Muslim Divorce Rules: इस्लाम धर्म के मुताबिक निकाह से लेकर तलाक तक के कई नियम होते हैं जिनका पालन करना मुसलामानों अनिवार्य होता है। वहीँ इसमें कई नियम ऐसे होते हाँ जो इस्लाम की धार्मिक किताब कुरआन या हदीस में होते हैं तो वहीँ कुछ नियम ऐसे होते हैं जो समाज द्वारा बनाए गए होते हैं। इद्दत का नाम तो आपने सुना होगा लेकिन क्या आप जानते हैं कि इद्दत भी दो प्रकार की होती है। पहली इद्दत वो जो पति के मरने के बाद की जाती है और दूसरी इद्दत वो जो तलाक के बाद की जाती है।
आज हम आपको इस लेख में तलाक के बाद वाली इद्दत के बारे में बताएंगे जो एक समाज द्वारा बनाया गया नियम है। इद्दत इस्लाम में तलाक से जुड़ी एक प्रक्रिया है। हर मुस्लिम महिला के लिए इसका पालन करना अनिवार्य है। यह एक तरह का इंतजार करने का समय है जो आमतौर पर पति की मौत या तलाक के बाद शुरू होता है और दोनों ही मामलों में इद्दत के दिन अलग-अलग होते हैं।
तलाक के बाद की इद्दत
इद्दत दो तरह की होती हैं एक पति के मरने के बाद अदा की जाती है तो दूसरी तलाक के बाद। अगर किसी मुस्लिम महिला के पति की मौत हो जाती है तो उसे 4 महीने 10 दिन की इद्दत की अवधि पूरी करनी होती है। तलाक के मामले में यह अवधि तीन महीने की होती है। तलाक के बाद इद्दत की इस अवधि के दौरान पति और पत्नी को 30 दिनों तक एक ही कमरे में सोना होता है। इस्लाम में पति-पत्नी के बीच तलाक के बाद पत्नी को इद्दत की अवधि का पालन करना होता है। यह अवधि तीन महीने की होती है और इस दौरान महिला किसी दूसरे पुरुष से संबंध नहीं बना सकती और न ही शादी कर सकती है। इद्दत की अवधि पूरी किए बिना शादी करना भी अवैध माना जाता है।
इसलिए लाया गया ये नियम
आपकी जानकारी के लिए बता दें, यह एक सामाजिक नियम है, जो अनिवार्य नहीं है। इसका उद्देश्य पति-पत्नी को अपने रिश्ते को फिर से शुरू करने का मौका देना है। 30 दिनों की अवधि के दौरान दोनों सुलह कर सकते हैं। इद्दत की अवधि का पालन यह सुनिश्चित करने के लिए भी किया जाता है कि महिला गर्भवती न हो। इस अवधि के दौरान यह पता चल जाता है और जब तक महिला बच्चे को जन्म नहीं दे देती, तब तक वह दूसरी शादी नहीं कर सकती। वहीं, ऐसी महिला को बच्चे के जन्म के बाद इद्दत की अवधि पूरी करनी होती है।