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इंदिरा गांधी का दूसरा बड़ा फैसला जिसने बदल दिया देश

Indira Gandhi Anniversary: जिस तरह से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने देश भर में नोटबंदी और जीएटी लागू करने जैसे बड़े फैसले लिए हैं. इसी तरह जब इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री बनी थी उस वक्त देश में ऐसे हालात थे कि उन्हें भी कुछ ऐसे ही फैसले लेने पड़े थे. बड़े बैकों में से'स्टेट बैंक ऑफ इंडिया' के अलावा बाकी सभी बैंक निजी हाथों में थी और अक्सर आरोप लगते थे कि उन बैंकों का पैसा कभी भी उनको कंट्रोल करने वाले उद्योगपतियों की कंपनियों में ट्रांसफर कर दिया जाता है.

6 जून 1966 को इंदिरा गांधी ने प्रधानमंत्री बनने के बाद भारत के लिए लिया दूसरा बड़ा फैसला
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  • Last Updated: November 19, 2017 10:05:15 IST

नई दिल्ली: इंदिरा गांधी जिस हालात में पीएम बनीं थी, उन्होंने देश में उसी तरह बड़े आर्थिक फैसले लेने की सोची, जैसे कि मोदी ने नोटबंदी और जीएसटी जैसे फैसले लिए हैं. उस वक्त हालात ये थे कि बड़ी बैकों में से केवल एक स्टेट बैंक ऑफ इंडिया के अलावा बाकी सभी बैंक निजी हाथों में थी और अक्सर आरोप लगते थे कि उन बैंकों का पैसा कभी भी उनको कंट्रोल करने वाले उद्योगपतियों की कंपनियों में ट्रांसफर कर दिया जाता है. करीब 70 फीसदी जमा इन बैंकों के पास ही थी. इंदिरा ने दावा किया कि इन निजी बैंकों में पब्लिक के निवेश की कोई गारंटी नहीं और केवल 3.2 फीसदी लोन ही किसानों को दिया जा रहा है.

इंदिरा ने सबसे पहले जनता का मूड भांपने के लिए एक पेपर सबके सामने रखा, जिसका टाइटल था—‘स्ट्रे थॉट्स ऑन बैंक नेशनलाइजेशन’. आम पब्लिक के बीच इस आइडिया को काफी पसंद किया गया. उसके बाद उन्होंने फाइनेंस मिनिस्टर मोरारजी देसाई का से फाइनेंस मिनिस्टर का पोर्टफोलियो वापस ले लिया और तीन दिन बाद यानी 19 जुलाई 1969 को 14 बड़ी बैंकों का नेशननलाइजेशन कर दिया. जाहिर है इंदिरा के दिमाग में एक खास योजना थी और वो जानती थीं कि इन सब फैसलों से क्या रिएक्शन होने वाला है.

जो असर जनधन खातों से पड़ा यानी बैंकों में खाते खुलने और जमा में कई गुना बढोत्तरी, वैसा ही असर उन दिनों देखने को मिला, देखते देखते बैकों में 800 फीसदी जमा बढ़ गया और शाखाएं 8200 से बढ़कर 62000 हो गईं. इंदिरा को घोर विरोधी जेपी ने भी इस कदम की तारीफ की थी. इतना ही नहीं इसके बाद इंदिरा ने इंश्योरेंस, कॉपर, कॉटन, स्टील और कोल जैसे सेक्टर्स का भी नेशनलाइजेशन कर दिया. दिलचस्प था ऑयल सेक्टर का नेशनलाइजेशन, जब फॉरेन ऑयल कंपनियों ने 1971 की जंग में एयरफोर्स और नेवी के लिए तेल देने से मना कर दिया तो 1973 में ऑयल सेक्टर का भी नेशनलाइजेशन कर दिया गया, उसके बाद आओसी, बीपीसीएल और एचपीसीएल जैसी कंपनियों के लिए नियम बना दिया गया कि युद्ध के समय भारतीय डिफेंस फोर्सेज के लिए तेल रिजर्व रखना है.

इंदिरा को खत लिखकर मोरारजी देसाई ने खुद की तुलना क्लर्क से क्यों की? जानने के लिए वीडियो में देखें पूरा शो…

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