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Karnataka Election : सीएम बसवराज की सीट हुई फाइनल, इस सीट से लड़ेंगे चुनाव

बेंगलुरू : कुछ दिन पहले बीजेपी की केंद्रीय चुनाव समिति की बैठक हुई थी जिसमें कर्नाटक के सीएम बसवराज बोम्मई की सीट फाइनल हो गई है. बसवराज बोम्मई ने कहा कि पार्टी दो सीट से चुनाव लड़ने के लिए कह सकती है. सीएम ने खुद बताया कि शिवगांव निवार्चन क्षेत्र से चुनाव लड़ूंगा. जल्द होगी […]

बसवराज बोम्मई
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  • Last Updated: April 11, 2023 16:12:09 IST

बेंगलुरू : कुछ दिन पहले बीजेपी की केंद्रीय चुनाव समिति की बैठक हुई थी जिसमें कर्नाटक के सीएम बसवराज बोम्मई की सीट फाइनल हो गई है. बसवराज बोम्मई ने कहा कि पार्टी दो सीट से चुनाव लड़ने के लिए कह सकती है. सीएम ने खुद बताया कि शिवगांव निवार्चन क्षेत्र से चुनाव लड़ूंगा.

जल्द होगी उम्मीदवारों की सूची जारी- सीएम

बीते रविवार को बीजेपी की केंद्रीय चुनाव समिति की बैठक हुई जिसमें 150 से अधिक नामों पर मुहर लग गई है. मीडिया रिपोर्ट के अनुसार बीजेपी पहली बार में 140 उम्मीदवारों की सूची जारी कर सकती है.

बसवराज ने लगाई है हैट्रिक

शिवगांव निवार्चन क्षेत्र से सीएम बसवराज बोम्मई लगातार 3 बार से विधायक है और कर्नाटक के 23वें मुख्यमंत्री है. कर्नाटक में उनकी गिनती धुरधंर नेताओं में होती है. इस निर्वाचन क्षेत्र में 73 फीसदी हिंदू है वहीं 24 फीसदी मुस्लिम है और 0.8 फीसदी ईसाई हैं. इस सीट पर लिंगयात समुदाय का दबदबा है और सीएम खुद उसी समुदाय से आते है.

कित्तूर कर्नाटक में लिंगायत समुदाय का दबदबा

इस इलाके को पहले मुंबई कर्नाटक के नाम से जाना जाता था. लेकिन मुंबई और कर्नाटक के बीच 2021 में सीमा विवाद हुआ था उसके बाद सीएम बसवराज बोम्मई ने मुंबई कर्नाटक का नाम बदलकर कित्तूर कर्नाटक कर दिया. कित्तूर कर्नाटक में लिंगायुत समुदाय का दबदबा रहा है जिस वजह से बीजेपी की यहां पर मजबूत पकड़ है. बीजेपी के वरिष्ठ और दिग्गज नेता बीएस येदियुरप्पा और मौजूदा सीएम बसवराज बोम्मई लिंगायत समुदाय से आते हैं. इस इलाके में सबसे बड़ा चुनावी मुद्दा पानी है क्योंकि यहां पर पानी की बहुत बड़ी समस्या है.

2013 में जब येदियुरप्पा पार्टी से अलग हो गए थे तब कांग्रेस को फायदा मिला था. इस इलाके में विधानसभा की 28 सीटें है. 2013 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने 28 सीटों में से 14 सीटें और बीजेपी ने 10 सीटों पर जीत दर्ज की थी वहीं जेडीएस के खाते में 4 सीटें गई थी. येदियुरप्पा जब पार्टी में लौटे तो फिर से यहां पर दबदबा बढ़ गया और जेडीएस का सफाया हो गया.

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