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‘कायर लोग ही युद्ध में…’ बाबूजी की पंक्तियों के साथ अमिताभ बच्चन का भावुक संदेश, भारत-पाक टेंशन के बीच शेयर की कविता

अमिताभ बच्चन ने भारतीय सेना और प्रधानमंत्री मोदी दोनों की तारीफ भी की है. सोशल मीडिया पर बिग बी ने अब एक कविता भी शेयर की है. ये कविता उनके पिताजी हरिवंश राय बच्चन जी ने 1965 में हुए युद्ध के दौरान में लिखी थी.

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  • Last Updated: May 12, 2025 12:01:20 IST

Amitabh Bachchan Post: बॉलीवुड के शहंशाह अमिताभ बच्चन ने पहलगाम आतंकी हमले पर अपना कोई रिएक्शन नहीं दिया था जिसके बाद से वो बुरी तरह से ट्रोल हो रहे थे. अब उन्होंने ऑपरेशन सिंदूर की काफी तारीफ की है. अमिताभ बच्चन ने भारतीय सेना और प्रधानमंत्री मोदी दोनों की तारीफ भी की है. सोशल मीडिया पर बिग बी ने अब एक कविता भी शेयर की है. ये कविता उनके पिताजी हरिवंश राय बच्चन जी ने 1965 में हुए युद्ध के दौरान में लिखी थी. ये कविता उस समय में काफी फेमस हुई थी. इस कविता को लिखने के साथ-साथ अमिताभ बच्चन ने तुलसीदास रामचरित मानस की भी एक लाइन लिखी हुई है.

अमिताभ बच्चन का किया यह पोस्ट सोशल मीडिया पर काफी तेजी से वायरल हो रहा है. उन्होंने वीरता और शत्रु दोनों के ही बारे में इस पोस्ट में लिखा हुआ है. इस पोस्ट पर उनके कई फैंस ने कमेंट भी किये हैं.

अमिताभ बच्चन ने ये किया पोस्ट

अमिताभ बच्चन ने पहले कविता शेयर की. जिसके साथ लिखा- जय हिंद. बाबूजी की एक कविता की कुछ पंक्तियाँ थी. उसके बाद उन्होंने लिखा है – नीचे शेयर की हुई कविता का मतलब ये है. सूर समर करनी करहिं तो कहि न जनावहिं इस पंक्ति का अर्थ यह है कि शूरवीर कभी भी अपने पराक्रम को युद्ध में करके ही दिखाते हैं, वे अपनी वीरता का प्रदर्शन करने के लिए बातें कभी नहीं बनाते. पंक्ति तुलसीदास जी के रामचरितमानस के लक्ष्मण-परशुराम संवाद से यह ली गई है – कि शूरवीर अपनी वीरता को युद्ध में करके दिखा देते हैं, वे अपने मुंह से अपनी प्रशंसा कभी नहीं करते. कायर लोग ही युद्ध में शत्रु को सामने देखकर अपनी वीरता की डींगें हाकने लगते हैं.

अमिताभ बच्चन ने आगे लिखते हुए कहा की – शब्दों में भी व्यक्त किया हुआ है, पहले से भी कहीं अधिक सत्य .. एक कवि और उनकी दृष्टि पहले से कहीं अधिक महान होती हैं .. बाबूजी के यह शब्द 1965 में पाकिस्तान के साथ हुए युद्ध के इर्द-गिर्द में लिखे गए,थे हम जीते और विजयी हुए थे जिसके लिए उन्हें 1968 में प्रतिष्ठित साहित्य अकादमी का पुरस्कार भी मिला था .. यह लगभग 60 साल पहले की बात है .. 60 साल पहले की एक दृष्टि जो आज भी वर्तमान परिस्थितियों में सांस लेती है.

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