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ये कैसा उदारीकरण कि कच्चे तेल का दाम बढ़े तो जनता भरे और घटे तो सरकार भरे खजाना

आर्थिक उदारीकरण यानी खुला बाजार. हर सामान के दस-बीस दुकानदार और ग्राहक के पास किसी से भी खरीदने का विकल्प. जैसे अगल-बगल में IOCL, BPCL, HPCL, एस्सार और रिलायंस के पंप. सब ग्राहक को लुभाने के लिए कम दाम और ज्यादा सेवा की होड़ करें.

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  • Last Updated: September 15, 2017 15:25:47 IST
नई दिल्ली. आर्थिक उदारीकरण यानी खुला हुआ बाजार. मतलब एकदम खुला. हर सामान के दस-बीस दुकानदार और ग्राहक के पास किसी से भी खरीदने का विकल्प. जैसे अगल-बगल में इंडियन ऑयल, भारत पेट्रोलियम, हिन्दुस्तान पेट्रोलियम, एस्सार और रिलायंस के पंप. सब ग्राहक को लुभाने के लिए कम से कम दाम और ज्यादा से ज्यादा सेवा के लिए एक-दूसरे से होड़ करें. नरसिम्हा राव और मनमोहन सिंह ने यही सब तो बताया था कि नई आर्थिक नीतियों से देश की नीतियां उदार हो रही हैं जिसका टोटल या अल्टीमेट फायदा जनता को होगा. लाइसेंसराज खत्म होगा तो देश बुलेट ट्रेन की रफ्तार से विकास दर को दौड़ा देगा. गरीब लोग गरीबी रेखा से बाहर आ जाएंगे. बेरोजगार लोग सुबह 10 बजे दफ्तर जाने और शाम 5 बजे घर वापस आने लगेंगे. 
 
सरकार सड़क, बिजली, अस्पताल, स्कूल जैसी सेवाओं से खुद को समेटेगी और इस सेक्टर को प्राइवेट कंपनियों के लिए खोलकर इतने पैसे जुटाएगी कि उससे बचे हुए गरीबों का कल्याण हो जाएगा. आदिवासियों को जंगल और पहाड़ से निकालकर अपार्टमेंट में शिफ्ट कर दिया जाएगा जहां स्कूल और अस्पताल भी होगा. हुआ क्या, फॉर्ब्स लिस्ट में भारतीय अमीरों की संख्या बढ़ गई. डेटा का जादू चला तो बहुत सारे गरीब खुद ही अमीर यानी गैर-गरीब बन गए. कांग्रेस हो यो भाजपा, दोनों ही बाजार को खोलने वाली नीतियों की पैरोकार रही हैं इसलिए सरकारें जिसकी रही, कर वही रही है. भाजपा जिस आरएसएस की वैचारिक नींव पर खड़ी राजनीतिक पार्टी है उस संघ के कई संगठन नई आर्थिक नीतियों का विरोध करते-करते थक गए पर होता-जाता कुछ है नहीं. होता वही है जो फॉर्ब्स की पावरफुल लिस्ट में हर साल फोटो और नाम के साथ नजर आने वाले गिने-जुने उद्योगपति और व्यापारी चाहते हैं. जब जनता को बताया गया था कि उदारीकरण से बाजार खुल जाएगा तो खुले बाजार का नुकसान जनता उठाए और मुनाफा सरकार कमाए, ये कौन सा नीतिगत फॉर्मूला है. खुले बाजार के नाम पर खुला खेल चल रहा है जिसमें सरकार मालामाल हो रही है और जनता वहीं खड़ी टुकुर-टुकुर अपना बटुआ देख रही है जो वैसा ही है जहां तीन साल पहले उसे मनमोहन सिंह छोड़ गए थे. 
 
