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इंदिरा गांधी को हो गया था मौत का आभास, हत्या से पहले 3 दिन में दिए ये 3 संकेत

इंदिरा गांधी को अपनी मौत का आभास हो गया था. ये बात किसी कयास के आधार पर नहीं लिखी जा रही बल्कि ऐसी कई घटनाएं जो इंदिरा के साथ उनकी मौत से ठीक पहले हुईं, वो साफ-साफ इस तरफ इशारा करतीं हैं.

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  • Last Updated: October 30, 2017 16:46:34 IST
नई दिल्लीः इंदिरा गांधी को अपनी मौत का आभास हो गया था. ये बात किसी कयास के आधार पर नहीं लिखी जा रही बल्कि ऐसी कई घटनाएं जो इंदिरा के साथ उनकी मौत से ठीक पहले हुईं, वो साफ-साफ इस तरफ इशारा करतीं हैं. कश्मीरी पंडितों के परिवार से ताल्लुक रखने वाली इंदिरा गांधी ने अपनी मौत का सबसे पहला संकेत कश्मीर में ही दिया. जिस आध्यात्मिक संत से इंदिरा गांधी ने अपनी मौत को लेकर चर्चा की, वो थे कश्मीरी शैववाद के विद्वान लक्ष्मणजू.
 
इंदिरा के साथ राहुल-प्रियंका भी गए थे कश्मीर दौरे पर
लक्ष्मणजू का कश्मीर में आश्रम ठीक उसी जगह पर था, जहां कभी कश्मीर के आध्यात्मिक संत अभिनव गुप्त का था. लक्ष्मणजू को मानने वालों में इंदिरा गांधी प्रमुख नाम था, इंदिरा जब भी कश्मीर जातीं, लक्ष्मणजू से जरूर मिलती थीं. लक्ष्मणजू के पिता नारायण दास को कश्मीर के लोग दूसरी वजह से जानते हैं, नारायण दास ही वो पहले व्यक्ति हैं जो कश्मीर में हाउस बोट लेकर आए थे. लेकिन लक्ष्मजू का झुकाव आध्यात्म में रम गया. इंदिरा गांधी ने अचानक जब 26 अक्टूबर को अपने कश्मीर दौरे के बारे में बताया तो करीबी चौंके, क्योंकि पहले से तय नहीं था. उनके साथ राहुल और प्रियंका भी कश्मीर दौरे पर घूमने आए.
 
तीन दिन पहले हो गया था मौत का आभास!
27 अक्टूबर की सुबह सभी लोग श्रीनगर पहुंचे. आराम करने के बाद रात में इंदिरा ने बच्चों के साथ वर्ड गेम भी खेला और जल्दी सो गईं. अगले दिन इंदिरा शंकराचार्य पहाड़ी पर चढ़ गईं, पहाड़ी पर ऊपर मंदिर में भी गईं. लौटकर बच्चों के साथ ब्रेकफास्ट किया और उन्हें छोड़कर लक्ष्मणजू के आश्रम में चली गईं, जो निशात बाग के पास था. एक जगह बैठ गईं, काफी देर बैठी रहीं. फिर लक्ष्मणजू से बोलीं, ‘मुझे लगता है मेरा वक्त अब पूरा हो गया है और मौत काफी करीब है.’ लक्ष्मणजू ने इंदिरा की बायोग्राफर दोस्त पुपुल जयकर को ये बात बताई थी. उसके बाद दोनों शांत हो गए, काफी देर तक दोनों ही खामोश हो गए. फिर लक्ष्मणजू ने उन्हें आश्रम में एक नई बिल्डिंग भी दिखाई और पूछा कि क्या इसका उदघाटन करेंगी? तो इंदिरा का जवाब था कि ‘अगर जिंदा रही तो जरूर आऊंगी.’ इंदिरा के इन दोनों बयानों से ऐसा लगता है कि क्या इंदिरा को तीन दिन पहले ही अपनी मौत का आभास हो गया था?
 
इंदिरा के मशहूर भाषण में भी मौत का जिक्र
28 अक्टूबर को ही इंदिरा हजरत सुल्तानु अर-ए-सिन की दरगाह पर भी गईं. वहां नीचे आते वक्त वो फिसल भी गईं, लेकिन चोट नहीं आई. उसके बाद वहां से वो शारिका मंदिर भी गईं, जो कश्मीरी ब्राह्मणों की कुलदेवी के तौर पर मानी जाती है. अगले दिन इंदिरा भुवनेश्वर में थीं. 29 अक्टूबर को उड़ीसा सीएम ने इंदिरा को हाथ से बुनी साड़ियां तोहफे में दीं. 30 अक्टूबर को इंदिरा ने भुवनेश्वर में अपना वो मशहूर भाषण भी दिया, जिसमें साफ-साफ लगता था कि उनको मौत का आभास हो गया है. इंदिरा ने कहा था, ‘मुझे चिंता नहीं है कि मैं जीवित रहूं या नहीं रहूं. जब तक मेरी सांस में सांस है देश की सेवा करती रहूंगी और अगर मेरी जान जाएगी तो मैं कह सकती हूं कि मेरे खून का एक-एक कतरा भारत को मजबूत करने के काम आएगा.’
 
माखन लाल फोतेदार की किताब में तीसरे संकेत का जिक्र
इंदिरा को मौत का पहले से आभास था, इसकी तीसरा संकेत माखन लाल फोतेदार की किताब से मिलता है. उन्होंने अपनी किताब ‘चिनार लीव्स’ में कहा है कि कैसे कश्मीर में एक मंदिर से लौटते वक्त इंदिरा ने कहा था कि प्रियंका ही मेरी राजनीतिक उत्तराधिकारी के तौर पर उभरेंगी. फोतेदार ने ये बात सोनिया गांधी को लेटर लिख कर भी बताई थी. 30 अक्टूबर को उड़ीसा से दिल्ली आने के बाद इंदिरा को मिली एक और चौंकाने वाली खबर कि राहुल और प्रियंका को स्कूल से लाने वाली जीप का एक्सीडेंट हो गया है. किसी कार ने साइड से हिट किया था लेकिन बच्चों को चोट नहीं आई थी. इंदिरा घबरा गईं, और बार-बार बोलती रहीं कि कोई हमारे बच्चों को किडनैप करना चाहता है. वो इसे उसी का प्लॉट मान रही थीं. देखा जाए तो इंदिरा उस वक्त अपनी मौत या सिर पर मंडराते खतरे को लेकर कैसे मानसिक हालात में थीं, इस बात से आप अंदाजा लगा सकते हैं. इतना ही नहीं उन्हें मौत से पहले की उस रात को ढंग से नींद नहीं आई थी, सोनिया गांधी ने देर रात उन्हें कोई दवाई लेते देखा था.
 
 

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