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तेजप्रताप का होगा मामा साधु और सुभाष जैसा हाल? लालू के बिना हुई थी ऐसी दुर्दशा,जानें आज कहां है वो दोनों धुरंधर

Bihar politics: मई 2025 में तेज प्रताप यादव को राष्ट्रीय जनता दल और परिवार से निकालने के लालू के फैसले ने नया बवंडर खड़ा कर दिया था। तेज प्रताप और अनुष्का यादव प्रकरण के बाद लालू यादव ने अपने बेटे को परिवार और पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया था। इसे गैरजिम्मेदाराना व्यवहार और […]

Bihar politics (साधु और सुभाष जैसे भुला दिए जाएंगे तेजप्रताप)
inkhbar News
  • Last Updated: June 24, 2025 19:35:14 IST

Bihar politics: मई 2025 में तेज प्रताप यादव को राष्ट्रीय जनता दल और परिवार से निकालने के लालू के फैसले ने नया बवंडर खड़ा कर दिया था। तेज प्रताप और अनुष्का यादव प्रकरण के बाद लालू यादव ने अपने बेटे को परिवार और पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया था। इसे गैरजिम्मेदाराना व्यवहार और पारिवारिक मूल्यों के खिलाफ बताकर लालू ने ये कदम उठाया था। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या लालू यादव तेज प्रताप के साथ वैसा ही रिश्ता बनाए रखेंगे जैसा वह अपने साले साधु यादव और सुभाष यादव के साथ बनाए हुए हैं?

दरअसल, वैचारिक और व्यक्तिगत मतभेदों के चलते लालू यादव ने अपने साले साधु यादव और सुभाष यादव से भी दूरी बना ली थी। साधु यादव जो कभी राजद के बड़े नेता हुआ करते थे। उन्हें 2005 में पार्टी से निकाल दिया गया था जब उन्होंने लालू-राबड़ी शासन के खिलाफ बगावत कर दी थी और निर्दलीय चुनाव लड़ा था। सुभाष यादव ने लालू पर 2025 में तेज प्रताप के निष्कासन के बाद परिवार को बचाने के लिए ‘ड्रामा’ करने का भी आरोप लगाया। दोनों ही मामलों में लालू ने परिवार और पार्टी की छवि को प्राथमिकता दी और अपने साले से रिश्ते कभी पूरी तरह से बहाल नहीं हो पाए।

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तेज प्रताप का मामला निजी या राजनीतिक?

तेज प्रताप के निष्कासन की शुरुआत उनके निजी जीवन से जुड़े विवाद से हुई। ऐश्वर्या राय से 2018 में शादी टूटने के बाद से ही तेज प्रताप विवादों में हैं। अनुष्का यादव के साथ उनके कथित रिश्ते की पोस्ट ने न सिर्फ परिवार की छवि को नुकसान पहुंचाया, बल्कि बिहार विधानसभा चुनाव 2025 से पहले राजद की सामाजिक न्याय की छवि को भी धक्का पहुंचाया। लालू ने अपने एक्स पोस्ट में कहा, ‘निजी जीवन में नैतिक मूल्यों की अनदेखी सामाजिक न्याय के हमारे संघर्ष को कमजोर करती है।’

राजनीति से जुड़े लोगों की क्या है इसपर राय?

हालांकि, कुछ राजनीतिक विश्लेषक इसे चुनावी रणनीति मान रहे हैं। भाजपा नेता नितिन नवीन ने तो इसे ‘राजनीतिक स्टंट’ तक करार दे दिया। दावा किया कि लालू ने पहले भी तेज प्रताप की हरकतों को नजरअंदाज किया था। जगदानंद सिंह से विवाद, होली पर सिपाही के साथ डांस या कोर्ट जाने की धमकी जैसे तेज प्रताप के अतीत पार्टी के लिए शर्मिंदगी का कारण बने, लेकिन तब कोई सख्त कार्रवाई नहीं की गई। सवाल उठता है कि क्या लालू का फैसला वाकई नैतिकता पर आधारित है या चुनाव से पहले पार्टी की छवि सुधारने की कोशिश?

पिता-पुत्र में होगी सुलह?

लालू और तेज प्रताप के रिश्तों में दरार गहरी है, लेकिन स्थायी रूप से टूटने की संभावना कम ही नजर आ रही है। साले साधु और सुभाष के मामले में वैचारिक मतभेद और बगावत थी, जबकि तेज प्रताप का मामला निजी जिंदगी से जुड़ा है। तेज प्रताप ने भतीजे इरज लालू यादव के जन्म पर तेजस्वी को बधाई दी, जो परिवार के प्रति उनके स्नेह को दर्शाता है। लालू परिवार में इरज के जन्म जैसे खुशी के मौके पहले भी एकता की वजह रहे हैं।

इसके अलावा राजद के लिए तेज प्रताप की अहमियत को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। वे बिहार सरकार में पूर्व स्वास्थ्य और पर्यावरण मंत्री रह चुके हैं और युवाओं के बीच जाने जाते हैं। उनका यूट्यूब चैनल ‘एलआर ब्लॉग’ और सोशल मीडिया पर मौजूदगी पार्टी के प्रचार का जरिया रही है। हां, बिहार विधानसभा चुनाव के बाद लालू और तेजप्रताप के बीच सुलह की संभावना बढ़ सकती है, जब राजनीतिक दबाव कम हो जाएगा।

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