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बच्चों में डायबिटीज बन रहा है बड़ा संकट, टाइप-1 से बिगड़ सकती हैं उनकी मेंटल हेल्थ

नई दिल्ली: डायबिटीज ऐसी बीमारी है जो बच्चों से लेकर बूढ़ों को भी अपना शिकार बना रही है। डायबिटीज से लगभग हर दिन एक नया मामला सामने आता है. आजकल बच्चे भी तेजी से डायबिटीज की चपेट में आ रहे हैं। डायबिटीज बच्चों की मानसिक सेहत को भी प्रभावित कर रहा है। बच्चों में डायबिटीज […]

Diabetes in Kids
inkhbar News
  • Last Updated: July 21, 2024 13:43:55 IST

नई दिल्ली: डायबिटीज ऐसी बीमारी है जो बच्चों से लेकर बूढ़ों को भी अपना शिकार बना रही है। डायबिटीज से लगभग हर दिन एक नया मामला सामने आता है. आजकल बच्चे भी तेजी से डायबिटीज की चपेट में आ रहे हैं। डायबिटीज बच्चों की मानसिक सेहत को भी प्रभावित कर रहा है।

बच्चों में डायबिटीज की बढ़त क्यों

डायबिटीज दो टाइप्स की होती हैं एक टाइप-1 और दूसरा टाइप-2। टाइप-1 जेनेटिकल और जन्मजात होता है तो वहीं टाइप-2 खराब लाइफस्टाइल और खानपान से जुड़ा है। टाइप-1 में पैंक्रियाज में इंसुलिन नहीं बन पाता इसलिए इंजेक्शन का सहारा लेना पड़ता है। बच्चों में टाइप-1 का  डायबिटीज तेजी से फैल रहा है। दुनिया में लगभग 30 लाख बच्चे टाइप-1 के शिकार है। इस आंकडें में भारत सबसे ऊपर है जहां बच्चों में टाइप-1 पाया जा रहा है।

टाइप-1 डायबिटीज बच्चों के लिए साइलेंट किलर से कम नहीं है ये धीरे-धीरे बच्चों को मानसिक रूप से कमजोर करता है। कई बार बच्चों में ब्रेन स्ट्रोक का कारण टाइप-1 डायबिटीज ही होता है। टाइप-1 का सबसे बड़ा कारण बच्चों की बढ़ती अन्हेल्दी लाइफ है। अब बच्चे पहले की तरह पर्याप्त पोषण नहीं लेते हैं। इस जनरेशन के बच्चों में बाहर जाकर खेल-कूद करने की भी आदत कम हो गई है जिस वजह से उनका वजन बढ़ जाता है।

 

माता-पिता ऐसे अपने बच्चों का रख सकते हैं ख्याल

-बच्चे का शुगर लेवल रेगुलर चेक करते रहें ताकि इससे बच्चे की डोज का पता चलते रहें, एक्सपर्ट्स के अनुसार माता-पिता हर आधे घंटे में एकबार इसकी जांच कर सकते हैं।

-बच्चों को एक्टिव रखें, उन्हें खेलकूद स्पोर्ट्स की ओर जाने के लिए प्रभावित करें, ताकि वे हमेशा बैठे न रहें। बच्चे साइकिलिंग कर सकते हैं, क्रिकेट या फुटबॉल खेल सकते हैं।

-बच्चों को हेल्दी चीजें खिलाएं जैसे मखाना, चना और बादाम। फाइबर से भरपूर चीजें बच्चों की भूख को कंट्रोल करेगा।

-माता-पिता अपने बच्चों को बीमारी का गलत असर न पड़ने दें, बच्चों के मन में इसका डर न बैठने दे ताकि बच्चे बाकी बच्चों की तरह अपनी जिंदगी जी सकें। अत्यधिक केयर भी उल्टा असर डाल सकती है।

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