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नमाज पढ़ने पर ओडिशा हाईकोर्ट ने दुष्कर्मी की सजा को फांसी से उम्रकैद में बदला

नई दिल्ली: आपने अक्सर कई ऐसे गंभीर मामले देखे और सुने होंगे जिसमें अपराधी को उसके किए हुए जुर्म के लिए कड़ी से कड़ी सजा दी जाती है। परंतु कहीं ऐसा सुना नहीं होगा की कोई धार्मिक ग्रंथ पढ़ने से किसी अपराधी की सजा माफ या कम हो जाए। जी हां ऐसा सच में हुआ […]

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  • Last Updated: June 28, 2024 18:05:49 IST

नई दिल्ली: आपने अक्सर कई ऐसे गंभीर मामले देखे और सुने होंगे जिसमें अपराधी को उसके किए हुए जुर्म के लिए कड़ी से कड़ी सजा दी जाती है। परंतु कहीं ऐसा सुना नहीं होगा की कोई धार्मिक ग्रंथ पढ़ने से किसी अपराधी की सजा माफ या कम हो जाए। जी हां ऐसा सच में हुआ है। दरअसल ओडिशा हाईकोर्ट ने एक दुष्कर्म के अपराधी के साथ ऐसा ही किया है। ओडिशा हाईकोर्ट ने दुष्कर्म के मामले में दोषी शख्स की फांसी की सजा को उम्रकैद में बदल दिया है। आईए जानते हैं कि क्या है पूरा मामला।

ये है मामला

जानकारी के मुताबिक यह गंभीर मामला 21 अगस्त 2014 का है। एक नाबालिग बच्ची और उसका चचेरा भाई चॉकलेट खरीदने के लिए अपने घर से लगभग दोपहर 2 बजे के आसपास गए थे। काफी देर के बाद भी जब बच्ची घर नहीं लौटी तो उसके परिवार और पड़ोसियों ने उसकी तलाश करना शुरू कर दिया। इसी दौरान बच्ची एस.के. खैरुद्दीन के घर के एक संकरे हिस्से में बेहोश और नग्न अवस्था में पाई गई थी। इसके बाद बच्ची को तुरंत प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र पहुंचाया गया। जहां इलाज के दौरान डॉक्टर ने पुष्टि की थी कि नाबालिग के साथ दुष्कर्म करने के बाद
उसका गला घोंटा गया है। हालत बिगड़ने पर बच्ची को कटक के एससीबी मेडिकल कॉलेज और अस्पताल में स्थानांतरित कर दिया गया था, लेकिन रास्ते में ही उसने दम तोड़ दिया। इस मामले में एस.के. आसिफ अली और एस.के. अकील अली की पीड़िता के नाबालिग चचेरे भाई ने अपराधियों के रूप में पहचान की थी। इसके बाद मृतक पीड़िता की चाची ने इस मामले में पुलिस में FIR दर्ज कराई थी।

फांसी से उम्रकैद में बदली सजा

इस मामले में जानकारी के मुताबिक एस.के. आसिफ अली और दो अन्य के खिलाफ जांच-पड़ताल के बाद एक आरोप पत्र दाखिल किया गया था। जिसके बाद एस.के. आसिफ अली और एस.के. अकील अली को इस मामले में . ट्रायल कोर्ट ने दोषी करार दिया था। इस घटना के बाद इस बात पर हाई कोर्ट ने ध्यान दिया कि अपराधियों के सुधार और पुनर्वास से परे होने के ठोस सबूतों का अभाव है। इसके बाद हाई कोर्ट ने यह निर्णय लिया कि मृत्युदंड ही अपराधी के लिए एकमात्र विकल्प नहीं है। अपराध के लिए आजीवन कारावास ही पर्याप्त और उचित दंड होगा। इस मामले में अदालत का कहना है कि यह गंभीर अपराध लगभग 6 वर्ष की आयु की एक बालिका के साथ अत्यंत वीभत्स, शैतानी और बर्बर तरीके से किया गया था। परंतु अदालत ने कहा कि रिकॉर्ड में ऐसा कोई सबूत नहीं है कि अपराध पूर्व नियोजित तरीके से किया गया था। अपना फैसला लेते हुए अदालत के न्यायमूर्ति एस.के. साहू और न्यायमूर्ति आर.के. पटनायक की खंडपीठ ने कहा कि कुरान में अली ने बार-बार नमाज पढ़कर पश्चाताप दिखाया है। इससे अपराधी का ईश्वर के प्रति समर्पण के बारे में पता चलता है। आपराधिक आचरण के लिए जो सजा मिलनी चाहिए, उससे ज्यादा बड़ी सजा बिना अपराध के सजा है।

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