जम्मू/नई दिल्ली। पहलगाम आतंकी हमले के बाद पूरे देश में गुस्से का माहौल है। सभी देशवासी पूरी एकजुटता के साथ पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद के खिलाफ विरोध-प्रदर्शन कर रहे हैं। फिर चाहे वो फिल्म जगत के लोग या फिर खेल की दुनिया के। सियासी दलों के अंदर भी इस मामले को लेकर पूरी एकजुटता दिखाई पड़ रही है।
सभी देशवासियों की एक सुर में मांग है कि आतंकवाद की जननी पाकिस्तान को कड़ा सबक सिखाया जाए। इन सभी मांगों के बीच विदेशी मामलों के जानकारों का कहना है कि दोनों देशों में जंग के आसार हैं। इस बीच जम्मू-कश्मीर से बड़ी खबर आई है। जम्मू में मेडिकल कॉलेज को इमरजेंसी के लिए तैयारी के निर्देश दिए गए हैं।
इस तनावपूर्ण स्थिति में मुस्लिम देशों की भूमिका अहम हो जाती है. सऊदी अरब, कतर, तुर्की जैसे देश भारत और पाकिस्तान के बीच संभावित टकराव में किस ओर होंगे?
सऊदी अरब और भारत के बीच गहरे आर्थिक और रणनीतिक संबंध हैं. भारत सऊदी अरब का प्रमुख कच्चा तेल आयातक है और सऊदी अरब भारत में बुनियादी ढांचे और नवीकरणीय ऊर्जा में भारी निवेश कर रहा है. क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान की ‘विजन 2030’ योजना में भारत एक महत्वपूर्ण साझेदार है. सऊदी अरब ने आतंकवाद के खिलाफ भारत के रुख को न केवल समर्थन दिया है बल्कि कश्मीर मुद्दे पर भी पाकिस्तान की अनदेखी की है. ‘सऊदी अरब भारत के साथ अपनी साझेदारी को वैश्विक स्थिरता के लिए जरूरी मानता है.’ इसलिए सऊदी अरब का झुकाव स्पष्ट रूप से भारत की ओर रहेगा.
katar भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव में तटस्थ रहने की कोशिश करेगा. भारत में बड़ी संख्या में कतर में कार्यरत प्रवासी भारतीय हैं और दोनों देशों के बीच गैस व ऊर्जा क्षेत्र में महत्वपूर्ण समझौते हैं. कतर अपनी वैश्विक मध्यस्थ की छवि को बनाए रखना चाहता है. जैसा कि उसने हमास-इजरायल युद्धविराम में दिखाया. ‘कतर किसी एक पक्ष को खुलकर समर्थन देकर अपनी कूटनीतिक स्थिति को जोखिम में नहीं डालेगा.’ इसीलिए कतर संतुलन साधने की नीति अपनाएगा.
तुर्की का रुख जटिल है. ऐतिहासिक रूप से तुर्की पाकिस्तान का समर्थक रहा है खासकर कश्मीर मुद्दे पर. हालांकि हाल के वर्षों में भारत के साथ व्यापार और पर्यटन में वृद्धि ने तुर्की को सतर्क बनाया है. तुर्की की अर्थव्यवस्था दबाव में है और भारत जैसे बड़े बाजार के साथ टकराव उसके हित में नहीं. फिर भी राष्ट्रपति एर्दोआन की इस्लामिक एकजुटता की नीति उसे पाकिस्तान के प्रति नरम रुख रखने के लिए प्रेरित कर सकती है. तुर्की संभवत तटस्थ रहेगा लेकिन उसका झुकाव पाकिस्तान की ओर हो सकता है.
यूएई- यूएई और भारत के बीच 85 अरब डॉलर का द्विपक्षीय व्यापार और भारतीय कामगारों की बड़ी उपस्थिति इसे भारत का मजबूत समर्थक बनाती है. यूएई आतंकवाद के खिलाफ भारत के रुख को वैश्विक सुरक्षा के लिए जरूरी मानता है.
इंडोनेशिया और मिस्र- ये देश भारत के साथ समुद्री सुरक्षा, रक्षा, और शिक्षा जैसे क्षेत्रों में सहयोग बढ़ा रहे हैं. भारत की स्थिरता और आर्थिक ताकत इन्हें भारत के पक्ष में रखती है.
बांग्लादेश- अंतरिम सरकार के भारत-विरोधी बयानों के बावजूद बांग्लादेश की आर्थिक निर्भरता और भौगोलिक स्थिति इसे तटस्थ रखेगी.
अफगानिस्तान- भारत के विकास निवेश और पाकिस्तान के साथ तनावपूर्ण संबंधों के कारण अफगानिस्तान भारत का समर्थन करेगा.
वर्तमान में किसी भी प्रमुख मुस्लिम देश ने पाकिस्तान को खुला समर्थन नहीं दिया है. अंतरराष्ट्रीय समुदाय जिसमें अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, और रूस शामिल हैं. जिसने आतंकवाद के खिलाफ भारत के कदमों का समर्थन किया है. पाकिस्तान की कूटनीतिक अलगाव और आतंकवाद से जुड़ी खराब छवि ने उसकी स्थिति को कमजोर किया है.
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