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सर्जिकल स्ट्राइक टीम की जुबानी: तो इस तरह जवानों ने दुश्मन की सीमा में घुसकर ऑपरेशन को दिया था अंजाम

29 सितंबर का दिन भारत के इतिहास में हमेशा याद किया जाएगा. जी हां इसी दिन आज से ठीक एक साल पहले इंडियन आर्मी ने पाकिस्तान की सीमा में घुसकर सर्जिकल स्ट्राइक करते हुए दुश्मनों को मुंहतोड़ जवाब दिया था

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  • Last Updated: September 28, 2017 17:11:07 IST
नई दिल्ली: 29 सितंबर का दिन भारत के इतिहास में हमेशा याद किया जाएगा. जी हां इसी दिन आज से ठीक एक साल पहले इंडियन आर्मी ने पाकिस्तान की सीमा में घुसकर ‘सर्जिकल स्ट्राइक’ करते हुए दुश्मनों को मुंहतोड़ जवाब दिया था. इसके एक साल पूरे होने पर इस ऑपरेशन को अंजाम तक पहुंचाने में शामिल जवानों ने न्यूज एक्स से खास बातचीत में इस ऑपरेशन की पूरी कहानी बताई. जवानों ने बताया कि वो कैसे बॉर्डर को क्रॉस कर पाकिस्तान की सीमा में प्रवेश किए थे. जवानों के अनुसार सर्जिकल स्ट्राइक के लिए, कुल 5 लक्ष्य निर्धारित थे, जिसमें 15 जवानों की टुकड़ी तीन टारगेट पर थी और 16 जवानों की टुकड़ी को दो टारगेट मिले थे. अब बात पहले 15 जवानों की टुकड़ी की करते हैं. जिसमें पहला टारगेट था 19 डिविजन और बारामुल्ला, जबकि लीपा घाटी में दो टारगेट थे जिसमें 28 डिविजन और कुपवाड़ा था. नीलम घाटी में एक टारगेट निर्धारित था. तो कुल मिलाकर पांच टारगेट इंडियन आर्मी ने तय किए थे. 
 
ऑपरेशन से पहले रेकी
सर्जिकल स्ट्राइक से पहले रेकी टीम तीन दिन पहले ही रात के समय बॉर्डर के लिए निकल गई थीं. जिसमें कुछ टीमें रात में लगभग 11.30 बजे, कुछ 11 बजे छोटे-छोटे टुकड़ों में निकली. रेकी के बाद ऑपरेशन का मुखोटा तैयार किया गया कि आखिर हमरी स्ट्राइक टीम किस जगह, कैसे और कब जाएगी. जवानों ने बताया कि ये ऑपरेशन बहुत मुश्किल था क्योंकि इसमें दुश्मनों का ध्यान रखना था कि कही उनको कोई भनक न लग जाए. ऑपरेशन से पहले सभी जवानों ने अपने हथियार को पूरी तरह से लोड कर लिए और जो जरूरत की चीजे थी सभी ने रख लिए थे चाहे वो मैगजीन रहा हो या फिर कोई और सामान.  जवानों के अनुसार जब वे ऑपरेशन के लिए निकले तो उनको 100-150 मीटर की दूरी तय करने में एक घंटे से ज्यादा का समय लग गया था. ऑपरेशन की भनग दुश्मन न लगे इसलिए जवानों ने पेट के बगल रेंग कर कुछ दूरी तय की क्योंकि वहां से कुछ ही दूरी पर गांव भी था. 
 
कैसे की घुसपैठ?
जवानों के अनुसार ऑपरेशन शुरू होने से पहले टीम कामांडर ने पूरे प्लान की जानकारी दी. हमारे साथ हेलीकॉप्टर भी शामिल कर लिया गया था. फिर हम अपने डिविजन लोकेशन से कार से निकले. जिसमें कुछ सिविल कारें थी और कुछ आर्मी व्हीकल थे. ये व्यवस्थाएं रात में कर ली गई थीं. हम जैसे ही निर्धारित लोकेशन पहुंचे वहां सभी गाड़ियों की लाइटे बंद कर दी गई. फिर हमने दुश्मनों की गतिविधियों पर नजर रखना शुरू किया. कुछ टुकड़ियां दो दिन तो कुछ तीन दिन पहले निर्धारित लोकेशन पर पहुंची. स्ट्राइक टीम ऑपरेशन वाली रात निर्धारित लोकेशन पर पहुंची. 28 तारीख को लगभग 10.30 हम अपने टारगेट से 200-250 मीटर पहले थे. हम सब मॉनिटर कर रहे थे कि जिससे हमको पाकिस्तान की गतिविधियों का पता चल रहा था. हम लोग अपने टारगेट को काफी करीब से मॉनिटर कर रहे थे. उनकी हर गतिविधियों पर हमारी टुकड़ियों की नजर थी.
 
वहां कुछ लोग पठानी सूट और ट्रैक सूट पहने हुए नजर आए. सीमा पार करने के बाद पहली टीम की हवाई दूरी करीब चार किलोमीटर थी और जमीन पर जो भीतर से सीमा पार कर रहे थे, उनकी दूरी करीब 6-6.5 थी किमी थी. 28 सितंबर को करीब 2 बजे स्पेशल फोर्सेस रेकी टीम से साइट पर मिली और उन्होंने टीम को टारगेट के बारे में दोबारा समझाया और कहा कि यह वही साइट है. टारगेट काफी तीव्र ढलान वाला था, जिसके बारे में भारतीय जवानों को पहले ही बता दिया गया था. स्ट्राइक टीम लगभग 3 बजे ऑपरेशन को अंजाम दिया. फायरिंग के लिए कमांडर की ओर से 15 मिनट पहले निर्देश मिलने की बात तय थी. कमांडर के गो बोलते ही फायरिंग शुरू हो जाएगी. सबसे पहले हमने संतरी के उपर फायर की. उसके बाद रॉकेट लॉन्चर से कुछ और टारगेट को निशाना बनया. रॉकेट लॉन्चर के फायर के बाद उनके बंकर में आग लग गई, जैसे वहां कैरोसिन रखा हो. 
 
उनकी ओर से भी मोर्टार और हैवी वैपेंस फायर किए गए थे. दुश्मनों को किसी भी तरह से हमारे लोकेशन की जानकारी नहीं मिल पाई. उनके फायर हम लोगों के उपर से निकल जाते थे. जब हम अपने क्षेत्र में आए तो सबसे पहले स्ट्राइक में शामिल सभी लोगों की गिनती हुई और हथियार का चेकिंग हुई. उसके बाद वहां वापस बटालियन की ओर निकले. 
 

 

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