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जॉली एलएलबी: रईस-काबिल को पीछे छोड़ने की काबिलियत

अगर ये मुन्नाभाई सीरीज की तरह होती तो सुभाष कपूर जॉली की कहानी को आगे ले जाते, लेकिन चूंकि इसमें हीरो बदल गया है, इसलिए वो कहानी को फिर नए सिरे से शुरू करते हैं, फिर से नए जॉली अक्षय कुमार, उसके वकील बनने की ख्वाहिशों और उसकी आदतों को स्टेबलिश करते हैं.

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  • Last Updated: February 10, 2017 12:29:04 IST
मुंबई: अगर ये मुन्नाभाई सीरीज की तरह होती तो सुभाष कपूर जॉली की कहानी को आगे ले जाते, लेकिन चूंकि इसमें हीरो बदल गया है, इसलिए वो कहानी को फिर नए सिरे से शुरू करते हैं, फिर से नए जॉली अक्षय कुमार, उसके वकील बनने की ख्वाहिशों और उसकी आदतों को स्टेबलिश करते हैं. इसलिए आपको लगेगा कि आप फिर से वही जॉली एलएलबी देख रहे हैं नए हीरो के साथ, लेकिन सुभाष कपूर ने इसमें अलग ये किया कि हर सीन को थोड़ा ज्यादा कसा, इमोशंस और कॉमेडी का घालमेल किया, ज्यादा बड़ा स्टार लिया, ज्यादा बड़े मुद्दे उठाए, ज्यादा पैसा खर्च किया तो इस बार पैसे भी ज्यादा कमाना लाजिमी है.
 
 
मूवी पूरी तरह से पैसा वसूल है, मूवी देखते हुए आप हसेंगे भी और रोएंगे भी. पिछली मूवी की तरह ही कोर्ट से जुड़े हम मामले में गहरी रिसर्च को आम लोगों के हिसाब से ढाला है सुभाष कपूर ने. कहानी इस बार दिल्ली से लखनऊ चली गई. यूपी में ही शूट हुई मूवी ना केवल ज्यूडिशियल सिस्टम को बल्कि यूपी की पुलिस पर भी जबरदस्त चोट करती है, पहले ही सीन में उत्तर प्रदेश के स्कूलों में नकल का खुला खेल दिखाया गया है, जो शायद मुमकिन ना लगे, लेकिन काफी फनी है.
 
जिन लोगों का कोर्ट से वास्ता नहीं पड़ता और जजों को बड़े सम्मान के साथ देखते आए हैं, मूवी को देखकर वो हकीकत से थोड़ा रूबरू होंगे कि कैसे एक वकील चैम्बर पाने के लिए कुछ भी करने के तैयार है, कैसे वकील, पुलिस और जजों की डेली लाइफ में आपसी बातचीत होती है, हालांकि मूवी है तो कहीं कहीं लिबर्टी भी ली गई है. लेकिन सुभाष कपूर ने कोई भी सीन जाया नहीं जाने दिया, किस सीन को शुरू कैसे करना है, और खत्म कैसे, सुभाष ने काफी ध्यान दिया.
 
कम से कम दस सीन आपको खत्म होते होते गुदगुदाएंगे या आंखों में पानी ला देंगे. घूंघट इलेविन, बच्चे का भी जनेऊ पहनना, पौधों में पानी डालना, आलिया भट्ट के शौकीन जज की कोर्ट में एंट्री और डांस प्रेक्टिस, गंगा किनारे के ब्राह्मणों की डिटेलिंग, वकीलों पर तमाम तरह के कटाक्ष, यहां तक कि आखिरी सीन भी आपको हंसते हुए सीट से उठाएगा. डायलॉग्स पर तो सबसे ज्यादा मेहनत की गई है, बेटा जो वकील पैसा वापस कर दे ना वो वकील नहीं होता, लखनऊ में दो चिकन मिलते हैं एक खाने का और एक पहनने का, पहनने वाला खाया तो , पेप्सी और प्रमोद अपना फॉरमूला बताते नहीं है, लखनऊ का कौन ऐसा लौंडा होगा जो अपनी वीबी के लिए पैग बनाता होगा.
 
