Inkhabar
  • होम
  • देश-प्रदेश
  • डेरा सच्चा सौदा की गद्दी के लिए राम रहीम की खालिस्तानी आतंकियों ने की मदद !

डेरा सच्चा सौदा की गद्दी के लिए राम रहीम की खालिस्तानी आतंकियों ने की मदद !

पूरे मुल्क में इन दिनों एक बाबा की चर्चा सुबह से शाम तक हो रही है. मीडिया, सोशल मीडिया हर तरफ उसकी ही बातें हैं. ऐसे-ऐसे खुलासे हर घंटे हो रहे हैं कि यकीन करना मुश्किल हो रहा है. रिश्तों का ऐसा घालमेल है कि समाज की चूलें हिली हुई हैं.

Khalistani militants, Gurmeet Ram Rahim Singh, Honeypreet Insan, Ram rahim daughter Honeypreet Insan, Ram Rahim Singh convicted, Dera Sacha Sauda, Ram Rahim Singh, Gurmeet Ram Rahim conviction, gurmeet ram rahim rape case, Gurmeet Ram Rahim verdict, MSG, India News
inkhbar News
  • Last Updated: September 3, 2017 13:26:01 IST
नई दिल्ली: पूरे मुल्क में इन दिनों एक बाबा की चर्चा सुबह से शाम तक हो रही है. मीडिया, सोशल मीडिया हर तरफ उसकी ही बातें हैं. ऐसे-ऐसे खुलासे हर घंटे हो रहे हैं कि यकीन करना मुश्किल हो रहा है. रिश्तों का ऐसा घालमेल है कि समाज की चूलें हिली हुई हैं. आस्था से ऐसा खिलवाड़ है कि लोगों का इंसां और ईश पर से विश्वास हिला हुआ है. राम रहीम एक ट्रक ड्राइवर से 10 हजार करोड़ के डेरे का मालिक बना जात है. गुरमित का जन्म राजस्थान के गंगानगर में ही हुआ. राम रहीम के पापा का नाम मघर सिंह और मां नसीब कौर है. मघर सिंह डेरा सच्चा सौदा के फाउंडर मस्ताना जी के समय से ही सेवादार थे. मस्ताना जी के बाद शाह सतनाम डेरा प्रमुख बने और, शाह सतनाम जब 1990 में रिटायर्ट होने को थे तो उससे 4 महीने पहले उन्होंने अपने उत्तराधिकारी को लेकर बड़ी घोषणा की. उन्होंने कहा कि सात साल बाद वो फिर पुनर्जन्म लेंगे. डेरा सच्चा सौदा की बेवसाइट पर जो कहानी है. उसके मुताबिक 7 साल बाद वैसा ही हुआ. मस्ताना महाराज का पुनर्जन्म हुआ और ये पुनर्जन्म राम रहीम के तौर पर हुआ और इस तरह गुरमीत राम रहीम गंगानगर से सिरसा में डेरा सच्चा सौदा के प्रमुख बने. 
 
डेरा सच्चा सौदा पंथ में विश्वास करने वाले करीब 5 करोड़ लोगों को बताई और समझाई गई. कहा ये जाता है कि गुरमीत सिंह की दोस्ती 90 के दशक में खालिस्तानी आतंकवादी गुजरंत सिंह से थी. गुजरंत भी गंगानगर का ही रहने वाला था लेकिन उसकी पैठ तब पंजाब में सक्रिय खालिस्तानी गुटों के बीच थी. लिहाजा गुजरंत पंजाब-हरियाणा में डेरा सच्चा सौदा की गद्दी का मतलब समझता था और इसलिए वो किसी कीमत पर इस गद्दी यानी कुर्सी पर अपने किसी पिट्ठू को बिठाना चाहता था. कहा जाता है कि गुरमीत को सच्चा सौदा की गद्दी दिलाने की पूरी प्लानिंग गुजरंत ने ही बनाई क्योंकि शाह सतनाम ने जब अपने देहावसान से 4 महीने पहले डेरा के उत्तराधिकारी को लेकर घोषणा की तो उस वक्त इस गद्दी के वारिस के लिए तीन लोगों के नाम उछल रहे थे और गुरमीत का नाम तीसरे नंबर पर था लेकिन जो लोग इस रेस में गुरमीत से आगे थे उन्हें गुजरंत ने गायब करा दिया. ऐसे आरोप हैं.
 
