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पुंछ आतंकी हमले में 5 जवान शहीद, कोई पीछे छोड़ गया 4 महीने का बेटा तो किसी की अभी हुई थी शादी

नई दिल्ली: कल यानी गुरुवार को जम्मू कश्मीर के पुंछ में हुए आतंकी हमले में पांच जवान शहीद हो गए. जहाँ बारिश का फायदा उठाते हुए आतंकियों ने सेना के ट्रक पर हमला कर दिया. इस कायराना हमले में ना केवल पांच जवान शहादत को प्राप्त हो गए बल्कि उनके पीछे छूट गए पांच परिवारों […]

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  • Last Updated: April 21, 2023 21:59:11 IST

नई दिल्ली: कल यानी गुरुवार को जम्मू कश्मीर के पुंछ में हुए आतंकी हमले में पांच जवान शहीद हो गए. जहाँ बारिश का फायदा उठाते हुए आतंकियों ने सेना के ट्रक पर हमला कर दिया. इस कायराना हमले में ना केवल पांच जवान शहादत को प्राप्त हो गए बल्कि उनके पीछे छूट गए पांच परिवारों में भी मातम छा गया है. जवानों के कुछ समझ पाने से पहले ही घात लगाए आतंकियों ने ग्रेनेड से उनके ट्रक को निशाना बनाया और फिर अंधाधुंध फायरिंग कर दी इस कायराना हरकत के बाद से भारतीय सेना पुंछ इलाके में सक्रिय हो गई है.

पुंछ में सेना के वाहन पर आतंकियों का हमला (फोटो- पीटीआई)

पीछे छोड़ गए कई ज़िंदगियां

हमले में शहीद होने वाले पांच जवानों में से चार पंजाब और एक ओडिशा का रहने वाला था. पाँचों जवानों की पहचान हवलदार मनदीप सिंह, लांस नायक देबाशीष बसवाल, लांस नायक कुलवंत सिंह, सिपाही हरकिशन सिंह और सिपाही सेवक सिंह हैं. शहीद होने वाले सभी जवानों के परिवारों में गुस्सा भरा हुआ है. जवानों में से किसी का सात साल का बेटा है तो किसी ने कुछ समय पहले ही शादी कर घर बसाया था.

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बहादुर सपूत को खोया

लांस नायक देबाशीष बिस्वाल ओडिशा के निवासी थे जो इस कायराना आतंकी हमले में शहीद हो गए. दो साल पहले ही उनकी शादी हुई थी जो अपनी पत्नी के अलावा सात महीने की बेटी को पीछे छोड़ गए. महज 30 वर्षीय बिस्वाल की स्थानीय लोगों के बीच खूब लोकप्रियता थी. वह देश की सेवा करने के इरादे से सेना में शामिल हुए थे स्थानीय युवा उनसे प्रेरित होते थे. लेकिन अब उस गाँव ने अपना बहादुर सपूत खो दिया है,

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शहीद कुलवंत सिंह का 4 महीने का बेटा

पंजाब के मोगा जिले के चारिक गांव से आने वाले शहीद जवान कुलवंत सिंह के परिवार में ही इस हमले को लेकर खूब नाराज़गी है. उनके परिवारजनों का कहना है कि सरकार और सेना को हमले का मुंहतोड़ जवाब देना चाहिए. कुलवंत अपने पीछे चार महीने के बेटे को छोड़ गए हैं. अब तक उनके बेटे का टीकाकरण भी नहीं हुआ था. ग्रामीणों के अनुसार कुलवंत के पिता भी सशस्त्र बलों में थे और कारगिल युद्ध में वह देश के लिए शहीद हो गए थे. उस समय कुलवंत की उम्र भी दो वर्ष ही थी।

शहीद होने से कुछ घंटे पहले ही परिवार से की थी बात

शहीद सिपाही सेवक सिंह बठिंडा के बाघा गांव से आते हैं जिनके परिवार का भी इस घटना के बाद से रो-रोकर बुरा हाल है. उधर सिपाही हरकिशन सिंह के घर पर बटाला के तलवंडी बर्थ गांव में ग्रामीणों ने मातृभूमि के लिए उनके सर्वोच्च बलिदान की सराहना की. हाल ही में वह अपने परिवार से मिलने गए थे लेकिन तब उन्हें भी नहीं पता था कि ये उनकी आखिरी मुलाकात होगी. शहीद होने के महज कुछ ही घंटों पहले वह अपनी पत्नी और दो साल की बेटी से वीडियो कॉल के माध्यम से बात कर रहे थे.