पेट्रोल-डीजल के दाम को भारतीय तेल कंपनियां पहले हर 15 दिन पर बदलती थीं लेकिन 15 जून, 2017 से इसे हर रोज बदलने की शुरुआत हुई. 15 दिन पर दाम बढ़ने या घटने पर लोगों को पता चल जाता था क्योंकि वो रुपया में होता था. बूंद-बूंद कर घड़ा भरता है तो खाली भी होता है. पता थोड़े ना चलता है जब तक कुछ समय बाद ना चेक किया जाए. हर दिन दाम बदलने से उसका ब्रेकिंग न्यूज वैल्यू खत्म हो गया और नतीजा ये हुआ कि कुछ-कुछ पैसे जोड़-घटाकर तेल कंपनियों ने पिछले तीन महीने में प्रति लीटर डीजल के दाम दिल्ली में 4.31 रुपए और मुंबई में 2.56 रुपए बढ़ा दिए जबकि पेट्रोल की कीमत दिल्ली में 4.95 रुपए और मुंबई में 2.84 रुपए बढ़ा दिए. इंडियन ऑयल के दाम पर नजर डालें तो 16 जून को डीजल प्रति लीटर 54.49 रुपए दिल्ली और 59.90 रुपए मुंबई में बिक रहा था. पेट्रोल का दाम दिल्ली में 65.48 रुपए और मुंबई में 76.70 रुपए प्रति लीटर था. आज यानी 15 सितंबर को इंडियन ऑयल का डीजल दिल्ली में 58.80 रुपए और मुंबई में 62.46 रुपए लीटर बिक रहा है. पेट्रोल का दाम दिल्ली में 70.43 रुपए और मुंबई में 79.54 रुपए लीटर है.
 
मनमोहन सिंह की जगह नरेंद्र मोदी जब प्रधानमंत्री बने थे तब यानी 26 मई, 2014 को पेट्रोल 71.41 रुपए और डीजल 56.71 रुपए लीटर बिक रहा था. यानी आज के दाम से कुछ ज्यादा.सिंह साहब जब कुर्सी छोड़कर गए तब कच्चे तेल की कीमत 108.05 डॉलर प्रति बैरल थी जो आज 55.74 डॉलर है. मतलब, कच्चा तेल का दाम आधा है और देश के लोग पेट्रोल और डीजल का मोटा-मोटी वही दाम चुका रहे हैं. याद करिए मनमोहन सरकार का वो जमाना जब पेट्रोल और डीजल का दाम बढ़ने पर तब के गुजरात सीएम और आज के पीएम नरेंद्र मोदी कहते थे कि ये सब केंद्र सरकार की नाकामी से हो रहा है. बीजेपी के नेता सड़कों पर चूल्हा-चौका लगाकर विरोध जताते थे. अब तो सरकार आपकी है तो नाकामी किसकी. वही खेल आज भी क्यों जो मनमोहन राज में चलता था. सरकार बदली तो खेल भी तो बदलना चाहिए.
 
अब पेट्रोलियम मंत्री और भाजपा नेता धर्मेंद्र प्रधान कहते हैं कि तेल की कीमत तो तेल कंपनियां तय करती हैं, सरकार क्या करे. मगर वो ये नहीं बताते कि सरकार ने अंतरराष्ट्रीय बाजार में तेल के घटे दाम का फायदा आम लोगों तक पहुंचने से रोकने और सरकारी खजाना भरने के लिए पेट्रोल पर एक्साइज ड्यूटी 9.48 रुपए से बढ़ाकर 21.48 रुपए और डीजल पर एक्साइज ड्यूटी 3.56 रुपए से 17.33 रुपए कर दिया है. इसका मतलब रुपए में समझना है और ये समझना है कि सरकार ने कितना कमाया तो ये जान लीजिए कि साल भर में देश में 3.2 करोड़ किलोलीटर पेट्रोल और 9 करोड़ किलोलीटर डीजल बिकता है. एक किलोलीटर मतलब 1000 लीटर. इस बढ़े हुए टैक्स से सरकार ने एक साल में करीब 1 लाख 62 हजार करोड़ ज्यादा कमाए. धर्मेंद्र प्रधान, केंद्र सरकार और सरकार चला रही भाजपा कह रही है कि दुनिया के 68 देशों में लोगों को भारत से महंगा तेल मिल रहा है लेकिन वो ये नहीं बता रहे कि चीन, पाकिस्तान, भूटान, नेपाल, श्रीलंका तक में ये हमसे सस्ता कैसे बिक रहा है. पाकिस्तान में पेट्रोल 43-44 रुपए लीटर बिकता है. नेपाल को तो तेल भारत से जाता है वहां भी ये 61-62 रुपए लीटर बिकता है.  जाहिर तौर पर जिन पड़ोसी देशों में ये सस्ता बिक रहा है वहां की सरकारों ने पेट्रोल और डीजल को कमाऊ सामान नहीं समझा है और लोगों पर बोझ कम करने के लिए अपने टैक्स को संयमित रखा है. हमारे यहां तो केंद्र ने अंतरराट्रीय बाजार में दाम गिरने पर एक्साइज बढ़ाकर खजाना भरा तो राज्यों ने भी अपना टैक्स बढ़ाकर बहती गंगा में हाथ धो लिया.
 
