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सुर सम्राट मोहम्मद रफी को 93वें जन्मदिवस पर गूगल ने डूडल बनाकर याद किया

मोहम्मद रफी को संगीत की प्रेरणा एक फकीर से मिली थी. फकीर जब उनके भाई की दुकान के सामने से गुजरता था तो वे उसके पीछे पीछे घूमते थे. उसकी नकल करते करते उनके गायन में निखार आया और वे मुंबई तक पहुंच गए. मायानगरी मुंबई आकर उन्हें बहुत ख्याति मिली.

मोहम्मद रफी
inkhbar News
  • Last Updated: December 24, 2017 07:41:49 IST

नई दिल्ली. सुरों के बादशाह मोहम्मद रफी का आज जन्मदिन है. मोहम्मद रफी के 93वें जन्मदिन को गूगल डूडल बनाकर याद कर रहा है. 24 दिसंबर 1924 को पंजाब के कोटला में जन्मे मोहम्मद रफी की आवाज के दीवाने दुनियाभर में हैं. कोटला के सुल्तान सिंह गांव में जन्मे आवाज के इस जादूगर को संगीत की प्रेरणा एक फकीर से बनी थी. बताया जाता है कि इनके भाई की नाई की दुकान थी. रफी का बचपन में ज्यादातर समय वहीं गुजरता था. सात साल की उम्र मे वे दुकान के समय से गुजरने वाले एक फकीर का पीछा करते थे. वह फकीर गाता हुआ गुजरता था. रफी को उसकी आवाज अच्छी लगती थी औऱ वे उसकी नकल किया करते थे.

रफी अब दुकान पर भी आकर फकीर के गाने की नकल किया करते थे. उनके गानों में लगातार निखार आ रहा था लोग दुकान पर आकर उनके गाने सुनने और तारीफ करने लगे थे. इससे रफी को स्थानीय ख्याति से ज्यादा कुछ नहीं मिला लेकिन तारीफों से उनका हौसला जरूर मिला. बड़े भाई हमीद ने मोहम्मद रफी के मन में संगीत के प्रति बढ़ते रुझान को पहचान लिया था और आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया. उन्होंने रफी को लाहौर में संगीत की शिक्षा लेने के लिए उस्ताद अब्दुल वाहिद खान के पास भेजना शुरू कर दिया. साथ ही मोहम्मद रफी ने गुलाम अलीखान से भारतीय शास्त्रीय संगीत भी सीखना शुरु कर दिया.

उन्होंने महज 13 वर्ष की उम्र में पहला गीत स्टेज पर दर्शकों के बीच पेश किया. दर्शकों के बीच बैठे संगीतकार श्याम सुंदर को उनका गाना अच्छा लगा और उन्होंने रफ़ी को मुंबई आने के लिए न्योता दिया. श्याम सुदंर के संगीत निर्देशन में रफ़ी ने अपना पहला गाना, ‘सोनिये नी हिरीये नी’ पार्श्वगायिका जीनत बेगम के साथ एक पंजाबी फिल्म गुल बलोच के लिए गाया. वर्ष 1944 मे नौशाद के संगीत निर्देशन में उन्हें अपना पहला हिन्दी गाना, ‘हिन्दुस्तान के हम है पहले आप के लिए गाया.’

साल 1949 में नौशाद के संगीत निर्देशन में दुलारी फिल्म में गाए गीत ‘सुहानी रात ढल चुकी’ के जरिए वह सफलता की उंचाईयों पर पहुंच गए. इसके बाद उन्होनें पीछे मुड़कर नही देखा. उन्होंने कई भाषाओं में करीब 7,405 गाने गाए. उन्हें छह फिल्मफेयर अवॉर्ड और एक नेशनल फिल्म अवॉर्ड मिला. 31 जुलाई 1980 को आवाज के महान जादूगर मोहम्मद रफ़ी को दिल का दौरा पड़ा और वह इस दुनिया को छोड़कर चले गए. आज भले ही रफी हमारे बीच नहीं हैं लेकिन आज का युवा भी रफी की आवाज का दीवाना है.

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https://www.youtube.com/watch?v=CXM4jvuFMlI

https://www.youtube.com/watch?v=PVlMkE7sU6g

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