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एक होगा यादव परिवार ? अब क्या करेंगे चाचा-भतीजा ?

लखनऊ. Mulayam Singh Yadav: सपा संस्थापक मुलायम सिंह अब इस दुनिया में नहीं हैं, कुछ है तो बस उनकी यादें हैं. वहीं, सपा के नेताओं से लेकर कार्यकर्ताओं के बीच इस समय बस एक ही सवाल है कि क्या अखिलेश यादव और उनके चाचा शिवपाल सिंह यादव के बीच संबंध मधुर होंगे या फिर उनका […]

shivpal vs akhilesh
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  • Last Updated: October 14, 2022 09:58:18 IST

लखनऊ. Mulayam Singh Yadav: सपा संस्थापक मुलायम सिंह अब इस दुनिया में नहीं हैं, कुछ है तो बस उनकी यादें हैं. वहीं, सपा के नेताओं से लेकर कार्यकर्ताओं के बीच इस समय बस एक ही सवाल है कि क्या अखिलेश यादव और उनके चाचा शिवपाल सिंह यादव के बीच संबंध मधुर होंगे या फिर उनका संबंध अब और खराब हो जाएगा. दरअसल, लोगों को संबंध खराब होने का संदेह इसलिए है क्योंकि परिवार के मुखिया अब नहीं रहे, जो अखिलेश और शिवपाल के बीच कड़ी का काम करते थे वो अब इस दुनिया में नहीं हैं. मुलायम सिंह की हालत बिगड़ने पर अखिलेश और शिवपाल दोनों को कई मौकों पर एक साथ देखा गया, जिस समय नेताजी को आईसीयू में भर्ती किया था तो कई राजनीतिक दलों के नेता उनका हाल जानने के लिए अस्पताल पहुंचे थे, तब अस्पताल में पहले से अखिलेश, शिवपाल और राम गोपाल यादव मौजूद रहते थे. सपा ने ट्विटर पर ऐसी कई तस्वीरें साझा की जिनमें अखिलेश, शिवपाल और राम गोपाल यादव को एक साथ देखा गया.

चाचा-भतीजा के बदलते रिश्ते का समीकरण

मुलायम सिंह यादव के निधन के बाद चाचा-भतीजा नेताजी के पार्थिव शरीर के साथ उनके गांव सैफई गए. अगले दिन जब शव को अंतिम दर्शन के लिए सैफई मेला मैदान में ले जाया जा रहा था, तो अखिलेश, शिवपाल और आदित्य शव ले जा रहे ट्रक पर थे जबकि पूरा यादव परिवार मंच पर एक साथ खड़ा था. एक समय तो ऐसा भी आया जब शिवपाल ने अखिलेश के कंधे पर हाथ रखा और उन्हें सांत्वना दी. उस समय सपा अध्यक्ष भावुक होते नज़र आए थे.
मंच पर जब सपा नेता स्वामी प्रसाद मौर्य ने मुलायम सिंह के पार्थिव शरीर पर चढ़ाने के लिए राम गोपाल यादव को पुष्पांजलि दी, तो उन्होंने मौर्य को पास में खड़े शिवपाल यादव को भी ये देने को कहा, इसके बाद रामगोपाल यादव और शिवपाल यादव ने मिलकर नेताजी पार्थिव शरीर पर माल्यार्पण किया.

इतना ही नहीं, जब सैफई में पत्रकारों ने बुधवार को शिवपाल से पूछा कि क्या यह उनके और अखिलेश के बीच एक नई शुरुआत होगी तो उन्होंने कहा, “यह समय सही नहीं है इस बारे में बात करने का, जब सही समय आएगा तब इस बारे में बात की जाएगी.” इसके बाद पत्रकारों ने जब उनसे पूछा कि क्या वह समाजवादी पार्टी के संरक्षक की भूमिका निभाने के लिए तैयार हैं तो शिवपाल ने फिर अपनी बात को दोहराते हुए कहा, “ये समय इस बारे में बात करने का नहीं है.”

अखिलेश-शिवपाल का संघर्ष

साल 2012 में मुलायम सिंह यादव ने अखिलेश यादव को मुख्यमंत्री बनाया था, वहीं, 2016 में सपा पर नियंत्रण के लिए दोनों के बीच संघर्ष की लड़ाई देखने को मिली थी. 13 सितंबर 2016 को अखिलेश यादव ने अपने चाचा शिवपाल को सभी मंत्रिस्तरीय विभागों से वंचित कर दिया था, जिसके बाद मुलायम सिंह ने शिवपाल को प्रदेश अध्यक्ष बनाया. इसके बाद पारिवारिक संघर्ष और बढ़ गया, जनवरी 2017 में जैसे ही अखिलेश ने सपा की कमान संभाली तब राम गोपाल ने तुरंत सीएम के समर्थन का ऐलान कर दिया था.

साल 2017 के चुनाव के बाद अखिलेश के व्यवहार से तंग आकर शिवपाल ने सपा से नाता तोड़ लिया और प्रगतिशील समाजवादी पार्टी (लोहिया) का गठन किया, अनुभवी नेता ने इस साल की शुरुआत में विधानसभा चुनावों के लिए अपने भतीजे के साथ हाथ मिलाया और जसवंतनगर निर्वाचन क्षेत्र से सपा के ही चुनाव चिह्न पर जीत भी हासिल की, लेकिन पार्टी के प्रदर्शन को लेकर अखिलेश और उनके चाचा के बीच पुरानी तकरार एक बार फिर सामने आ गई. शिवपाल ने सपा पर उन्हें गठबंधन और विधायक दल की बैठकों से बाहर करने का आरोप लगाया, जिसके बाद सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने अपने चाचा को याद दिलाया कि वह पार्टी के सदस्य नहीं थे और उन्हें अपने संगठन को मजबूत करने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए.

मंगलवार को मुलायम सिंह यादव को श्रद्धांजलि देने सैफई जाने वालों में जसवंत नगर निवासी पहलवान सिंह यादव भी शामिल थे, जब उनसे इस बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा, “अगर अखिलेश और शिवपाल अपने मतभेदों को भुलाकर एक बार फिर साथ आ जाते हैं तो इससे सपा को फायदा होगा, और पार्टी भविष्य के चुनावों में बेहतर प्रदर्शन कर पाएगी, और अगर ऐसा नहीं होता है तो विपक्ष इनके मतभेद का फायदा उठाएगा.”

 

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