2014 में पेट्रोल पर टैक्स 34 परसेंट था जो आज बढ़कर 58 परसेंट हो चुका है. डीजल पर 2014 में टैक्स 21.5 परसेंट था जो आज 50 परसेंट को पार कर चुका है. अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चा तेल सस्ता होने के बाद भी आम लोगों को राहत क्यों नहीं मिल रही है वो इस टैक्स बढ़ाकर सरकारी खजाना भरने के खेल से साफ हो जाता है. सरकार और भाजपा के नेता अमेरिका में कुछ दिन पहले आए तूफान की वजह से रिफाइनरी का काम ठप होने को भी दाम बढ़ने की वजह बता रहे हैं लेकिन वो ये नहीं बताते कि कच्चे तेल का दाम तो जून, 2016 के बाद से ही 60 ड़ॉलर प्रति बैरल के नीचे घूम रहा है. एक समय तो ये 30 डॉलर तक भी गिर गया था. तूफान तो अभी की बात है. 
तेल कंपनियां टैक्स तो माफ नहीं कर सकतीं. उनको तो मुनाफा कमाना है. पर ये मुनाफाखोरी अगर सरकार में घुस जाए तो उसका कोई क्या कर सकता है. पेट्रोलियम मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ट्वीट करके कह रहे हैं कि तीन महीने में अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमत 13 परसेंट और दुनिया भर के देशों में पेट्रोल-डीजल के दाम 18 परसेंट बढ़ गए जबकि भारत में ये मात्र 4 परसेंट बढ़ा. अंतरराष्ट्रीय बाजार में भी कच्चे तेल का दाम हाल के महीनों में चढ़ा है लेकिन जब ये 30 डॉलर तक गया था या जब लंबे समय तक 60 डॉलर के नीचे झूल रहा था तब भी तो भारत के लोगों को पता नहीं चलने दिया गया कि कच्चे तेल का दाम गिर गया है.
 
सरकार की एक दलील ये भी है कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में सिर्फ कच्चा तेल का दाम गिरने से भारतीय पेट्रोल और डीजल का दाम नहीं गिर सकता क्योंकि कच्चे तेल को विदेश से लाने, देश के अंदर पंप तक पहुंचाने और जिस समय कच्चा तेल खरीदा जा रहा है उस समय भारतीय रुपए और डॉलर का एक्सचेंज रेट भी ध्यान में रखना होता है.
 
भाजपा ने पेट्रोल-डीजल के बढ़े दाम पर राज्यों और खास तौर पर विपक्ष को लपेटना शुरू कर दिया है. उसने ट्वीट करके बताया है कि एक्साइज ड्यूटी से आए पैसे का 42 परसेंट हिस्सा तो राज्यों को जाता है जिससे वो इन्फ्रास्ट्रक्चर और दूसरे कल्याणकारी काम करते हैं.  इस ट्वीट में दो राज्यों का उदाहरण ये बताने के लिए दिया गया है कि सेंट्रल एक्साइज के अलावा राज्यों का वैट बढ़ाना भी दाम चढ़ने का कारण है. ये दो राज्य हैं- लेफ्ट शासित केरल और आप शासित दिल्ली. केरल में वैट 26 से बढ़ाकर 34 परसेंट जबकि दिल्ली में 20 से बढ़ाकर 27 परसेंट कर दिया गया है.पेट्रोलियम मंत्री धर्मेंद्र प्रधान कह रहे हैं कि पेट्रोल और डीजल के दाम तभी कायदे से हो सकते हैं जब इन दोनों को भी जीएसटी के अंदर लाया जाए. फिलहाल ये जीएसटी से बाहर हैं. अगर ये करने से ही रेट कम होगा तो दिक्कत कहां है. केंद्र में भाजपा है. आधे से ज्यादा देश पर भाजपा या सहयोगी दल राज कर रहे हैं.  अब कौन है वो विघ्नसंतोषी जो पेट्रोल और डीजल को जीएसटी के दायरे में लाने में सरकार की राह में रोड़े अटका रहा है ?
 
(नोट- लेख में व्यक्त विचार लेखक के हैं और उसकी पूरी जवाबदेही लेखक की ही है.)

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