 
ऐसे तमाम फनी डायलॉग्स के अलावा एक आखिरी स्पीच जॉली ने पहली फिल्म भी एक बड़े मुद्दे के साथ दी थी और इसमें भी, अरशद वारसी ने कहा था—कौन हैं ये लोग जो सड़क पर सोते हैं, कहां से आते हैं हमारे शहरों की खूबसूरती पर बट्टा लगाने और इस मूवी में अक्षय कुमार हिंदू मुस्लिम से लेकर आतंकवाद और फर्जी एनकाउंटर तक पर सवाल उठाने के साथ साथ ये भी कहते हैं, इस दुनियां में सबसे बड़े जाहिल ने कहा था कि इश्क और जंग में सब जायज है, तो फिर सरहद पर सर काटने वाले भी जायज हैं और लड़कियों पर एसिड फेंकने वाले भी.
 
उसके बावजूद ने इस जॉली ने बोर किया और ना इस जॉली ने. पहली बार रात भर कोर्ट चलने के लिए भी इस मूवी को याद किया जाएगा. मूवी की कहानी एक बड़े वकील के मुंशी के बेटे की कहानी है जो एलएलबी करने के बाद अपना चैम्बर लेकर बड़ा वकील बनना चाहता है, चैम्बर के लिए 12 लाख का इंतजाम करने के लिए वो इंसाफ को तरह रही एक गरीब महिला से झूठ बोलकर दो लाख रूपया तक ले लेता है, वो प्रेग्नेंट महिला सुसाइड कर लेती है.
 
ये इस कॉमेडी मूवी का सबसे शॉकिंग और टर्निंग प्वॉइंट था जो हीरो की जिंदगी ही नहीं मूवी का पूरा मूड बदल देता है. तब वो उस महिला के पति का फर्जी एनकाउंटर करने वाले पुलिस वालों के खिलाफ केस लड़ता है, बनारस से लेकर कश्मीर तक जाता है. मूवी में कॉमेडी और इमोशंस को एक साथ एक ही नाव में सफर करवाना मुश्किल था, लेकिन सुभाष कपूर ने लय बनाए रखी. पिछली जॉली एलएलबी 50 करोड़ तक पहुंची थी, इस मूवी में उसका चौगुना कमाने का दम है.
 
अक्षय कुमार की एक्टिंग की तारीफ केवल इसलिए है क्योंकि अक्षय ने खुद की एक्शन इमेज को जॉली पर हावी नहीं होने दिय. हुमा के पास ज्यादा कुछ करने को नहीं था, सौरभ शुक्ला और अन्नू कपूर फिल्म की जान थे. अन्नू वोमन ईरानी की तरह प्रभावशाली तो नहीं थे, लेकिन काइयां जरूर थे. सौरभ शुक्ला को देखकर आपको लगेगा कि हर जज ऐसा ही हो, इजी एप्रोचेबल, आपकी हमारी तरह आम हरकतें करने वाला.
 
हिना के रोल में सयानी अपनी छाप छोड़ती हैं तो मेन विलेन के तौर पर इमानुल हक हमेशा की तरह अपने रोल में फिट हैं. म्यूजिक का खास रोल नहीं है फिल्म में, इसलिए कम ही गाने रखे हैं, होली पास है, शायद इस वजह से एक होली का गाना रखा गया और शायद इसी वजह से हुमा को वेबड़ी दिखाया गया.
 
अगर आप फिल्म की चीरफाड़ करने के मूड में नहीं है कि दिल्ली की सैशन कोर्ट से लखनऊ की सैशन कोर्ट में जज कैसे ट्रांसफर हो गया या फिर एक कैदी को भगाकर कोर्ट में गवाही के लिए कैसा लाया जा सकता है, कश्मीर वाले हवलदार और फर्जी नारको टेस्ट का क्या हुआ, जैसे तमाम लॉजिक ना उठाएं तो आपको काफी मजा आएगा. शायद आपको ध्यान हो कि पिछली जॉली एलएलबी में भी पीआईएल एक सैशन कोर्ट में दाखिल की गई थी और फिल्म सुपरहिट गई थी.

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