Emergency: आज 25 जून, 2025 है, आज से ठीक 50 साल पहले भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने पूरे देश में इमरजेंसी लगा दिया था। इंदिरा गांधी ने ये सब सिर्फ और सिर्फ अपनी कुर्सी बचाने के लिए किया था। दरअसल, इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इंदिरा गांधी की संसद की सदस्यता को रद्द कर दिया था और अगले 6 वर्षों तक चुनाव लड़ने के लिए अयोग्य घोषित कर दिया था। तब यह मामला 23 जून को सुप्रीम कोर्ट में न्यायमूर्ति अय्यर के समक्ष आया था। राजनीतिक मोर्चे पर विरोधियों से निपटने के लिए इंदिरा गांधी को सुप्रीम कोर्ट से तत्काल राहत की जरूरत थी। दूसरी ओर, विपक्ष भी पूरी तरह तैयार था और उसने कैविएट दाखिल कर कोर्ट से अनुरोध किया था कि किसी भी अंतरिम आदेश से पहले उसका पक्ष सुना जाए।
क्या था पूरा घटनाक्रम?
12 जून के फैसले पर बिना शर्त रोक लगाने की मांग करते हुए पालखीवाला ने देश के हालात और स्थिरता की जरूरत की ओर कोर्ट का ध्यान खींचा था। शांति भूषण ने दलील दी थी कि किसी व्यक्ति विशेष के लिए गणतंत्र और कानून की गरिमा से समझौता नहीं किया जा सकता। उन्होंने हाईकोर्ट से स्थगन प्राप्त करते समय दिए गए तर्क का हवाला देकर इंदिरा गांधी की मंशा और उद्देश्यों पर सवाल उठाए।जस्टिस सिन्हा के फैसले के बाद इंदिरा गांधी के वकीलों ने कहा था कि फैसले के क्रियान्वयन पर अंतरिम स्थगन इसलिए जरूरी था ताकि कांग्रेस संसदीय दल नया नेता चुन सके। शांति भूषण ने सुप्रीम कोर्ट में आपत्ति जताई कि कांग्रेस ने कोई नया नेता नहीं चुना है और इंदिरा उस पद पर बनी हुई हैं।
पालखीवाला का जवाब था कि अपील के लिए स्थगन जरूरी था और नेता के नए चुनाव के लिए व्यक्ति परिवर्तन जरूरी नहीं है। अगर पार्टी के सांसद सर्वसम्मति से इंदिरा का समर्थन करके उनके नेतृत्व में अपनी आस्था व्यक्त कर रहे हैं तो इसमें कोई विरोधाभास नहीं है।
सुप्रीम कोर्ट ने सुनाया फैसला
दोनों पक्षों को विस्तार से सुनने के बाद न्यायमूर्ति अय्यर ने 24 जून को अपील के निपटारे तक इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले पर रोक लगा दी। हालांकि, यह रोक शर्तों के साथ थी। इसके तहत इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री के पद पर बनी रह सकती थीं और उस हैसियत से उन्हें संसद की कार्यवाही में भाग लेने का अधिकार था। लेकिन इस आदेश के तहत उन्हें संसद में वोट देने और सांसद के तौर पर वेतन-भत्ते पाने की अनुमति नहीं थी। इसमें कोई शक नहीं कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश ने इंदिरा गांधी के प्रधानमंत्री पद पर बने रहने की राह में कानूनी बाधा को दूर कर दिया था, लेकिन देश और दुनिया के सामने उनकी स्थिति बेहद असहज और कमजोर हो गई थी। हाईकोर्ट ने उन्हें सांसद के तौर पर अयोग्य घोषित कर दिया और सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें संसद में वोट देने के अधिकार से वंचित कर दिया, जिसका प्रतिनिधित्व वे प्रधानमंत्री के तौर पर कर रही थीं।
इंदिरा के इस कदम से बदल गया सब कुछ
इंदिरा अगले दिन से जो कदम उठाने जा रही थीं, उसके कारण संसद की कार्यवाही दिखावा होने जा रही थी और अदालतें पंगु होने जा रही थीं। इंदिरा गांधी को प्रधानमंत्री पद पर बने रहने के लिए अपने विरोधियों को जेल में डालने तक सीमित नहीं रहना पड़ा। उन्होंने अदालतों को पटरी पर लाने के लिए खुद को पहले से ही तैयार कर लिया था।
हालांकि, उन्होंने अप्रैल 1973 में ही सुप्रीम कोर्ट के तीन जजों जस्टिस के.एस. हेगड़े, जस्टिस जे.एम. शेलेट और जस्टिस ए.एन. ग्रोवर की वरिष्ठता को दरकिनार करते हुए ए.एन. रे को मुख्य न्यायाधीश बनाकर इसकी शुरुआत कर दी थी। 25 जून और उसके बाद के 19 महीनों की घटनाएं उसी का विस्तार थीं। यह भारतीय लोकतंत्र और उसके न्यायिक इतिहास का काला दौर था।