नई दिल्ली: दुनिया भर में हर दिन पीड़ितों को शर्मसार होना पड़ता है। क्या विक्टिम शेमिंग लीगल है? जब तक आरोपी का गुनाह साबित न हो उसे आरोपी कहना लीगल है? आप देख सकते है कि नुपूर शर्मा के एक बयान से पुरे देश में तहलका मच गया है। विक्टिम शेमिंग व्यक्ति को मानसिक रूप से घायल कर देती है। वो अपना ध्यान भटकाने के लिए कुछ और चीजे भी नहीं कर पाता है। समाज में उसे अलग ढंग से देखा जाने लगता है। आपको बताते है विक्टिम शेमिंग क्या है?
जब किसी घटना के शिकार को उनके स्वयं के हमले के लिए दोषी ठहराया जाए या आंशिक रूप से दोषी घोषित किया जाता है तो इसे विक्टिम शेमिंग कहा जा सकता है। मुख्य रूप से बलात्कार, घरेलू दुर्व्यवहार, यौन उत्पीड़न और यौन हमले के संदर्भ में इसका उपयोग किया जाता है। कई बार इसे अन्य स्थितियों पर भी लागू किया जा सकता है।
यह गलत तरीके से दोषी पक्ष से दोष को पीड़ित पर स्थानांतरित करता है, और इसलिए सही मायने में गलती करने वाले को दंडित नहीं करता है, बल्कि उसे विक्टिम शेमिंग का शिकार बना देता है। इस शब्द को स्लटवॉक आंदोलन द्वारा लोकप्रियता मिली थी, जो एक कनाडाई पुलिस अधिकारी द्वारा महिला छात्रों को पीड़ित होने से बचने के लिए “स्लट्स की तरह ड्रेसिंग से बचने” की राय देने के बाद शुरू हुआ था।
इस मामले को लेकर बॉलीवुड स्टार्स ने भी अपने विचार रखें । सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी सुर्खियों में आने के बाद विवेक अग्निहोत्री ने ट्वीट करते हुए लिखा, “अब पीड़ित को शर्मिंदा करना लीगल हो गया है, उनके इस ट्वीट को लोग नूपुर शर्मा को कोर्ट से मिली फटकार से जोड़कर देख रहे हैं। वहीं गीतकार मनोज मुंतशिर ने भी इस मामले पर अपनी राय दी है। उन्होंने लिखा कि सुप्रीम कोर्ट के ऐसा कहने से नुपूर की जान खतरे में भी पड़ सकती है।
पीड़ित को शर्मिंदा करने से उसके मेन्टल हेल्थ पर असर पड़ता है। उसे एक काम करने से पहले 100 बार सोचना पड़ता है। किसी काम में उसका मन नहीं लगता है, उसे अपनी बात कहने पर झिझक होने लगती है। ऐसे में किसी के साथ ऐसा करना कितना सही है और कितना गलत ? आप सोशल मीडिया भी देखते हैं तो वो भी दो गुटों में बट जाता है कुछ पक्ष में होते हैं और कुछ विपक्ष में।
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