख
 
चुनाव का संचानल:
जेएनयू छात्रसंघ चुनाव का संचालन 35 छात्रों की संचालन समिति करती है जिसमें ज्यादातर गैरराजनीतिक छात्र रखे जाते हैं. यही समिति चुनाव से पहले प्रेसिडेंशियल डिबेट कराती है जिसमें पहले सत्र में अध्यक्ष उम्मीदवार अपनी बात रखता है और फिर दूसरे सत्र में हरेक कैंडिडेट से बाकी कैंडिडेट सवाल-जवाब करते हैं. तीसरे सत्र में कैंडेडेट्स छात्रों के सवाल का जवाब देते हैं.
 
बता दें कि काउंटिंग भले ही शुरू हो चुकी है, लेकिन जरूरी नहीं कि नतीजे शनिवार को घोषित कर दिेय ही जाएं. अगर काउंटिंग में देरी होती है तो इस चुनाव के नतीजे को रविवार के दिन भी घोषित किये जा सकते हैं. 
 

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