IAS Pooja Khedkar: सुप्रीम कोर्ट ने 21 मई, 2025 को पूर्व IAS ट्रेनी अधिकारी पूजा खेडकर को सिविल सेवा परीक्षा में धोखाधड़ी और OBC तथा दिव्यांगता कोटा के दुरुपयोग के मामले में अग्रिम जमानत दे दी. जस्टिस बी.वी. नागरत्ना और सतीश चंद्र शर्मा की पीठ ने दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले को पलटते हुए कहा कि यह एक ऐसा मामला है. जहां खेडकर को जमानत दी जानी चाहिए. पीठ ने पूजा को जांच में पूर्ण सहयोग करने का निर्देश दिया. साथ ही दिल्ली पुलिस और यूपीएससी की आपत्तियों को खारिज करते हुए उनके अपराध को गंभीर श्रेणी का नहीं माना. इस फैसले ने बिहार के सियासी गलियारों में भी हलचल मचा दी है. जहां पहले से ही जासूसी जैसे मामलों पर बीजेपी और जेडीयू की तीखी प्रतिक्रियाएं सामने आ रही हैं.
सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने पूजा खेडकर के खिलाफ लगे आरोपों की गंभीरता को कमतर आंकते हुए कहा उन्होंने कौन सा गंभीर अपराध किया है? वह मादक पदार्थ माफिया या आतंकवादी नहीं है. उन्होंने 302 (हत्या) नहीं की है. वह एनडीपीएस अपराधी नहीं है. आपके पास कोई प्रणाली या सॉफ्टवेयर होना चाहिए. आप जांच पूरी करें. उन्होंने सब कुछ खो दिया है और उन्हें कहीं नौकरी नहीं मिलेगी. कोर्ट ने यह भी कहा कि दिल्ली हाईकोर्ट को खेडकर को अग्रिम जमानत देनी चाहिए थी. खेडकर को 25,000 रुपये की नकद जमानत और दो जमानतदारों के साथ जमानत दी गई. साथ ही चेतावनी दी गई कि जांच में असहयोग करने पर उनकी जमानत रद्द की जा सकती है.
पूजा खेडकर पर 2022 की यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा में गलत जानकारी देकर OBC और दिव्यांगता कोटा का लाभ उठाने का आरोप है. यूपीएससी का दावा है कि खेडकर ने अपनी और अपने माता-पिता की पहचान बदलकर जिसमें नाम, फोटो, हस्ताक्षर, ईमेल, और मोबाइल नंबर शामिल हैं. परीक्षा में अधिकतम प्रयासों की सीमा को पार किया. यूपीएससी ने 31 जुलाई, 2024 को उनकी उम्मीदवारी रद्द कर दी और उन्हें भविष्य की सभी परीक्षाओं से प्रतिबंधित कर दिया. केंद्र सरकार ने सितंबर 2024 में उन्हें IAS से बर्खास्त कर दिया. दिल्ली पुलिस ने उनके खिलाफ IPC, IT एक्ट, और दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम के तहत FIR दर्ज की है.
दिल्ली पुलिस ने खेडकर को जमानत देने का कड़ा विरोध किया. यह तर्क देते हुए कि उनकी हिरासत में पूछताछ एक बड़े षड्यंत्र को उजागर करने के लिए जरूरी है. पुलिस का कहना है कि खेडकर ने जांच में सहयोग नहीं किया और उनके द्वारा नाम बदलने की रणनीति धोखाधड़ी का हिस्सा थी. यूपीएससी ने भी इसे अभूतपूर्व धोखाधड़ी करार देते हुए हिरासत में पूछताछ की आवश्यकता पर जोर दिया. दिल्ली हाईकोर्ट ने 23 दिसंबर, 2024 को उनकी अग्रिम जमानत याचिका खारिज करते हुए कहा था कि खेडकर की हरकतें UPSC और समाज के खिलाफ धोखाधड़ी का एक क्लासिक उदाहरण हैं. हाईकोर्ट ने यह भी संदेह जताया कि उनके प्रभावशाली माता-पिता ने फर्जी प्रमाणपत्र प्राप्त करने में सहायता की होगी.
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