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Birthday Special: जब धर्मेंद्र के प्यार में पागलपन की हद तक पहुंच गई थीं मीना कुमारी !

'हमारा ये बाजार एक कब्रिस्तान है...ऐसी औरतों का जिनकी रूहें मर जाती है...और जिस्म जिंदा रहता है.' फिल्म पाकिजा का ये डायलॉग आज भी लोगों को झंझोर कर रख देता है. लेकिन इससे भी ज्यादा ये डायलॉग बोलने वालीं इस एक्ट्रेस ने लोगों को हिला कर रख दिया था. जी हां हम बात कर रहे हैं बॉलीवुड की ट्रेजेडी क्वीन मीना कुमारी की.

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  • Last Updated: August 1, 2017 08:09:22 IST
नई दिल्ली: ‘हमारा ये बाजार एक कब्रिस्तान है…ऐसी औरतों का जिनकी रूहें मर जाती है…और जिस्म जिंदा रहता है.’ फिल्म पाकिजा का ये डायलॉग आज भी लोगों को झंझोर कर रख देता है. लेकिन इससे भी ज्यादा ये डायलॉग बोलने वालीं इस एक्ट्रेस ने लोगों को हिला कर रख दिया था. जी हां हम बात कर रहे हैं बॉलीवुड की ट्रेजेडी क्वीन मीना कुमारी की.
 
आज मीरा कुमारी का जन्मदिन है. मीना कुमारी का जन्म 1 अगस्त, 1932 को मुंबई में हुआ था. उनके पिता का नाम अली बक्श था. वो पारसी रंगमंच के एक मंझे हुए कलाकार माने जाते थे और उनकी मां प्रभावती देवी (बाद में इकबाल बानो), भी एक मशहूर नृत्यांगना और अदाकारा थी.
 
 
मीना कुमारी बॉलीवुड की वो अदाकारा है जिन्हें कभी भुलाया नहीं जा सकता है. मीना कुमारी ऐसी अभिनेत्री थीं, जिनके साथ हर कलाकार काम करने को बेताब रहा करते थे. उनकी खूबसूरती ने सभी को अपना कायल बना लिया.
 
‘चलते-चलते यूँ ही कोई मिल गया था… चलते-चलते’, ‘इन्हीं लोगों ने…ले ली न दुपट्टा मेरा’,  ‘मेरे भईया, मेरे चंदा मेरे अनमोल रतन…’ आप सोच रहे होंगे कि हम आपके ये गाने क्यूं याद दिला रहे हैं. दरअसल, आज बॉलीवुड की ट्रेजेडी क्वीन मीना कुमारी का जन्मदिन है. 
 
 
मीना कुमारी बॉलीवुड की वो अदाकारा है जिन्हें कभी भुलाया नहीं जा सकता है. मीना कुमारी ऐसी अभिनेत्री थीं, जिनके साथ हर कलाकार काम करने को बेताब रहा करते थे. उनकी खूबसूरती ने सभी को अपना कायल बना लिया. वह तीन दशकों तक बॉलीवुड में अपनी अदाओं के जलवे बिखेरती रहीं. अपनी खूबसूरती और बेहतरीन अभिनय से सभी को अपना दीवाना बना चुकीं मीना कुमारी की जिंदगी में दर्द शुरू से लेकर आखिरी सांस तक रहा है. 
 
मीना कुमारी की जिंदगी बचपन से ही दुख भरी रही है. पैदा होते ही मीना कुमार के पिता ने उन्हें अनाथाश्रम में छोड़ आए थे. उनकी मां के काफी रोने-धोने पर वे उन्हें वापस ले आए. मीना कुमारी 1939 में फिल्म निर्देशक विजय भट्ट की फिल्म फ़रज़न्द-ए-वतन में चाइल्ड कलाकार के रूप में नज़र आईं. 1940 की फिल्म ‘एक ही भूल’ में विजय भट्ट ने इनका नाम बेबी महजबीं से बदल कर बेबी मीना कर दिया. 1946 में आई फिल्म ‘बच्चों का खेल’ से बेबी मीना 14 वर्ष की आयु में मीना कुमारी बनीं.
 
