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सिविल जज परीक्षा रिज़ल्ट, सब्ज़ी वाले की बेटी बनी सिविल जज

इंदौर, मेहनत और लगन अगर सच्ची हो तो हर मुश्किल आसान हो जाती है. सफलता पाने के लिए लगातार कोशिश करते रहने कर लगे रहने की ज़रूरत होती है. ऐसी ही कुछ कहानी है इंदौर की अंकिता नागर की. अंकिता नागर ने सिविल जज की परीक्षा में पांचवा स्थान प्राप्त किया है. अंकिता नागर ने […]

Civil Judge Exam Ankita Nagar
inkhbar News
  • Last Updated: May 5, 2022 17:13:33 IST

इंदौर, मेहनत और लगन अगर सच्ची हो तो हर मुश्किल आसान हो जाती है. सफलता पाने के लिए लगातार कोशिश करते रहने कर लगे रहने की ज़रूरत होती है. ऐसी ही कुछ कहानी है इंदौर की अंकिता नागर की. अंकिता नागर ने सिविल जज की परीक्षा में पांचवा स्थान प्राप्त किया है. अंकिता नागर ने एससी कोटे में पांचवा स्थान हासिल किया है. अंकिता के मेहनत की कहानी हर किसी के लिए प्रेरणा का श्रोत है. अंकिता के माता-पिता सब्ज़ी बेचकर गुजर बसर करते हैं, ऐसे में अंकिता ने अपनी मेहनत और लगन से सिविल जज की परीक्षा में पांचवा स्थान लाकर अपने माता पिता का नाम रौशन कर दिया है.

MPHC परीक्षा का परिणाम घोषित

गुरूवार को MPHC परीक्षा का परिणाम घोषित हुआ, जिसमें मुश्किलों को पार करते हुए अंकिता ने पांचवा स्थान हासिल किया. अंकिता ने अपने रिज़ल्ट का सारा श्रेय अपने माता पिता को दिया है. अंकिता बताती हैं कि जब रिजल्ट आया तो उसे देखकर बहुत खुश हुईं और मां के पास ठेले पर दौड़ी चली गई. माँ को रिज़ल्ट देते हुए अंकिता ने मां से कहा, ‘मैं जज बन गई’. इतना सुनते ही अंकिता की माँ की ख़ुशी फूले न समाई, आँखों में ख़ुशी के आंसू थे, और सीना गर्व से चौड़ा हो गया था. महज 25 साल की उम्र में जिसकी बेटी जज बन जाए, उस माँ की ख़ुशी का तो आप अंदाजा लगा ही सकते हैं.

अंकिता के माता-पिता ने क्या कहा?

अंकिता के माता-पिता ने अपने बेटी के जज बनने पर बताया कि बचपन से ही अंकिता को पढ़ने का काफी शौक़ था, लेकिन परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी. अंकिता खुद भी अपने मम्मी पापा का हाथ बटाती थी और कई बार खुद सब्ज़ी बेचने के लिए निकल जाती थी, आर्थिक स्थिति तंग होते हुए भी अंकिता दिन-रात मन लगाकर पढ़ती और पढ़ने की इसी ललक के चलते उसने सिविल जज परीक्षा दी और एससी कोटे में पांचवा स्थान हासिल कर अपने माता-पिता का नाम रौशन किया.
अंकिता का कहना है कि वह अपनी मम्मी के साथ घर के काम में हाथ बटाने के साथ ही सब्जी की दुकान भी जाती थी, और जिस समय ग्राहक नहीं आते थे, तब वह ठेले पर ही पढ़ना शुरू कर देती थी.

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