Ramayan Vibhishan: रामानंद सागर की ‘रामायण’ (1987) भारतीय टेलीविजन के इतिहास में एक मील का पत्थर है. इस धारावाहिक ने न केवल दर्शकों का दिल जीता बल्कि इसके किरदारों को भी अमर कर दिया. इनमें से एक किरदार था रावण के छोटे भाई विभीषण. जिसे अभिनेता मुकेश रावल ने जीवंत किया. उनकी सादगी और नैतिकता से भरी भूमिका ने दर्शकों के मन में गहरी छाप छोड़ी. लेकिन इस प्रतिभाशाली अभिनेता की जिंदगी का अंत बेहद दुखद रहा. जिसने उनके प्रशंसकों को स्तब्ध कर दिया.
थिएटर से टेलीविजन तक का सफर
मुकेश रावल का जन्म 1951 में मुंबई में हुआ था. उन्होंने अपने करियर की शुरुआत थिएटर से की और बाद में टेलीविजन और फिल्मों में अपनी जगह बनाई. 1970 में बैंक ऑफ बड़ौदा में नौकरी शुरू करने वाले मुकेश ने 31 साल तक सेवा दी और 2001 में स्वैच्छिक रिटायरमेंट लिया. इस दौरान थिएटर में उनके प्रदर्शन को देखकर रामानंद सागर ने उन्हें ‘रामायण’ में विभीषण की भूमिका के लिए चुना. उन्होंने मेघनाद के किरदार के लिए भी ऑडिशन दिया था लेकिन उनकी सौम्यता और नैतिक छवि ने उन्हें विभीषण के लिए परफेक्ट बनाया.
26 साल में 24 फिल्मों में दिखा दम
मुकेश रावल ने ‘रामायण’ (1987) और ‘लव कुश’ (1988) में विभीषण की भूमिका से खूब लोकप्रियता हासिल की. इसके अलावा उन्होंने हिंदी और गुजराती सिनेमा में 24 से अधिक फिल्मों में काम किया. जिनमें ‘जिद’ (1994), ‘ये मझधार’ (1996), ‘लहू के दो रंग’ (1997), ‘सत्ता’ (2003), ‘औजार’ (1997), ‘मृत्युदाता’ (1997) और ‘कसक’ (2005) शामिल हैं. गुजराती सिनेमा में उनकी आखिरी फिल्म ‘साथियो चल्यो खोडलधाम’ (2014) थी. टीवी पर भी उन्होंने ‘हसरतें’, ‘कोई अपना सा’, और ‘बींद बनूंगा घोड़ी चढ़ूंगा’ जैसे धारावाहिकों में अभिनय किया.
पारिवारिक त्रासदी और अवसाद
मुकेश रावल की जिंदगी में एक बड़ा झटका तब लगा. जब 2006 में उनके 18 साल के बेटे द्विज की एक रेल दुर्घटना में मृत्यु हो गई. इस हादसे ने उन्हें गहरे अवसाद में धकेल दिया. उनकी पत्नी सरल रावल और दो बेटियों, आर्या और विप्रा (जो टीवी अभिनेत्रियां हैं). जिसने उन्हें संभालने की कोशिश की लेकिन वह इस दुख से उबर नहीं पाए. 15 नवंबर 2016 को मुकेश रावल की लाश मुंबई के बोरीवली स्टेशन के रेलवे ट्रैक पर मिली. पुलिस के अनुसार उन्होंने उसी तरह अपनी जान दी, जैसे उनके बेटे की मृत्यु हुई थी.
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