केंद्र सरकार ने संशोधित वक्फ कानून पर सुप्रीम कोर्ट में बुधवार को सुनवाई के दौरान दो टूक कहा कि वक्फ एक इस्लामी अवधारणा है न कि इस्लाम का आवश्यक हिस्सा. इस पर संविधान में दिये गये मौलिक अधिकार के रूप में दावा नहीं किया जा सकता है. केंद्र सरकार की तरफ से कोर्ट में पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि जब तक वक्फ को इस्लाम का आवश्यक हिस्सा नहीं माना जाता तब तक इसे उस रूप में पेश नहीं किया जा सकता.
सॉलिसिटर जनरल मेहता ने कहा कि यह समझना होगा कि वक्फ एक इस्लामी अवधारणा है, जिसे नकारा नहीं जा सकता, लेकिन जब तक इसे इस्लाम का आवश्यक हिस्सा नहीं माना जाता, तब तक अन्य दलीलें निरर्थक हैं. मेहता ने अधिनियम का बचाव करते हुए कहा कि किसी भी व्यक्ति को सरकारी जमीन पर दावा करने का अधिकार नहीं है, भले ही वह जमीन वक्फ के रूप में घोषित क्यों न की गई हो.
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि कोई भी व्यक्ति सरकारी जमीन पर दावा नहीं कर सकता. सुप्रीम कोर्ट ने ही एक मामले में फैसला दिया था कि अगर संपत्ति सरकारी है और वक्फ के रूप में घोषित है तो सरकार उसे बचा सकती है. वक्फ संपत्ति एक किसी भी सूरत में एक मौलिक अधिकार नहीं है. इसे कानून द्वारा सिर्फ मान्यता दी गई थी. ध्यान रहे कि अगर कोई अधिकार किसी कानून के तहत दिया गया है, तो उसे कभी भी कानून द्वारा वापस लिया जा सकता है.
चीफ जस्टिस (सीजेआई) बी आर गवई और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की बेंच इस मामले में सुनवाई कर रही है. वक्फ (संशोधन) विधेयक, 2025 को अप्रैल में संसद से पारित किया गया था और पांच अप्रैल को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने इसे मंजूरी दे दी थी. लोकसभा में इसके पक्ष में 288 और विपक्ष में 232 मत पड़े थे, जबकि राज्यसभा ने समर्थन में 128 और विरोध में 95 मत पड़े थे. संसद में बहस के दौरान संशोधन को लेकर भारी हंगामा हुआ था और कानून बनने के बाद इसे चुनौती देने के लिए दर्जनों याचिकाएं दाखिल की गई जिसमें चुनिंदा याचिकाओं पर सुनावाई चल रही है.
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