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Kartarpur Sahib जाने वाले श्रद्धालुओं से नहीं लिया जाए 20 डॉलर का शुल्क, संसद में उठा मुद्दा

नई दिल्ली: आम आदमी पार्टी (आप) के नेता और पंजाब से राज्यसभा सांसद राघव चड्ढा ने आज शुक्रवार को संसद में अहम मुद्दा उठाया। राघव चड्ढा ने संसद में श्री करतापुर साहिब के पास जाने वाले भक्तों के पक्ष में एक महत्वपूर्ण सवाल उठाया। राघव चड्हा ने कहा कि, कुछ समय पहले जब श्री करतापुर […]

सांसद राघव चड्ढा
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  • Last Updated: December 9, 2022 22:07:58 IST

नई दिल्ली: आम आदमी पार्टी (आप) के नेता और पंजाब से राज्यसभा सांसद राघव चड्ढा ने आज शुक्रवार को संसद में अहम मुद्दा उठाया। राघव चड्ढा ने संसद में श्री करतापुर साहिब के पास जाने वाले भक्तों के पक्ष में एक महत्वपूर्ण सवाल उठाया। राघव चड्हा ने कहा कि, कुछ समय पहले जब श्री करतापुर साहिब को खोला गया था, तो लगभग पूरी दुनिया गुरु नानक देव जी के रंग में बह गई थी.

 

पासपोर्ट की समस्या

इस मामले में चड्ढा ने कहा कि हर व्यक्ति श्री करतापुर साहिब गुरुद्वारा के दर्शन के लिए जाना चाहता है, लेकिन यह सबके लिए आसान नहीं है. श्रद्धालुओं को तमाम तरह की मुश्किलों का सामना करना पड़ता है.पहली समस्या पासपोर्ट है. यहाँ पर जाने के लिए आपके पास पासपोर्ट होना चाहिए। बग़ैर पासपोर्ट के आप श्री करतापुर साहिब नहीं जा सकते है. भारत सरकार को पाकिस्तानी सरकार के खिलाफ यह अहम सवाल उठाना चाहिए।

वसूली बंद हो

इसी से जुड़ी दूसरी समस्या यह है कि प्रत्येक तीर्थयात्रियों को यात्रा करने के लिए $ 20 या लगभग 1600 रुपये का भुगतान करना पड़ता है. यदि 5 परिवार के सदस्य हर साल जाना चाहते हैं, तो उन्हें प्रति वर्ष 8 हजार रुपये खर्च करना होगा। इस शुल्क की यह वसूली बंद होनी चाहिए ताकि भक्त आराम से श्री करतारपुर साहिब दर्शन के लिए जा सकें।

 

रजिस्ट्रेशन प्रक्रिया

वहीं तीसरी समस्या ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन प्रक्रिया की है, जो इस समय काफी उलझी हुई है. इस प्रक्रिया को आपको सरल बनाना होगा ताकि संगत व श्रद्धालुओं को समस्याओं का सामना न करना पड़े व उनका समय भी बचे. साथ ही राघव चड्ढा ने कहा कि इन परेशानियों के हल के साथ, गुरु और संगत के बीच के फासले कम हो सकेंगे।

करतारपुर साहिब का गलियारा

इतिहास के संदर्भ में, श्री करतपुर साहिब कॉरिडोर बहुत महत्वपूर्ण है। यह गुरु नानक देव जी का कार्यस्थल है, जो पहले सिख धर्म के पहले गुरु है। यह माना जाता है कि 22 सितंबर, 1539 को गुरु नानक देव जी ने अपना शरीर छोड़ दिया। उनकी मृत्यु के बाद, गुरुद्वारा साहिबारा को उस पवित्र भूमि में बनाया गया था। विभाजन के बाद, यह गुरुद्वारा पाकिस्तान के हिस्से में शामिल हो गया था लेकिन दोनों देशों के श्रद्धालुओं के लिए ये आस्था का बड़ा केंद्र है.

 

 

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