नई दिल्ली. नरेंद्र मोदी सरकार ने भ्रष्टाचार और अपराध के चर्चित मामलों को अंजाम तक पहुंचाने वाली देश की सबसे महत्वपूर्ण जांच एजेंसी सीबीआई की साख पर उठते सवालों के बीच एक-दूसरे पर भ्रष्टाचार और घूसखोरी के आरोप लगाकर भिड़ गए सीबीआई निदेशक आलोक वर्मा और विशेष निदेशक राकेश अस्थाना को छुट्टी पर भेजकर फिलहाल नागेश्वर राव को कार्यकारी निदेशक बना दिया है. वित्त मंत्री अरुण जेटली ने सरकार की तरफ से मीडिया से कहा है कि दोनों पर आरोप लगे थे इसलिए सीवीसी की सिफारिश पर दोनों को छुट्टी पर भेज दिया है और दोनों पर एक-दूसरे के आरोपों की जांच के लिए एसआईटी बनाई जाएगी. आलोक वर्मा खुद को हटाने के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंच चुके हैं और वहां शुक्रवार को उनकी दलील पर सुनवाई है कि सरकार ने उनको हटाने में नियमों का पालन नहीं किया.
आलोक वर्मा के सुप्रीम कोर्ट पहुंचने के बाद ये साफ हो गया है कि अब उन्होंने सरकार से टकराने का मन बना लिया है. लेकिन हकीकत यह है कि आलोक वर्मा कभी भी सीबीआई निदेशक पद के लिए नरेंद्र मोदी सरकार की स्वभाविक या पहली पसंद नहीं थे. आलोक वर्मा की सीबीआई डायरेक्टर पद पर ताजपोशी आनन-फानन में हुई थी क्योंकि इसी राकेश अस्थाना को कार्यवाहक निदेशक बनाने के विरोध में वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण सुप्रीम कोर्ट चले गये थे. कोर्ट में किरिकरी के बाद सरकार ने सीबीआई में पूर्णकालिक निदेशक की नियुक्ति की.
सीबीआई के निदेशक की नियुक्ति प्रधानमंत्री, मुख्य न्यायाधीश और नेता विपक्ष की नियुक्ति कमिटी करती है. सीबीआई निदेशक पद पर नियुक्ति के लिए जो नाम आए थे उनमें से ज्यादातर नाम पर कमिटी में मतभेद था और आखिर में आलोक वर्मा के नाम पर सहमति मजबूरी में बनी. सरकार को लगा कि आलोक वर्मा दिल्ली पुलिस कमिश्नर रहे हैं और अब तक कभी कोई ऐसी घटना सामने नहीं आई थी जिससे सरकार को लगे कि वो सरकार से नाइत्तेफाकी रख सकते हैं. सरकार उन्हें रीढ़विहीन मानकर उनके नाम पर राजी हुई थी लेकिन परिस्थितियां कुछ ऐसी बनी कि आलोक वर्मा अपनी राह चल पड़े.