Delhi school fees: दिल्ली सरकार ने प्राइवेट स्कूलों की अनियंत्रित फीस वृद्धि पर अंकुश लगाने के लिए एक ऐतिहासिक कदम उठाया है. दिल्ली कैबिनेट ने दिल्ली स्कूल फीस एक्ट 2025 को मंजूरी दे दी है. जिसके तहत स्कूलों को फीस बढ़ाने से पहले एक समिति का गठन करना अनिवार्य होगा. इस फैसले से दिल्ली के लाखों अभिभावकों को राहत मिलने की उम्मीद है जो लंबे समय से स्कूलों की मनमानी फीस वृद्धि से परेशान थे.
पिछले कुछ महीनों से दिल्ली के प्राइवेट स्कूलों द्वारा बेतहाशा फीस वृद्धि के खिलाफ अभिभावकों का गुस्सा बढ़ता जा रहा था. अभिभावकों ने दिल्ली सरकार से इस मुद्दे पर हस्तक्षेप की मांग की थी. दिल्ली की मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता ने स्वयं अभिभावकों से मुलाकात कर उनकी शिकायतें सुनीं और स्कूलों को कारण बताओ नोटिस जारी किए. शिक्षा मंत्री आशीष सूद ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा. ‘इस एक्ट के लागू होने के बाद स्कूल मनमाने तरीके से फीस नहीं बढ़ा सकेंगे. फीस वृद्धि से पहले एक समिति का गठन होगा. जिसमें अभिभावक भी शामिल होंगे. सहमति के बिना फीस वृद्धि संभव नहीं होगी.’
शिक्षा मंत्री आशीष सूद ने इस कदम को ऐतिहासिक बताते हुए कहा कि 1973 से अब तक दिल्ली में स्कूलों की फीस वृद्धि को नियंत्रित करने का कोई ठोस प्रावधान नहीं था. उन्होंने दावा किया ‘पिछली सरकारों ने इस मुद्दे पर ध्यान नहीं दिया लेकिन बीजेपी सरकार ने केवल 65 दिनों में इस समस्या का समाधान निकाला.’ दिल्ली स्कूल फीस एक्ट दिल्ली की 1677 प्राइवेट स्कूलों पर लागू होगा और फीस वृद्धि में पारदर्शिता सुनिश्चित करेगा. मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता ने इसे दिल्लीवासियों के लिए राहत भरा कदम बताया.
दिल्ली स्कूल फीस एक्ट 2025 में कई महत्वपूर्ण प्रावधान शामिल हैं जो स्कूलों की मनमानी पर रोक लगाएंगे-
तीन स्तरीय समिति- फीस वृद्धि के लिए स्कूल, जिला, और राज्य स्तर पर समितियां गठित होंगी. स्कूल स्तर की समिति में स्कूल प्रबंधन, पांच अभिभावक, और शिक्षा विभाग के प्रतिनिधि शामिल होंगे. अभिभावकों का चयन ड्रॉ के माध्यम से होगा. जिसमें एक एससी/एसटी परिवार का प्रतिनिधित्व अनिवार्य होगा.
18 बिंदुओं पर निर्णय- फीस वृद्धि का फैसला 18 निर्धारित मानदंडों के आधार पर होगा. समिति तीन साल के लिए फीस वृद्धि पर निर्णय लेगी.
अपील का अधिकार- यदि 15% अभिभावक स्कूल समिति के फैसले से असहमत हैं तो वे जिला स्तर पर अपील कर सकते हैं. जिला समिति के फैसले से असंतुष्ट होने पर राज्य स्तर की समिति अंतिम निर्णय लेगी.
कठोर सजा- नियमों का उल्लंघन करने वाले स्कूलों पर 1 लाख से 10 लाख रुपये तक का जुर्माना लगाया जा सकता है. गंभीर मामलों में स्कूल का अधिग्रहण भी संभव है.
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