सिर्फ 23 साल की उम्र में 23 सितंबर 1990 को गुरमीत सिंह. डेरा सच्चा सौदा का चीफ बन गया. उस डेरा का जिसके करीब 3 करोड़ फॉलोवर तब बताए जाते थे. जिसकी स्थापना 1948 में शाह मस्ताना ने की थी. कहते हैं कि डेरा की स्थापना के पीछे एक बड़ी वजह ये भी थी कि शाह मस्ताना विभाजन के समय हुए लड़ाई-झगड़े, दंगे-फसाद देख बेहद दुखी थे. वो इंसान को इंसान समझने और मानने की सीख देते थे. इंसानियत की दीवार को वो मजहब की दीवार से ऊपर समझते थे और लोग भी इंसानियत को ही सबसे बड़ा धर्म मानें ऐसा चाहते थे. नेकी और दरियादिली में उनका कोई सानी नहीं था. लिहाजा उनके साथ लोग जुड़ते चले गए और देखते-देखते शाह मस्ताना एक बड़े धर्मगुरु बन गए. उनके डेरा की चर्चा दुनिया भर में होने लगी. आज मस्ताना जी के उस डेरा सच्चा सौदा के सिर्फ हिन्दुस्तान में 50 से ज्यादा आश्रम हैं.’ दुनिया भर में छोटे-बड़े आश्रमों की को मिला दें तो ये संख्या 250 बताई जाती है और 5 करोड़ लोग इस पंथ के फॉलोवर हैं. दुनिया सालों से इस पंथ का जो चेहरा देखती रही उसमें सफाई अभियान, रक्तदान शिविर, गरीबों के लिए मदद जुटाने, बेटियों को पढ़ाने-बढ़ाने जैसा समाजिक नेक काम दिखता था. चुनाव प्रचार के दौरान खुद मोदी ने सच्चा सौदा के सफाई अभियान जैसे कामों की मंच से तारीफ की.
 
कहते हैं गुरमीत सिंह अपने पिता के साथ 5 साल की उम्र से ही डेरे पर आया-जाया करता था. गुरमीत राम रहीम के समर्थक ये दावा करते रहे हैं कि सात साल की उम्र में ही शाह सतनाम ने ही उसे राम रहीम का नाम दिया. गुरमीत के जन्म से पहले मघर सिंह की एक ही औलाद थी और वो बेटी थी, जिसकी मौत हो गई. तब गुरमीत की मां नसीब कौर ने गुरुसर मोडिया गांव में प्रवीणीदास के डेरे पर जाकर बेटे की मन्नत मांगी थी. मान्यता है कि तब प्रवीणीदास जो सच्चा-सौदा पंथ से जुड़े थे उन्हें मघर सिंह ने वचन दिया कि उसका बेटा 23 साल ही घर पर रहेगा. उसके बाद परिवार छोड़कर सेवा में चला जाएगा. लिहाजा गुरमीत की शादी उसके मां-बाप ने 18 साल की उम्र में ही कर दी. ताकि वंश न रुके. शुरूआत के दिनों में गुरमीत पर ये भी आरोप लगते हैं कि उसने दहेज में जीप के लिए ससुराल वालों को बहुत तंग-परेशान किया.
 
जब गुरमीत डेरा पहुंच गया तो उसका परिवार भी साथ में आया. वैसे उसकी पत्नी को बेहद कम मौकों पर डेरा के काम-काज में या बाकी समय में देखा गया. राम रहीम की दो बेटियां हुई और एक बेटा. वैसे गुरमीत राम रहीम अपनी तीन बेटियां बताता है. तीसरी बेटी हनीप्रीत है. कहते हैं कि अपने शुरूआती दिनों में देश भर से आए सच्चा सौदा के श्रद्धालुओं को राम रहीम पानी में पकौड़े बनाना, पानी को छूकर मीठा शर्बत बना देने जैसा करतब दिखाता था लेकिन बहुत जल्द उसे लगा कि ये सब करके वो बाबा बंगाली वाले बाबाओं की कैटेगरी में रह जाएगा. लिहाजा उसने दूसरे तरह का खेल शुरू किया. नब्बे के दशक में जब पंजाब आतंकवाद से बाहर आया था तब इन दोनों राज्यों पंजाब और हरियाणा में सिखों और जाटों के अलावा एक बड़ा तबका उन लोगों का था.  जो सनातन धर्म में होते हुए भी एक भटकाव के दौर से गुजर रहे थे. राम रहीम के लोग तेजी से ऐसे लोगों तक पहुंचने लगे.  इसके लिए जरूरी था कि इस नए तबके को प्रलोभन दिया जाए. लिहाजा जगह-जगह बरसात के मौसम में जब लोग खूब बीमार पड़ते हैं तो टैम्परोरी अस्पताल खोले गए. थोक में पारासिटेमोल और जेनरिक एंटीबॉयोटिक दवाईयां बांटी गई, जो सचमुच सेवा जैसा दिखता है.
 
(वीडियो में देखें पूरा शो)

Tags