Inkhabar
  • होम
  • देश-प्रदेश
  • पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने बताया, 2004 में क्यों हारी थी ‘वाजपेयी सरकार’

पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने बताया, 2004 में क्यों हारी थी ‘वाजपेयी सरकार’

पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने अपनी आत्मकथा 'द कोअलिशन ईयर्स 1996-2012' में बताया है कि क्यों साल 2004 में वाजपेयी सरकार फिर से सत्ता में नहीं लौट सकी थी. पूर्व राष्ट्रपति ने किताब में लिखा है, 'इस पूरी अवधि में (वाजपेयी सरकार के दौरान) अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण की मांग जोर पकड़ती रही. बढ़े सांप्रदायिक तनाव का गुजरात में काफी बुरा असर पड़ा, जो 2002 में हुए सांप्रदायिक दंगों के रूप में देखने को मिला.'

former president, Pranab Mukherjee, Pranab Mukherjee autobiography, Gujarat riots, BJP, 2004 elections, atal bihari vajpayee
inkhbar News
  • Last Updated: October 15, 2017 16:46:31 IST
नई दिल्लीः पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने अपनी आत्मकथा ‘द कोअलिशन ईयर्स 1996-2012’ में बताया है कि क्यों साल 2004 में वाजपेयी सरकार फिर से सत्ता में नहीं लौट सकी थी. पूर्व राष्ट्रपति ने किताब में लिखा है, ‘इस पूरी अवधि में (वाजपेयी सरकार के दौरान) अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण की मांग जोर पकड़ती रही. बढ़े सांप्रदायिक तनाव का गुजरात में काफी बुरा असर पड़ा, जो 2002 में हुए सांप्रदायिक दंगों के रूप में देखने को मिला.’
 
गुजरात दंगे वाजपेयी सरकार पर धब्बा
पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी का मानना है कि साल 2002 में गुजरात में हुए दंगे अटल बिहारी वाजपेयी सरकार पर ‘संभवत: सबसे बड़ा धब्बा’ थे और इसके कारण ही 2004 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को सत्ता गंवानी पड़ी. मुखर्जी ने अध्याय ‘फर्स्ट फुल टर्म नॉन कांग्रेस गवर्नमेंट’ में लिखा है, ‘साबरमती एक्सप्रेस के एक डिब्बे में लगी आग में 58 लोग जलकर मर गए. सभी पीड़ित अयोध्या से लौट रहे हिंदू कारसेवक थे. इससे गुजरात के कई शहरों में बड़े पैमाने पर दंगे भड़क उठे थे. संभवत: यह वाजपेयी सरकार पर लगा सबसे बड़ा धब्बा था, जिसके कारण शायद बीजेपी को आगामी चुनाव में नुकसान उठाना पड़ा.’
 
वाजपेयी ने विदेश में भारत की सौहार्द्रपूर्ण छवि पेश की
मुखर्जी ने लिखा कि वाजपेयी एक उत्कृष्ट सांसद थे. भाषा पर उम्दा पकड़ के साथ वह एक शानदार वक्ता भी थे. वाजपेयी फौरन ही लोगों के साथ जुड़ जाने और उन्हें साथ ले आने की कला में माहिर थे. उस दौरान राजनीति में वाजपेयी को लोगों का भरोसा मिल रहा था और इस प्रक्रिया में वह देश में अपनी पार्टी, सहयोगियों और विरोधियों सभी का सम्मान अर्जित कर रहे थे. विदेश में उन्होंने भारत की सौहार्द्रपूर्ण छवि पेश की और अपनी विदेश नीति के जरिए देश को दुनिया से जोड़ा. प्रभावशाली और विनम्र राजनेता वाजपेयी ने हमेशा दूसरों को उनके कार्यों का श्रेय दिया.
 
यूपीए में शामिल दलों की जीत से लोग हैरान थे
अध्याय के अनुसार, ‘सुधार की शुरुआत हमने नहीं की. हम नरसिम्हा राव सरकार द्वारा शुरू की गई और दो संयुक्त मोर्चा सरकारों द्वारा जारी रखी गई प्रक्रिया को आगे बढ़ा रहे हैं. लेकिन हम सुधार प्रक्रिया को व्यापक और गहरा बनाने और इसे गति देने का श्रेय अवश्य लेते हैं.’ मुखर्जी के मुताबिक, वाजपेयी ने कभी भी राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता को व्यक्तिगत तौर पर नहीं लिया. 2004 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस सत्ता में आई. यूपीए में शामिल दलों की जीत से लोग हैरान थे. कई चुनाव विश्लेषकों ने एनडीए की स्पष्ट जीत की भविष्यवाणी की थी.
 
एनडीए की जीत की थी भविष्यवाणी
2004 की फरवरी में इंडिया टुडे-ओआरजी-एमएआरजी सर्वेक्षण में वाजपेयी के नेतृत्व वाले गठबंधन की स्पष्ट जीत की भविष्यवाणी की गई थी. मुखर्जी के मुताबिक, ‘चुनाव सर्वेक्षण का विश्लेषण करते हुए पत्रिका ने लिखा था, प्रधानमंत्री की लोकप्रियता और अर्थव्यवस्था में तेजी की लहर पर सवार बीजेपी नेतृत्व वाला गठबंधन आगामी चुनाव में स्पष्ट जीत हासिल करने को तैयार नजर आ रहा है.’ मुखर्जी ने लिखा, ‘एनडीए का आत्मविश्वास हिल गया था. उसके ‘इंडिया शाइनिंग’ अभियान का नतीजा बिल्कुल उलटा निकला और बीजेपी में निराशा की लहर छा गई थी.
 
मतदाता के मन को नहीं समझ सकता
यही कारण था कि वाजपेयी ने दुखी होकर कहा था कि वह कभी भी मतदाता के मन को नहीं समझ सकते.’ मुखर्जी ने साथ ही याद किया कि 2004 लोकसभा चुनाव अक्टूबर में होने थे, लेकिन बीजेपी ने मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव में मिली जीत को देखते हुए छह महीने पहले ही चुनाव कराने का फैसला किया. हालांकि दिल्ली में बीजेपी को कांग्रेस के हाथों हार मिली थी. पूर्व राष्ट्रपति ने कहा, ‘महत्वपूर्ण राज्यों में जीत के कारण बीजेपी में खुशी की लहर थी. हालांकि कुछ लोगों ने इन परिणामों को राष्ट्रीय रुझान समझने की भूल न करने की सलाह भी दी थी.’
 
 

Tags