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अलीगढ़: 40 हजार करोड़ का होता है ताले का सालाना कारोबार, GI टैग के बाद मिली खास पहचान

लखनऊ: अलीगढ़ की पहचान खासकर ताले और तालीम के रूप में होती है. अलीगढ़ को ताला उद्योग का हब होने का गौरव भी प्राप्त है. ताला कारोबार में हिंदू मुसलमान दोनों समुदाय के लोग जुड़े हुए हैं. करीब 5 हजार से अधिक छोटी इकाइयां 40 हजार करोड़ का सालाना कारोबार करती हैं. देश और दुनिया […]

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  • Last Updated: February 22, 2024 19:22:10 IST

लखनऊ: अलीगढ़ की पहचान खासकर ताले और तालीम के रूप में होती है. अलीगढ़ को ताला उद्योग का हब होने का गौरव भी प्राप्त है. ताला कारोबार में हिंदू मुसलमान दोनों समुदाय के लोग जुड़े हुए हैं. करीब 5 हजार से अधिक छोटी इकाइयां 40 हजार करोड़ का सालाना कारोबार करती हैं. देश और दुनिया में उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ के तालों की डिमांड है. यहां पहले पीतल के ताले बनाए जाते थे, लेकिन अब स्टील का प्रयोग करके नया रूप दिया जा रहा है. कच्चे माल और ऊर्जा की सरल उपलब्ध्ता की वजह से अलीगढ़ व्यापार की दुनिया में उभर रहा है।

देश और दुनिया में अलीगढ़ के तालों की डिमांड

आपको बता दें कि अलीगढ़ में तीन चाबी वाले ताले, मल्टी स्लॉट, साइकिल लॉक, पजल लॉक, हथकड़ी, पैड लॉक, डोर लॉक, दरवाजे के ताले, बहुउद्देशीय ताले और साइकिल के ताले बनाए जाते हैं. बता दें कि जेल में लगाने के लिए अलीगढ़ का ताला अंग्रेज भी इस्तेमाल करते थे. आयरन पैड लॉक सिर्फ अलीगढ़ में बनते हैं जिसमें लीवर और स्प्रिंग पीतल की होती है. अलीगढ़ में कोनार्क, रामसन, जैनसन, प्लाजा, लिंक, हरीसन, बजाज मोबाज समेत सिगमा कंपनियां भी तालों का निर्माण करती हैं।

जीआई टैग के बाद कारोबार को मिली पहचान

बताया जा रहा है कि इंग्लैंड के इंजीनियर जॉनसन ने ताला को मॉडर्न किया था. जॉनसन ने लोहार के काम को पावर प्रेस के माध्यम से ताला बनाने का काम शुरू किया था. जॉनसंस कंपनी तालों के साथ-साथ पीतल की कलाकृतियां देती है. अलीगढ़ में ताला बनाने वाली करीब 5 हजार से अधिक आज छोटी बड़ी इकाइयां ताला व्यापार करती हैं।

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