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मिलिए रियल लाइफ फुनसुख वांगड़ू से, इनके नाम हैं 140 से ज्यादा पेटेंट

श्यामलदास रांचोड़दास चांचड़ या फुनसुख वांगड़ू…इन दो नामों को बॉलीवुड कतई नहीं भूल सकता. निर्देशक विधु विनोद चोपड़ा के निजी जीवन से उठा कर बुना गया था बाबा रांचोड़दास का ये किरदार. विधु विनोद चोपड़ा ने बताया कि जिस तरह आमिर खान इस फिल्म में मनमौजी हैं वो वैसे ही हैं. 3 इडियट्स असल में एक कहानी नहीं थी बल्कि हर एक युवाओं की असली ज़िन्दगी का दर्द था. लेकिन इस पिक्चर ने कितनी जिंदगियों को बदल के रख दिया. कई लोगों की मानसकिता को भी बदल दिया.

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  • Last Updated: November 20, 2016 13:23:37 IST
त्रिपुरा. श्यामलदास रांचोड़दास चांचड़ या फुनसुख वांगड़ू…इन दो नामों को बॉलीवुड कतई नहीं भूल सकता. निर्देशक विधु विनोद चोपड़ा के निजी जीवन से उठा कर बुना गया था बाबा रांचोड़दास का ये किरदार. विधु विनोद चोपड़ा ने बताया कि जिस तरह आमिर खान इस फिल्म में मनमौजी हैं वो वैसे ही हैं. 3 इडियट्स असल में एक कहानी नहीं थी बल्कि हर एक युवाओं की असली ज़िन्दगी का दर्द था. लेकिन इस पिक्चर ने कितनी जिंदगियों को बदल के रख दिया. कई लोगों की मानसकिता को भी बदल दिया.
 
आपको ऐसी ही हस्ती के बारे में बताते हैं जो असल जिंदगी के फुनसुख वांगड़ू हैं. कुछ व्यक्ति भीड़ से अलग होकर चलना चाहते हैं और समाज में बदलाव लाना चाहते हैं. उन में से ही एक हैं उद्धब भराली जिन्होंने 140 से ज्यादा पेटेन्ट और अविष्कार किए हैं. आसाम के लखीमपुर के रहने वाले उद्धब को कई अवार्ड से भी सम्मानित किया जा चुका है. आइए जानते हैं भारत के असली हीरो की पूरी कहानी…
 
उद्धब बचपन से ही बहुत होशियार थे लेकिन उनको पढ़ाई के लिए कई परेशानियों का सामना करना पड़ा था. घर की आर्थिक स्थिति सही नहीं होने की वजह से उद्धब को इंजनियरिंग की पढ़ाई बीच में ही छोड़नी पड़ी. इसके अलावा उनके पिता के बिजनेस में घाटे की वजह से उनके घर घर पर बैंक का कर्जा था. उनके ऊपर जिम्मेदारियों के चलते ही उद्धव की एक सफल संशोधक के रूप में पहचान हुई.
 
उद्धव ने मात्र 23 साल की उम्र में पॉलीथिन बनाने की एक मशीन मशीन बनायी थी. उसके बाद 2005 में राइस पाउंडिंग मशीन बनाने के बाद नेशनल इनोवेशन फाउंडेशन अहमदाबाद की नजर में आए. उसके बाद उद्धब ने खास तौर पर खेती के लिए काम में आने वाले ऐसे अनेक प्रकार की मशीने बनाईं. अमेरिका के इंजीनियर 30 साल मेहनत करके जो अनार के छिलके निकालने की मशीन नहीं बना सके वो मशीन उद्धब ने बनाईं और वो उनका सबसे फेमस इनोवेशन था. इसी मशीन को नासा और एमआईटी जैसी बड़ी संस्था ने नवाजा और भराली को पूरी दुनिया जानने लगी.
 
आज कई देशो से उन्हें अलग-अलग मशीन बनाने के काम दिए जाते है उनकी और भी फेमस मशीन है जैसे अनार की तरह सुपारी तोड़ने की मशीन, विकलांगो के लिए बनायीं मैकेनाइज टॉयलेट और चाय की पत्ति से चाय पावडर बनाने की मशीन.
 
ऐसी बहुत सी मशीन बनाने के बाद भी उद्धब ने कोई भी मशीन जरुरत मंद और गरीब लोगों को बेचीं नहीं बल्कि उन्होंने उन मशीनों को फ्री में ही दे दिया. उद्धब गरीबों, किसानों और औरतों की मदद के लिए भी जाने जाते हैं. 

 

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