 
1952 का साल मीना कुमारी के फिल्मी सफ़र के लिए बेहद खास रहा, उन्हें विजय भट्ट के निर्देशन में ‘बैजू बावरा’ में काम करने का मौका मिला. फिल्म सफल रही और मीना कुमारी बतौर अभिनेत्री फिल्म इंडस्ट्री में अपनी पहचान बनाने में सफल हो गई. मीना कुमारी को इसके लिए पहले फिल्मफेयर सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री के पुरस्कार से सम्मानित किया गया.
 
इसके बाद 1952 में ही मीना कुमारी ने फिल्म निर्देशक कमाल अमरोही के साथ शादी कर ली. मीना कुमारी ने ये शादी अपने परिवार के खिलाफ जाकर किया था. हालांकि शादी के 12 साल बाद 1964 में ही मीना कुमारी और कमाल अमरोही की शादीशुदा जिंदगी में दरार आ गई और वो अलग-अलग रहने लगे. 
 
धर्मेंद्र के साथ मीना कुमारी की बढ़ी नजदीकियां
 
इस अलगाव की वजह अभिनेता धर्मेद्र थे, जिन्होंने उसी समय अपने फिल्मी करियर की शुरुआत की थी. उस समय मीना कुमारी के सितारे बुलंदियों पर थे, उनकी एक के बाद एक फिल्म हिट हो रही थी. मीना कुमारी बॉलीवुड के आसमां का वो सितारा थीं, जिसे छूने के लिए हर कोई बेताब था.
 
धर्मेद्र की जिंदगी का अकेलापन दूर करते-करते मीना उनके करीब आने लगीं. दोनों के बारे में अफेयर की काफी चर्चा होने लगी. मीना कुमारी के रूप में धर्मेद्र के करियर की डूबती नैया को किनारा मिल गया था और धीरे-धीरे धर्मेद्र के करियर ने भी रफ्तार पकड़ी.
 
अपनी शोहरत के बल पर मीना कुमारी ने धर्मेद्र के करियर को ऊंचाइयों तक ले जाने की पूरी कोशिश की, लेकिन इतना सब करने के बाद भी मीना को धर्मेद्र से भी बेवफाई ही मिली. फिल्म ‘फूल और कांटे’ की सफलता के बाद, धर्मेद्र ने मीना कुमारी से दूरियां बनानी शुरू कर दीं और एक बार फिर से मीना कुमारी अपनी जिंदगी में तन्हा रह गईं.
 
ऐसे पड़ी शराब पीने की लत
 
धर्मेद्र की बेवफाई को मीना झेल न सकीं और हद से ज्यादा शराब पीने लगीं. इस वजह से उन्हें लिवर सिरोसिस बीमारी हो गई. बताया जाता है कि दादा मुनि अशोक कुमार से मीना कुमारी की ऐसी हालत देखी नहीं जाती थी. उन्होंने उनके साथ बहुत-सी फिल्मों में काम किया था.
 
वह एक दिन मीना के लिए दवाइयां भी लेकर गए थे, लेकिन उन्होंने दवा लेने से इनकार कर दिया. फिल्म ‘पाकीजा’ के रिलीज होने के तीन हफ्ते बाद, मीना कुमारी गंभीर रूप से बीमार हो गईं. 28 मार्च, 1972 को उन्हें सेंट एलिजाबेथ के नर्सिग होम में भर्ती कराया गया. मीना ने 29 मार्च, 1972 को आखिरी बार कमाल अमरोही का नाम लिया, इसके बाद वह कोमा में चली गईं.
 
मीना कुमारी महज 39 साल की उम्र में मतलबी दुनिया को अलविदा कह गईं. उन्हें 1966 में फिल्म ‘काजल’, 1963 में ‘साहिब बीवी और गुलाम’, 1954 में ‘बैजू बावरा’, 1955 में ‘परिणीता’ के लिए फिल्मफेयर सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया.
 

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