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75 साल बेमिसाल: सत्यजीत रे की इस फिल्म से दुनिया पर बना भारतीय सिनेमा का दबदबा

नई दिल्ली : इस साल भारत आज़ादी का अमृत महोत्सव मनाने वाला है क्योंकि इस साल भारत को आज़ाद हुए 75 साल पूरे हो जाएंगे. 75 वर्षों के बाद देश में काफी कुछ बदला है. आज़ादी से अब तक कई क्षेत्रों में देश ने तरक्की की है. आज हम आपको भारतीय सिनेमा में आए बदलावों […]

Indian cinema dominated the world with this film of Satyajit Ray
inkhbar News
  • Last Updated: August 13, 2022 19:54:22 IST

नई दिल्ली : इस साल भारत आज़ादी का अमृत महोत्सव मनाने वाला है क्योंकि इस साल भारत को आज़ाद हुए 75 साल पूरे हो जाएंगे. 75 वर्षों के बाद देश में काफी कुछ बदला है. आज़ादी से अब तक कई क्षेत्रों में देश ने तरक्की की है. आज हम आपको भारतीय सिनेमा में आए बदलावों के बारे में बताने जा रहे हैं. भारतीय सिनेमा पूरे विश्व में प्रचलित है. इसे सबसे बड़ा सिनेमा जगत भी कहा जाता है. लेकिन इस इंडस्ट्री को ये मुकाम रातों रात हासिल नहीं हुआ. चलिए जानते हैं वो कौन सी फिल्म थी जिसने भारतीय हिंदी सिनेमा को इस मुकाम तक पहुंचाया.

सत्यजीत रे की गिनती उन तमाम निर्देशकों में की जाती है जिनका निर्देशन आज के दौर में फिल्म बनाने वालों को प्रेरित करता है. उनकी फिल्में आज के दौर में भी बतौर उदाहरण प्रस्तुत की जाती हैं. सत्यजीत रे की ही बदौलत हिंदी सिनेमा का आज अंतरराष्ट्रीय मुकाम है. साल 1959 में आई उनकी फिल्म अपूर संसार ने हिंदी सिनेमा को दुनिया के पटल पर रखा था.

अंतरराष्ट्रीय फिल्म फेस्टिवल

साल 1959 में आई सत्यजीत रे की फिल्म अपूर संसार ने दुनियाभर में भारतीय फिल्म इंडस्ट्री को अलग पहचान दी थी. दुनियाभर में भारतीय फिल्मों का रुतबा बढ़ने में इसी फिल्म का हाथ था. इस फिल्म ने इतिहास रच दिया था.अपूर संसार को साल 1960 के लंदन फिल्म फेस्ट में बेस्ट ओरिजनल फिल्म का खिताब मिला था. इसी साल एडिनबर्ग इंटरनेशनल फिल्म फेस्ट में भी इस फिल्म ने अवॉर्ड पाया. इतना ही नहीं, दो साल बाद 1962 में हुए बाफ्टा अवॉर्ड में भी इस फिल्म को बेस्ट फॉरेन फिल्म की केटेगरी में जगह मिली. इसी फिल्म से दुनिया ने भारतीय सिनेमा जगत का लोहा माना था.

कुछ ऐसी थी कहानी

फिल्म की कहानी की बात करें तो ये एक बेरोजगार इंसान की कहानी थी जो पेशे से लेखक था और वापस कोलकाता आता है. उसकी पत्नी एक बच्चे को जन्म देने के बाद मर जाती है लेखक का मनना है कि पत्नी की मौत के लिए उसका बेटा जिम्मेदार है. फिल्म इसी कहानी के इर्द-गिर्द है. इस कहानी और फिल्मांकन के लिए सत्यजीत रे ने कई पुरस्कार जीते थे. इतना ही नहीं इस फिल्म के आस-पास 1954 में आई पाथेर पांचाली, 1957 की अपराजितो भी वो फिल्में थीं जिसने भारतीय सिनेमा को नई पहचान दी.

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