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जलवायु परिवर्तन के कारण 30 गुना बढ़ी उमस भरी गर्मी, शोधकर्ताओं ने किया चौंकाने वाला दावा

नई दिल्ली। जलवायु परिवर्तन के कारण बांग्लादेश, भारत, लाओस समेत एशिया के कई देशों में अप्रैल महीने में दर्ज हुई उमस भरी गर्मी पिछले कई सालों की तुलना में 30 गुना तक बढ़ गई थी। ये चौंकाने वाला दावा वर्ल्ड वेदर एट्रिब्यूशन ग्रुप के तहत प्रमुख जलवायु वैज्ञानिकों की अंतरराष्ट्रीय टीम ने किया है। रैपिड […]

उमस भरी गर्मी
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  • Last Updated: May 18, 2023 09:10:48 IST

नई दिल्ली। जलवायु परिवर्तन के कारण बांग्लादेश, भारत, लाओस समेत एशिया के कई देशों में अप्रैल महीने में दर्ज हुई उमस भरी गर्मी पिछले कई सालों की तुलना में 30 गुना तक बढ़ गई थी। ये चौंकाने वाला दावा वर्ल्ड वेदर एट्रिब्यूशन ग्रुप के तहत प्रमुख जलवायु वैज्ञानिकों की अंतरराष्ट्रीय टीम ने किया है। रैपिड एट्रिब्यूशन एनालिसिस के अनुसार दुनियाभार के हीटवेव हॉटस्पॉट्स में शुमार होने वाले इस क्षेत्र में पिछले सालों की तुलना में इस साल के अप्रैल में उमस भरी गर्मी में 30 गुना की बढ़ोतरी देखी गई है।

एशिया में तापमान में हुई बढ़ोतरी

बता दें, अप्रैल माह में ही दक्षिण पूर्व एशिया के लाओस और थाइलैंड में तापमान में बढ़ोतरी के साथ ही तीखी लू चलना शुरू हो गई थी। इस दौरान गर्मी के चलते बड़ी संख्या में लोग अस्पताल में भर्ती हुए थे। इसके अलावा कई जगह पर आग लगने की घटनाएं भी सामने आई थी। ऐसे में शोर्धकर्ताओं का मानना है कि दुनियाभर में जलवायु परिवर्तन ने हीटवेव को ज्यादा लंबा और बेहद गर्म बना दिया है।

शोधकर्ताओं ने किया तुलनात्मक अध्ययन

जलवायु परिवर्तन के कराण हीटवेव में हो रही बढ़ोतरी को लेकर वैज्ञानिकों ने आज के मौसम की तुलना 19वीं शाताब्दी के मौसम से की। इस दौरान अप्रैल में लगातार चार दिन तक दो क्षेत्रों में औसत अधिकतम तापमान और हीट इंडेक्स के अधिकतम मूल्यों को देखा गया। इनमें से एक क्षेत्र में दक्षिण और पूर्वी भारत और बांग्लादेश को कवर किया गया, और दूसरे क्षेत्र के तहत लाओस और थाईलैंड को देखा गया।

इस दौरान शोधकर्ताओं ने पाया कि दोनों क्षेत्रों में जलवायु परिवर्तन ने उमस भरी गर्मी की लहर को कम से कम 30 गुना तक बढ़ा दिया है। जलवायु परिवर्तन नहीं होने की स्थिति में जितना तापमान होता है, उसकी तुलना में तापमान कम से कम 2 डिग्री सेल्सियस ज्यादा गर्म हुआ। शोधकर्ताओं ने बताया कि फिलहाल जब तक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन पूरी तरह नहीं रुक जाता, वैश्विक तापमान में लगातार वृद्धि होती रहेगी।