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मंगलकार्यों में क्यों होता है कुशा का प्रयोग?

नई दिल्ली. सनातन शास्त्रों के अनुसार राहू-केतु जब चन्द्र या सूर्य को हावी होने की कोशिश करते है तो इसे ग्रहण कहा जाता है. राहू का नाम तम (अन्धकार) है. जब तमोगुण द्वारा सात्विक प्रकाश को दबा दिया जाता है तो उसकी शक्ति तमोगुण से अशुद्ध हो जाती है, इसका प्रभाव खाने पीने की वस्तुओं […]

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  • Last Updated: May 26, 2015 13:32:55 IST

नई दिल्ली. सनातन शास्त्रों के अनुसार राहू-केतु जब चन्द्र या सूर्य को हावी होने की कोशिश करते है तो इसे ग्रहण कहा जाता है. राहू का नाम तम (अन्धकार) है. जब तमोगुण द्वारा सात्विक प्रकाश को दबा दिया जाता है तो उसकी शक्ति तमोगुण से अशुद्ध हो जाती है, इसका प्रभाव खाने पीने की वस्तुओं पर सबसे अधिक पड़ता है और ऐसे पदार्थों को खाने से मनुष्यों में भी तमोगुण बढ़ता है.दिमाग निर्बल हो जाता है और शरीर में भरपूर आलस्य छा जाता है.

जब डाभ जिसका शास्त्रीय नाम कुशा है, को हम इन पदार्थों पर रख देते है तो वे दूषित नहीं होते. एक प्रकार से कुशा तमोगुणी रूपी बिजली के लिए कुचालक का कार्य करती है. सूर्य ग्रहण के समय के घंटे पूर्व और चंद्रग्रहण के समय के घंटे पूर्व कुशा को खाने-पीने की वस्तुओं पर और पानी के बर्तनों पर रख देना चाहिए.

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