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India-Pakistan Ceasefire: आखिर सीजफायर के ऐलान के बाद क्यों याद आईं इंदिरा गांधी? डोनाल्ड ट्रंप की एंट्री से बदली सूरत!

सीजफायर के ऐलान के बीच देश में पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की चर्चा जोरों पर है. 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में इंदिरा गांधी ने अमेरिकी दबाव को नजरअंदाज कर ऐतिहासिक जीत हासिल की थी. उस समय अमेरिकी राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन ने इंदिरा गांधी को 45 मिनट तक इंतजार करवाया और पूर्वी पाकिस्तान (आज का बांग्लादेश) पर कोई सार्थक बातचीत नहीं की. इसके बावजूद इंदिरा गांधी ने पाकिस्तानी सेना के अत्याचारों का जवाब देते हुए युद्ध लड़ा.

India-Pakistan Ceasefire
inkhbar News
  • Last Updated: May 11, 2025 23:34:11 IST

India-Pakistan Ceasefire: 11 मई 2025 को भारत और पाकिस्तान के बीच सीजफायर का ऐलान हुआ. जिसकी घोषणा न भारत ने की न पाकिस्तान ने बल्कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X सोशल पर की. ट्रंप ने लिखा ‘लंबी रात की वार्ता के बाद, मैं यह घोषणा करते हुए खुश हूं कि भारत और पाकिस्तान ने तत्काल और पूर्ण सीजफायर पर सहमति जताई है. दोनों देशों को समझदारी और बुद्धिमत्ता के लिए बधाई.’ इस ऐलान के कुछ ही घंटों बाद ट्रंप ने कश्मीर मुद्दे पर मध्यस्थता की पेशकश की. जिसे भारत ने ठुकरा दिया क्योंकि भारत का रुख स्पष्ट है कि कश्मीर उसका आंतरिक मामला है. विदेश सचिव विक्रम मिस्री ने कहा ‘सीजफायर दोनों देशों के बीच सीधे बातचीत से हुआ. इसमें किसी तीसरे पक्ष की मध्यस्थता नहीं थी.’

इंदिरा गांधी की याद क्यों?

सीजफायर के ऐलान के बीच देश में पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की चर्चा जोरों पर है. 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में इंदिरा गांधी ने अमेरिकी दबाव को नजरअंदाज कर ऐतिहासिक जीत हासिल की थी. उस समय अमेरिकी राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन ने इंदिरा गांधी को 45 मिनट तक इंतजार करवाया और पूर्वी पाकिस्तान (आज का बांग्लादेश) पर कोई सार्थक बातचीत नहीं की. इसके बावजूद इंदिरा गांधी ने पाकिस्तानी सेना के अत्याचारों का जवाब देते हुए युद्ध लड़ा. जिसके परिणामस्वरूप बांग्लादेश का निर्माण हुआ और 91,000 पाकिस्तानी सैनिकों ने आत्मसमर्पण किया. कांग्रेस ने इस मौके पर सोशल मीडिया पर इंदिरा गांधी को याद करते हुए कहा ‘1971 में इंदिरा जी ने अमेरिका के सातवें बेड़े की धमकी को नजरअंदाज कर देशहित में फैसला लिया.’

1971 और 2025 में कितना फर्क?

कांग्रेस नेता शशि थरूर ने कहा ‘1971 और 2025 की परिस्थितियां अलग हैं. 1971 में हम बांग्लादेश की आजादी के लिए लड़ रहे थे. जो एक नैतिक लड़ाई थी. आज का युद्ध लंबा चलने पर भारी नुकसान हो सकता था.’ सोशल मीडिया पर कुछ लोग बलूचिस्तान को अलग करने और PoK को वापस लेने की बात कर रहे थे लेकिन सीजफायर के बाद उनकी मायूसी साफ दिख रही है. लोग इंदिरा गांधी को इसलिए याद कर रहे हैं क्योंकि उन्होंने बिना किसी बाहरी दबाव के कड़े फैसले लिए थे.

ट्रंप की मध्यस्थता- कितनी कारगर?

ट्रंप ने सीजफायर को अपनी कूटनीतिक जीत बताया लेकिन भारत ने स्पष्ट किया कि यह फैसला दोनों देशों के DGMO की सीधी बातचीत से हुआ. अमेरिकी विदेश मंत्री मार्को रुबियो ने दावा किया कि दोनों देश ‘तटस्थ स्थान पर व्यापक मुद्दों पर बातचीत’ करेंगे लेकिन भारत ने इसे खारिज कर दिया. ट्रंप ने व्यापार बढ़ाने और कश्मीर पर समाधान की बात भी की जिसे भारत ने ठुकरा दिया.

क्या कहती है जनता?

सोशल मीडिया पर लोग इंदिरा गांधी की निर्णायक नेतृत्व की तुलना मौजूदा स्थिति से कर रहे हैं. कुछ का मानना है कि सीजफायर जरूरी था क्योंकि लंबा युद्ध लाखों जानें ले सकता था. ट्रंप ने कहा ‘इस जंग को रोककर दोनों देशों ने समझदारी दिखाई.’ लेकिन कई लोग मानते हैं कि जब तक कश्मीर और आतंकवाद का मुद्दा हल नहीं होता तब तक इंदिरा गांधी की तरह कड़े फैसले लेने की जरूरत रहेगी.

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