नई दिल्ली: सुख और दुख यह जीवन की दो अवस्थाएं बताई गई हैं. सभी लोगों के जीवन में सुख और दुख आते-जाते रहते हैं. कोई नहीं चाहता कि उनके जीवन में कभी दुख आए या गरीबी से कभी भी उनका सामना हो. गरीबी को कैसे दूर रखा जाए इस संबंध में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि- दरिद नाशन दान, शील दुर्गतिहिं नाशियत.
बुद्धि नाश अज्ञान, भय नाशत है भावना, दान से दरिद्रता या गरीबी का नाश होता है. शील या व्यवहार दुखों को दूर करता है. बुद्धि अज्ञानता को नष्ट कर देती है. हमारे विचार सभी प्रकार के भय से मुक्ति दिलाते हैं.