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Asian games: शॉर्टपुट में तजिंदर पाल सिंह ने किया कमाल, दूसरी बार जीता गोल्ड मेडल

नई दिल्लीः भारतीय एथलीट तजिंदर पाल सिंह तूर ने हांगझोऊ एशियाई खेलों में पुरुषों के शॉटपुट यानी गोला-फेंक में स्वर्ण अपने नाम कर लिया है। उन्होंने रविवार को 20.36 मीटर दूरी थ्रो के साथ स्वर्ण पदक अपने नाम किया। पुरुषों के शॉटपुट के फाइनल में छह राउंड थ्रो किए जाते है। एथलीट्स के बेस्ट अटेम्प्ट […]

Asian games: शॉर्टपुट में तजिंदर पाल सिंह ने किया कमाल, दूसरी बार जीता गोल्ड मेडल
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  • Last Updated: October 1, 2023 20:35:20 IST

नई दिल्लीः भारतीय एथलीट तजिंदर पाल सिंह तूर ने हांगझोऊ एशियाई खेलों में पुरुषों के शॉटपुट यानी गोला-फेंक में स्वर्ण अपने नाम कर लिया है। उन्होंने रविवार को 20.36 मीटर दूरी थ्रो के साथ स्वर्ण पदक अपने नाम किया। पुरुषों के शॉटपुट के फाइनल में छह राउंड थ्रो किए जाते है। एथलीट्स के बेस्ट अटेम्प्ट के आधार पर विजेता तय किए जाते हैं। तजिंदर के बाद दूसरे स्थान पर 20.18 मीटर दूरी के साथ सऊदी अरब के मोहम्मद दोउदा तोलो दूसरे स्थान पर रहे और रजत पदक अपने नाम किया।वहीं, चीन के यांग लियू ने 19.97 मीटर के बेस्ट थ्रो के साथ कांस्य पदक अपने नाम किया

जानिए मुकाबले का हाल

तजिंदर का पहले और दूसरे थ्रो फाउल करार दिया गया था। उनका तीसरा थ्रो 19.51 मीटर रहा। चौथा थ्रो उन्होंने 20.06 मीटर दूर फेका लेकिन पांचवा थ्रो फिर से फाउल। वहीं छठी बार में उन्होंने 20.36 मीटर दूर गोला फेका। इस थ्रो के साथ ही उनका स्वर्ण पदक पक्का हो गया था। वहीं सिल्वर मेडल जीतने वाले तोलो का कोई भी थ्रो फाउल नहीं रहा। उन्होंने पहली बार में 19.54 मीटर, दूसरी बार में 19.56 मीटर, तीसरा 19.93 मीटर, चौथे प्रयास में 20.18 मीटर, पांचवे प्रयास में 19.47 मीटर और छठी प्रयास में 19.83 मीटर दूर फेंका।

तजिंदर पाल सिंह की कहानी

तजिंदर पाल सिंह पंजाब के रहने वाले है। वह किसान परिवार से नाता रखते है। वह बचपन से क्रिकेटर बनना चाहते थे लेकिन पिता के कहने पर उन्होंने शॉर्टपुट खेलना शुरू किया और उनका ये निर्णय अच्छा साबित हुआ। हालांकि इस दौरान उन्हें काफी चुनौतियों का सामना करना पड़ा था। एक किसान का बेटा होने के नाते इतना कुछ पाना आसान नहीं था क्योंकि उनके पिता कैंसर से पिड़ित थे। इसके बावजूद उन्होंने अपना कदम पीछे नहीं खींचा। तेंजदर की उपलब्धियों को देखते हुए मुश्किल की घड़ी में भारतीय नौसेना से उनकी मदद की। नौसेना ने उन्हें नौकरी देने के साथ पिता के इलाज का खर्च भी उठाया था।