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बस्तर दशहरा: यहां हैं रथ खींचना अनिवार्य, नहीं खींचा तो जुर्माना

छत्तीसगढ़ के बस्तर में 75 दिनों तक चलने वाले विश्व प्रसिद्ध दशहरा के लिए इन दिनों किलेपाल परगना के 34 गांवों में खासा उत्साह है. यहां रथ खींचने का अधिकार केवल किलेपाल के माड़िया लोगों को ही है.

बस्तर दशहरा
inkhbar News
  • Last Updated: October 18, 2015 14:34:16 IST
रायपुर. छत्तीसगढ़ के बस्तर में 75 दिनों तक चलने वाले विश्व प्रसिद्ध दशहरा के लिए इन दिनों किलेपाल परगना के 34 गांवों में खासा उत्साह है. यहां रथ खींचने का अधिकार केवल किलेपाल के माड़िया लोगों को ही है. माड़िया मुरिया, कला हो या धाकड़, हर गांव से परिवार के एक सदस्य को रथ खींचने जगदलपुर आना ही पड़ता है. इसकी अवहेलना करने पर परिवार की आर्थिक स्थिति को देखते हुए जुर्माना लगाया जाता है.
बस्तर दशहरा में किलेपाल परगना से दो से ढाई हजार ग्रामीण रथ खींचने पहुंचते हैं. छत्तीसगढ़ के बस्तर में 75 दिनों तक मनाए जाने वाला दशहरा पूरे विश्व में विख्यात है. इसमें शामिल होने बड़ी संख्या में विदेशों पर्यटक भी पहुंचते हैं.
 
माना जाता है कि यहां का दशहरा 500 सालों से अधिक समय से परंपरानुसार मनाया जा रहा है. 75 दिनों की इस लंबी अवधि में प्रमुख रूप से काछनगादी, पाट जात्रा, जोगी बिठाई, मावली जात्रा, भीतर रैनी, बाहर रैनी तथा मुरिया दरबार मुख्य रस्में होती हैं. बस्तरा दशहरा का आकर्षण होता है, यहां लकड़ी से निर्मित होना वाला विशाल दुमंजिला रथ.
 
बताया जाता है कि बिना किसी आधुनिक तकनीक या औजारों की सहायता से एक निश्चित समयावधि में आदिवासी उक्त रथ का निर्माण करते हैं फिर रथ को आकर्षण ढंग से सजाया जाता है. रथ पर मां दंतेश्वरी का छत्र सवार होता है. स्थानीय निवासियों का कहना है कि जब तक राजशाही जिंदा थी, राजा स्वयं सवार होते थे.

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